सेंट थॉमस स्कूल की मनमानी उजागर
डोनेशन के नाम पर अभिभावकों से मांगे गए दाल, चावल और तेल
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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat.
आगरा। सेंट थॉमस स्कूल, सुनारी, आगरा में अभिभावकों से डोनेशन के नाम पर राशन सामग्री मांगे जाने का मामला सामने आया है।
प्रोग्रेसिव एसोसिएशन ऑफ़ पेरेंट्स अवेयरनेस (PAPA) के राष्ट्रीय संयोजक श्री दीपक सरीन की शिकायत पर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय ने जांच शुरू कर दी है।
खंड शिक्षा अधिकारी नगर, सुमित कुमार सिंह तथा बरौली अहीर के खंड शिक्षा अधिकारी, महेश कुमार पटेल को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया है।
मजबूर किए गए अभिभावक
दीपक सिंह सरीन ने शिकायत में बताया कि विद्यालय प्रबंधन ने बच्चों से डोनेशन के नाम पर पांच किलो आटा, दो किलो चावल, आधा किलो दाल और आधा लीटर तेल अनिवार्य रूप से जमा करने को कहा।
इसके लिए अभिभावकों को 4 सितंबर की तारीख डालकर मैसेज भी भेजे गए।

शिक्षा के नियमों का खुला उल्लंघन
विशेषज्ञों के अनुसार डोनेशन लेना न केवल अनैतिक है, बल्कि पूर्णतः अवैधानिक भी है।
1. उत्तर प्रदेश शिक्षा अधिनियम 2009 की धारा 13 और 14 के अनुसार किसी भी स्कूल को अतिरिक्त शुल्क या डोनेशन लेना प्रतिबंधित है।
2. RTE Act 2009 स्पष्ट करता है कि शिक्षा बच्चों का मौलिक अधिकार है।
3. U.P. School Fees Regulation Act 2018 के तहत विद्यालय केवल निर्धारित शुल्क ही ले सकते हैं।
4. NCPCR ने भी नकद/वस्तु डोनेशन लेने को बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन माना है।
प्रशासन से क्या अपेक्षा?
PAPA संगठन ने मांग की है कि –
विद्यालय के खिलाफ कड़ी जांच और कार्यवाही की जाए।
प्रबंधन पर दंडात्मक कार्रवाई की जाए।
मिशनरी व प्राइवेट स्कूलों को निर्देश दिए जाएँ कि किसी भी प्रकार का योगदान वर्जित है।
यदि कोई स्कूल दोहराता है तो उसकी मान्यता निलंबित की जाए।
अभिभावकों की सुरक्षा जरूरी
PAPA ने प्रशासन से अपील की है कि –
सभी स्कूलों की फीस वसूली पारदर्शी बनाई जाए।
शिकायतों पर तुरंत कार्यवाही हो।
एक मॉनिटरिंग सिस्टम लागू किया जाए ताकि बच्चों के अधिकार सुरक्षित रह सकें।

शिक्षा सेवा है, व्यवसाय नहीं
दीपक सिंह सरीन ने कहा –
“शिक्षा बच्चों का अधिकार है और स्कूलों के लिए सेवा है, व्यवसाय नहीं। डोनेशन का बोझ डालकर शिक्षा को व्यापार बनाने की किसी भी साजिश का पुरजोर विरोध किया जाएगा।”
संपादकीय
सेंट थॉमस स्कूल, सुनारी का यह कृत्य मिशनरी और प्राइवेट स्कूलों की उस मनमानी को उजागर करता है जो शिक्षा जगत में काले धब्बे की तरह मौजूद है।
प्रशासन को चाहिए कि वह इस प्रकरण में कठोर कार्यवाही कर एक उदाहरण प्रस्तुत करे।
शिक्षा बच्चों का मौलिक अधिकार है और इसे व्यापार की मंडी बनने से रोकना समाज, प्रशासन और हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।
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