डॉ. भानु प्रताप सिंह
Agra, Uttar Pradesh, India. इतिहास एक ऐसा ऊन का गोला है जिसे जितने सुलझाओ उतना ही उलझता जाता है। तमाम घटनाओं के संबंध में अलग-अलग तथ्य मिलते हैं। इतिहासकारों ने तमाम घटनाओं का उल्लेख अपने हिसाब से किया है। इन घटनाओं का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि अनेक उलझने हैं।
इन्हीं उलझनों को लेकर माने-माने इतिहासविद राजकिशोर शर्मा ‘राजे’ की एक पुस्तक आई है- उलझन भरा इतिहास। पुस्तक में 37 अध्याय हैं। सर्वाधिक विवादित मुद्दा ताजमहल तो है ही। 1857 की क्रांति के नायकों के बारे में खुलासा किया गया है। बहादुर शाह जफर के बारे में नई जानकारी मिलती है कि उसने क्रांतिकारियों की आर्थिक मदद नहीं की। 1857 की क्रांति की असफलता को वे हिन्दुओं का सौभाग्य मानते हैं। कवियों पर कटाक्ष इस मायने में किया गया है कि वे तुकबंदी के चक्कर में ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ करते हैं। लेखक ने भीष्म प्रतिज्ञा को विनाश प्रतिज्ञा की संज्ञा दी है। राजा भरत, जिनके नाम पर भारत नाम पड़ा है, उनके आचरण को संदिग्ध बताया है। भारत विभाजन, संजय को दिव्य दृष्टि, मुगल दौर में शिकार, स्वयंवर, रावण कैद में, मुगल बादशाह कैद में, क्या शाहजहां अमर था, सुलहकुल की पहेली, गांधी और अहिंसा, नादिरशाह ही क्यूं बदनाम, जयद्रथ वध क्यों, जफर का खजाना, झांसी की रानी, लुटेरी प्रजा, घास की रोटी, 1947 के राजा नवाब, पांच सौ वर्ष पुराना रहस्य, कंस और कृष्ण, इस्लाम अलग-थलग क्यों और भारत की स्वतंत्रता को लेकर उलझनें जाहिर की हैं।
खास बात यह है कि पुस्तक में इतिहास की 105 पुस्तकों का संदर्भ दिया गया है। इसलिए हर बात प्रमाणित है। राजकिशोर शर्मा राजे कहते हैं- इतिहास में उलझन का कोई स्थान नहीं होता परन्तु अनायास ऐसे मोड़ आ जाते हैं कि स्वतः ही उलझन होने लगती है। कुछ उलझनें प्रयास करने पर भी नहीं सुलझती हैं। वे कहते है कि यह पुस्तक इतिहास विषय में रुचि रखने वालों के साथ शोधार्थियों के लिए शोध का नया द्वार खोलती है।
पुस्तक के प्रकाशक मोहन मुरारी शर्मा कहते हैं– राजकिशोर शर्मा ने इतिहास लेखन की नई विधा विकसित की है, जो तथ्यपरक होने के साथ-साथ रोचक भी है।
पुस्तक का नामः उलझन भरा इतिहास
लेखकः राज किशोर शर्मा राजे
प्रकाशकः निखिल पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, आगरा
मूल्यः 150 रुपये मात्र।
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