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पढ़-लिखकर भी है नहीं जिसको पुस्तक प्यार, उस जन से तो श्रेष्ठ है अनपढ़ अज्ञ गंवार

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आगरा महोत्सवः ऑथर्स गिल्ड की विचार गोष्ठी में भी डॉ. भानु प्रताप सिंह के उपन्यास मेरे हसबैंड मुझको प्यार नहीं करते की चर्चा

Agra, Uttar Pradesh, India. कोठी मीना बाजार मैदान पर आगरा महोत्सव चल रहा है। यहां दैनिक उपयोग की हर वस्तु उपलब्ध है। महोत्सव में पहली बार साहित्य का स्थान दिया गया है, जो पत्रकार स्व. अमी आधार निडर को समर्पित है। गुरुवार को ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, आगरा चैप्टर ने ‘ई-लर्निंग के समय में पुस्तकों का भविष्य’ विषय पर विचार गोष्ठी आयोजित की। गोष्ठी में पुस्तकों की महत्ता को प्रतिपादित किया गया। इस दौरान वरिष्ठ पत्रकार डॉ. भानु प्रताप सिंह द्वारा रचित उपन्यास ‘मेरे हसबैंड मुझको प्यार नहीं करते’ की भी चर्चा हुई। प्रोफेसर सुगम आनंद की अध्यक्षता की।

सुप्रसिद्ध साहित्यवेत्ता श्रुति सिन्हा ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि पुस्तकों की उपयोगिता कभी भी खत्म नहीं हो सकती है। ई-लर्निंग नई विधि है, जो समय की मांग है। अगर पुस्तकें ही नहीं होगीं तो आप क्या पढ़ेंगे। ई-लर्निंग का आधार भी पुस्तक ही है। अगर पुस्तकें न होंगी तो क्या होगा, ऐसा हो नहीं सकता है। हम प्रगाढ़ता में एकदूसरे को गले लगाते हैं, हैंडशेक करते हैं, स्पर्श करते हैं उसी तरह पुस्तकों को स्पर्श करने का रसास्वादन करते हैं लेकिन ई-लर्निंग में यह संभव नहीं है। सोशल मीडिया ने पुस्तकों के लिए बड़ी चुनौती प्रस्तुत कर दी है। ई-लर्निंग से मोटापा बढ़ रहा है। 10-12 वर्ष के बच्चों में वे बीमारियां हो रही हैं जो 40-50 साल की आयु में होती हैं। पुस्तकों की लीला अपरंपार है। आगे की पीढ़ी का बिना पुस्तकों के कोई भविष्य नहीं है। उन्होंने पुस्तकों के संबंध में कई दोहे सुनाए। दो दोहे देखिए-

पढ़-लिखकर भी है नहीं जिसको पुस्तक प्यार।

उस जन से तो श्रेष्ठ है अनपढ़ अज्ञ गंवार।

पुस्तक करती ज्ञान का जीवन से संयोग।

जैसे अनुभव बांटते वृद्ध सयाने लोग।।

रमा वर्मा ने कहा– पुस्तकें युवा वर्ग को तराशकर हीरा बनाती हैं। पुस्तकें थीं, हैं और आगे भी रहेंगी। इनका महत्व कभी समाप्त नहीं हो सकता है। पुस्तकें हमारी दोस्त हैं। पुस्तकों से मुख मोड़ना युवा वर्ग के लिए ठीक नहीं हैं। मोबाइल पर अधिक पढ़ने से स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। सुधीर ने कहा– ई-लर्निंग आज के समय की मांग है। रंगकर्मी उमाशंकर बोले– पद और कद पुस्तकों की देन है। डाक्टर रेखा कक्कड़ ने कहा- ई-लर्निंग में स्थायित्व का अभाव है। शोधार्थी भरत सिंह ने पुस्तकों की महत्ता प्रतिपादित की।

साहित्य प्रदर्शनी में श्रुति सिन्हा।

आरबीएस कॉलेज की पूर्व प्राचार्य एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुषमा सिंह ने कहा कि पुस्तकें अपनी ओर आकर्षित करती हैं। साथ ही उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार डॉ. भानु प्रताप सिंह के उपन्यास ‘मेरे हसबैंड मुझको प्यार नहीं करते’ की चर्चा करते हुए कहा कि आप सबको अवश्य पढ़ना चाहिए। मैंने पढ़ा है, बहुत आनंद की अनुभूति हुई। डॉ. भानु प्रताप सिंह ने अवगत कराया कि आगरा महोत्सव में ‘मेरे हसबैंड मुझको प्यार नहीं करते’ उपन्यास की चार-पांच प्रतियां रोज बिक रही हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि हमारे घरों में रामचरितमानस और गीता अवश्य होती है लेकिन हम पढ़ने के स्थान पर पूजा करते हैं, जो कष्टदायक है।

आगरा कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉक्टर विनोद महेश्वरी ने कहा- जो पुश्तों से पुश्तों तक चले वही पुस्तक है। सुशील सरित ने कहा– सत्तर प्रतिशत आबादी आज भी पुस्तकों के सहारे है। ऑथर्स गिल्ड आगरा चैप्टर के अध्यक्ष डाक्टर युवराज सिंह ने कहा- ई-लर्निग सूचना का माध्यम हो सकता है, ज्ञान और विवेक का नहीं। जाने-माने साहित्यवेत्ता डॉक्टर राजेंद्र मिलन ने कहा- प्रकृति परिवर्तनशील है, लेकिन पुस्तकें हमेशा रहेंगी इनका कोई विकल्प नहीं।

विचार गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए आगरा विश्वविद्यालय में इतिहास एवं संस्कृति विभागाध्यक्ष प्रो. सुगम आनंद ने विद्वतापूर्ण विचार रखे। उन्होंने कहा- ई-लर्निंग प्रौद्योगिकी का परिवर्तन है, परन्तु साहित्य की अक्षुण्ण धारा पुस्तकों के रूप में चिरकालिक है। उन्होंने हर किसी से पुस्तक पढ़ने का आह्वान किया। डाक्टर युवराज सिंह ने आभार प्रकट किया।

Dr. Bhanu Pratap Singh