वरिष्ठ अधिवक्ता व रोड सेफ्टी एक्टिविस्ट
सड़क दुर्घटनाओं पर लगेगा ब्रेक – सुप्रीम कोर्ट में डेटा एकीकरण की पहल – केन्द्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने किया नोटिस जारी।
अब जुर्माना और निगरानी होगी डिजिटल।
सरकार के पास वाहन पंजीकरण, ड्राइविंग लाइसेंस, बीमा सूचना और प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र जैसे डिजिटल डेटाबेस हैं, लेकिन इनके आपसी तालमेल की कमी के कारण यातायात नियमों के उल्लंघन की प्रभावी निगरानी संभव नहीं हो पा रही है। इस मुद्दे को लेकर और डेटाबेस के एकीकरण के लिये सामाजिक कार्यकर्ता व युवा उद्यमी हेमंत जैन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी याचिका को विचार के लिये आज स्वीकार कर लिया गया। न्यायमूर्ति अभय एस ओका एवं न्यायमूर्ति उज्जवल भुआन की बेंच द्वारा केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया गया और 17 मार्च तक जवाब के लिये समय दिया गया और सुनवाई हेतु 24 मार्च की तिथि नियत कर दी गयी। इस याचिका की पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता के0सी0 जैन द्वारा की गयी।
इस याचिका का मुख्य उद्देश्य सड़क सुरक्षा प्रवर्तन को प्रभावी बनाने के लिए मोटर वाहन से जुड़े विभिन्न सरकारी पोर्टलों के डेटा को एकीकृत करना है। यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के 2 सितंबर 2024 और 20 जनवरी 2025 के आदेशों के अनुरूप है, जिनमें मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 136(1) को लागू करने का निर्देश दिया गया था। इस प्रावधान के तहत इलेक्ट्रॉनिक निगरानी प्रणाली जैसे स्पीड कैमरा, सीसीटीवी निगरानी, स्वचालित नंबर प्लेट पहचान आदि का उपयोग अनिवार्य किया गया है।
वर्तमान सड़क सुरक्षा प्रवर्तन की प्रमुख चुनौतियाँ
भारत में सड़क सुरक्षा एनफोर्समेन्ट की स्थिति बेहद चिंताजनक है। डेटा एकीकरण की कमी के कारण कई गंभीर समस्याएँ बनी हुई हैं, जैसेः
1. स्पीड लिमिटिंग डिवाइस को लागू करने में विफलता- भारत में 2.18 करोड़ परिवहन वाहन हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ 10.7 लाख वाहनों में ही स्पीड लिमिटिंग डिवाइस लगी है, जिससे ओवरस्पीडिंग और घातक सड़क दुर्घटनाएँ बढ़ रही हैं।
2. वाहनों के बीमा नियमों का पालन नहीं किया जा रहा- देश में 38.51 करोड़ वाहन पंजीकृत हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ 17.54 करोड़ वाहनों का बीमा वैध है, जिससे अनेकों वाहन बिना वित्तीय सुरक्षा के सड़क पर चल रहे हैं।
3. प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र अनुपालन में कमी- केवल 5.34 करोड़ वाहनों के पास वैध है, जिससे वाहनों द्वारा बड़े पैमाने पर वायु प्रदूषण हो रहा है।
4. सरकारी डेटाबेस में आपसी तालमेल की कमी- वाहन, सारथी, ई-चालान, पीयूसीसी, बीमा आदि के डेटा आपस में लिंक नहीं हैं, जिससे यातायात पुलिस के लिए नियम उल्लंघनकर्ताओं की पहचान करना कठिन हो जाता है।
5. राज्यों द्वारा कमजोर प्रवर्तन प्रणाली- केंद्र सरकार नीतियाँ बनाती है, लेकिन उनका कार्यान्वयन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर निर्भर करता है, जिससे यातायात नियमों का पालन असमान रूप से किया जाता है।
6. ओवर-एज वाहनों की निगरानी में असफलता- कई वाहन अनुमत आयु सीमा पार कर चुके हैं, लेकिन वे अभी भी सड़क पर चलते रहकर दुर्घटनाओं और प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं।
7. ई-चालान प्रणाली का धीमा कार्यान्वयन- कई राज्य ई-चालान प्रणाली को प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाए हैं, जिससे यातायात उल्लंघनों पर सख्ती से कार्रवाई नहीं हो पाती।
8. स्वचालित यातायात निगरानी प्रणाली का अभाव- स्वचालित नंबर प्लेट पहचान प्रणाली और स्पीड गन जैसी तकनीकों का पर्याप्त उपयोग नहीं हो रहा है, जिससे यातायात नियमों का प्रभावी अनुपालन सुनिश्चित नहीं हो पा रहा है।
9. दंड और लाइसेंस निलंबन लागू करने में असंगति- दोहराए गए उल्लंघनों के बावजूद चालकों के लाइसेंस स्वतः निलंबित नहीं होते, जिससे नियमों की अवहेलना जारी रहती है।
10. इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के कार्यान्वयन में खामियाँ- मोटर वाहन अधिनियम की धारा 136(1), जो इलेक्ट्रॉनिक निगरानी को अनिवार्य बनाती है, अभी तक पूरे भारत में प्रभावी ढंग से लागू नहीं हुई है।
तकनीक के माध्यम से सड़क सुरक्षा में सुधार
इस याचिका में तर्क दिया गया है कि डिजिटल तकनीक और ऑनलाइन उपलब्ध डेटा का उपयोग करके सड़क सुरक्षा को क्रांतिकारी ढंग से सुधारा जा सकता है।
यातायात पुलिस को वास्तविक समय में डेटा उपलब्ध कराना
जुर्माने, लाइसेंस की वैधता, बीमा स्थिति आदि की तत्काल पहचान हो सकेगी।
स्वचालित नियम उल्लंघन पहचान और ई-चालान जारी करना
स्पीडिंग, रेड लाइट जंपिंग, गलत दिशा में वाहन चलाना आदि का स्वचालित रूप से पता लगाकर दंड लगाया जाएगा।
ओवर-एज वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने, स्पीड सीमा लागू करने, और प्रदूषण नियंत्रण उपायों को सुनिश्चित करने से दुर्घटनाओं में कमी आएगी।
सार्वजनिक जागरूकता और जवाबदेही बढ़ाना
नागरिकों को बीमा, ड्राइविंग लाइसेंस की वैधता के बारे में स्वचालित अलर्ट मिलेंगे, जिससे वे समय पर नवीनीकरण कर सकें।
हेमन्त जैन द्वारा सड़क सुरक्षा को लेकर न्यायालय में मांग की गयी है कि सभी मोटर वाहन डेटा पोर्टलों का एकीकरण अनिवार्य किया जाए एवं सभी राज्यों और केंद्र सरकार को निम्नलिखित डेटाबेस को एकीकृत करने का निर्देश दिया जाए। कुल मिलाकर यह याचिका भारत में सड़क सुरक्षा प्रवर्तन को आधुनिक बनाने और डिजिटल तकनीक के माध्यम से दुर्घटनाओं को कम करने का प्रयास है और सुप्रीम कोर्ट का इस विषय में उचित निर्देश भारत की सड़क सुरक्षा को एक नई दिशा देगा।
“भारत में सड़क दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या गंभीर चिंता का विषय है। मौजूदा डिजिटल संसाधनों के बावजूद, डेटा का एकीकरण न होने से यातायात नियमों का सही अनुपालन नहीं हो पा रहा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा डिजिटल निगरानी को अनिवार्य कर सड़क सुरक्षा को प्रभावी बनाया जाए।”
– हेमंत जैन, सामाजिक कार्यकर्ता
“मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 136। के तहत डिजिटल निगरानी अनिवार्य है, लेकिन बिखरे हुए डेटा के कारण इसका प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा। कानून का सही प्रवर्तन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि सभी संबंधित पोर्टलों को एकीकृत किया जाए, जिससे सड़क सुरक्षा को मजबूत किया जा सके।” –
के.सी. जैन, अधिवक्ता
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