नई दिल्ली। शहरों में वैसे भी गौरैया की संख्या में गिरावट आई है, इसकी वजह घरों के डिजाइन में आए बदलाव एवं किचन व गार्डन जैसे जगहों की कमी है जिसके कारण गौरैया की चहचहाहट अब कानों में नहीं गूंजती है। ऐसे में हमें ‘गौरैया संरक्षण’ के लिए मुहिम चलाने की जरूरत है। अपने आसपास कंटीली झाड़ियां, छोटे पौधे और जंगली घास लगाने की जरूरत है। फ्लैट्स में बोगन बेलिया की झाड़ियां लगाई जाएं ताकि वहां गौरैया का वास हो सके।
हम सिर्फ एक दिन जब गौरैया दिवस आता है, तभी चेतते हैं और गौरैया की सुध लेते हैं। न ही हम पर्यावरण बचाने की दिशा में अग्रसर होते हैं और न ही ऐसे पक्षियों को, जिनका विकास मानव विकास के साथ ही माना जाता है। गौरैया पक्षी का विकास भी मानव विकास के साथ माना जाता है। यह पक्षी इंसानी आबादी के आसपास ही रहती है, लेकिन बदलते परिवेश और शहरीकरण ने इस पक्षी को इंसानी आबादी से दूर कर दिया है। यही वजह है कि देश की राजधानी दिल्ली में गौरैया राज्य पक्षी घोषित किया गया है, ताकि इसका संरक्षण हो सके और मनुष्य की इस प्राचीनतम साथी को बचाया जा सके।
विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही गौरैया ने अपना पर्यावास (प्राकृतिक वास, पारिस्थितिक या पर्यावरणीय क्षेत्र ) खो दिया है, लेकिन उनके प्रजनन में कमी नहीं आई है। ऐसे में हमारे प्रयास भर से ही हम गौरैया को संरक्षित कर सकते हैं।
हर साल 20 मार्च को गौरैया दिवस (World sparrow day) इस पक्षी के इसी संरक्षण और रक्षा के लिए मनाया जाता है। यह बात सच है कि अगर हमने इस तरफ ध्यान नहीं दिया तो एक दिन यह पक्षी विलुप्त हो जाएगा, क्योंकि विलुप्ती के कगार पर पहले से ही पहुंच चुका है।
-एजेंसी
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