लोकतंत्र से चुनकर आकर लोकतंत्र को सीमित करने की कोशिश: न्यायपालिका निशाने पर क्यों..

लेख

शकील अख्तर

प्रतिक्रियावाद का यह पुराना तरीका है। करो खुद आरोप दूसरे पर लगा दो। प्रतिक्रियावाद दक्षिणपंथ पाखंड पर ही चलता है। मूल उद्देश्य होता है लोगों को बेवकूफ बनाकर अपना काम निकालाना। इसके लिए वे कुछ भी कह सकते हैं। किसी पर भी कोई भी आरोप लगा सकते हैं।

ताजा उदाहरण है निशिकांत दुबे का। न्यायपालिका पिछले कुछ समय से काफी दब कर काम कर रही है। लेकिन शिकायत यह है कि वैसी जी हुजुरी में नहीं आ रही जैसी मीडिया आ गई है। बीच बीच में कुछ फैसले अपनी साख बचाने के लिए दे देती है। हालांकि इससे सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ता मगर इतना सिर उठाना भी वह बर्दाश्त नहीं करती। फासिज्म तानाशाही यही है। लोकतंत्र से चुनकर आकर लोकतंत्र को सीमित करने की कोशिश। नाम संविधान का लेना, सिर पर लगाना। लेकिन काम उसके ठीक विपरीत करना। और आरोप दूसरों पर लगा देना।

हिंसा, क्रुरता, असत्य बोलना और पाखंड यह कि प्रचार करना कि वह करता है। इसे कई बार हम सास दृष्टि या बाराती मानसिकता भी कहते हैं। सास से मतलब महिला नहीं पूरी ससुराल जिसमें पुरुष भी आते हैं जो उस सोच के हों। वे हर आरोप बहु पर मढ़ते रहते हैं। उद्देश्य वही होता है और दबो! ऐसे ही दूसरी हमारे यहां सबसे खराब मानसिकता होती है बारात की। अच्छा भला आदमी भी बारात में बाराती बन जाता है। उसके अंदर का दुष्ट भाव पूरी तरह निकल कर सामने आ जाता है कि यह है तो क्यों है? और यह नहीं है तो क्यों नहीं है ? और झुको!

निशिकांत दुबे के जरिए भाजपा यहीं करवा रही है। सुप्रीम कोर्ट पर हमला और व्यक्तिगत रूप से चीफ जस्टिस संजीव खन्ना पर जब लगा कि मैसेज गलत चला गया तो भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने पार्टी को इससे दूर कर लिया। और निशिकांत दुबे जिनका उपयोग इन दिनों भाजपा सर्वाधिक कर रही है तत्काल दूसरे और असली मुद्दे पर आ गए।

इस बार उन्होंने वही खेल खेला है जो मोदी जी 11 सालों से खेल रहे हैं। मुस्लिम को निशाना बनाना। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी को मुस्लिम आयुक्त बोला। मुस्लिम को निशाने पर रखना। हमेशा संदेह के घेरे में। कोशिश वही कि दूसरे समाज में नफरत बढ़े। कितने आश्चर्य की बात है कि इतने सारे विशेषणों से युक्त मोदी जी जिनमें विश्व गुरु का तमगा भी है 11 साल में भी जीत का कोई सभ्य सुन्दर दुनिया में प्रचारित करने वाला माडल नहीं ढुंढ पाए। वही नफरत भरा विभाजन का तरीका इस्तेमाल किए जा रहे हैं। बांटो और राज करो। हिन्दु मुसलमान, हिन्दु मुसलमान!

एसवाई कुरैशी हों या परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद या कोई भी उर्दू नाम वाला या खुद उर्दू ही इनके लिए सब सिर्फ मुस्लिम हैं। और मुस्लिम मतलब शक के दायरे में। उर्दू पर याद आया उर्दू शब्द के इस्तेमाल तक पर सवाल उठाने लगे हैं। एक बड़ी खूबसूरत नज्म में कहा गया है कि “ मैंने तो कभी खुद को मुसलमां नहीं माना! “ उर्दू पर लिखी इकबाल अशहर की इस नज्म में कहा गया है कि “क्यों मुझ को बनाते हो तअस्सुब का निशाना, मैंने तो कभी खुद को मुसलमां नहीं माना! “ तअस्सुब मतलब भेदभाव।

खैर इनकी जो सियासत है, नफरत फैलाने की लोगों को बांटने की वह कब तक चलेगी और देश को कितना फायदा पहुंचाएगी यह देखने की बात है। भाजपा या मोदी तो यह समझते हैं कि उन्हें सत्ता में बने रहने का अचूक फार्मूला मिल गया है। और वे स्थाई रूप से इस पर काबिज रहेंगे।

शुभकामनाएं! और क्या कह सकते हैं। उन्हें आता ही वह है। बस देखना यह है कि देश कितनी तरक्की करता है। खुद ही खुद को विश्वगुरू कहने से विदेशों में मान कितना बढ़ता है। फिलहाल तो अमेरिका से भारतीय स्टूडेंट निकाले जा रहे हैं। उनके वीजा रद्द किए जा रहे हैं। अमेरिका ने जिन विभिन्न देशों के स्टूडेंट के वीजा रद्द किए हैं उन कुल 327 में से आधे भारतीय हैं। बाकी आधे में बहुत सारे देशों के स्टूडेंट हैं। शायद इसमें भी गर्व कर लें कि पचास प्रतिशत की हिस्सेदारी अकेले हमारी है। बाकी पचास में पूरी दुनिया है।

लोगों का जहन इतना छोटा समझ लिया है कि उन्हें किसी भी बात पर गर्व करने को कह दो समझते हैं वह कर लेंगे। गोबर पर भी! हथकड़ी बेड़ी लगाकर भारत भेजने पर भी। सामने प्रधानमंत्री को बिठाकर भारत का अपमान करने पर भी। किसी पर भी गर्वित हुआ जा सकता है। इस हीनता बोध ( इनफियरटी काम्प्लेक्स) का कोई इलाज नहीं है। इसी के कारण रोज नेहरू का कद छोटा करने की कोशिश होती है। इन्दिरा गांधी और अब राहुल की भी।

मगर राहुल इन सब दौर से निकल चुके हैं। अब उन पर इन तानों, उपहासों, कद कम करने की कोशिश का कोई असर नहीं होता। इसलिए अब उनकी गिरफ्तारी का जाल फैलाया गया है। नेशनल हेरल्ड मामले जिस में एक पैसे का भी यहां से वहां लेनदेन नहीं हुआ उसमें ईडी काला धन ढुंढ रही है। मनी लांड्रिंग। खुद अपनी कही बात भूल जाते हैं। कहा तो यह था कि टेम्पों में भर भर कर नोट कांग्रेस कार्यालय पहुंच रहे हैं। कार्रवाई उस पर करना थी। मगर आजादी का नाम भी मिटाना है। इसलिए उसकी लड़ाई लड़ने वाले नेशनल हेरल्ड को बदनाम किया जा रहा है। नेहरू का वह अख़बार जिसने पूरी दुनिया के सामने आजादी के आन्दोलन की सही तस्वीर रखी। जैसा आज गोदी मीडिया है उस समय भी था।

अंग्रेजों के सारे काले कारनामों को गोरा बनाता था। ठीक आज की तरह। उस समय नेहरू ने वह अख़बार निकाला जो आजादी के आन्दोलन का परचम बन गया। आज तो वह उसकी छाया भी नहीं है। क्या लिखता है क्या नहीं खुद राहुल सोनिया को भी पता नहीं है। अभी जब अहमदाबाद में राहुल संघ के अख़बार आर्गनाइजर का जिक्र कर रहे थे। तो हमने लिखा था कि राहुल को आर्गनाइजर के बारे में तो मालूम है क्या लिखता है मगर क्या अपने अख़बार नेशनल हेरल्ड के बारे में भी कुछ पता है?

खैर वह समस्या कांग्रेस में हर स्तर पर है। राहुल मेहनत बहुत करते हैं। सबसे बड़ा गुण। डरते नहीं हैं। इस बुरे समय में जब खुलकर कहा जाता है कि डरना तो चाहिए! हरेन पंड्या से लेकर जज लोया तक के उदाहरण दिए जाते हैं तब कोई एक आदमी हिम्मत से खड़ा ऱहता है तो यह बड़ी बात है। अंग्रेजों के टाइम में बहुत अत्याचार होते थे। मगर टारगेट किलिंग नहीं होती थीं। एनकाउंटर, बुलडोजर की धमकियां नहीं होती थीं। अभी खुले आम समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को जान से मारने की धमकियां दी जा रही है। ऐसे में राहुल, अखिलेश, तेजस्वी यादव का डटे रहना निश्चित ही रूप से बड़ी बात है। लोकतंत्र के लिए बड़ी उम्मीद है।

और यह उम्मीद टूटे जनता उसी निराशा में रहे। पांच किलो मुफ्त अनाज ही उसके जीवन का उद्देश्य बन जाए इसलिए उसे हिन्दु मुसलमान से बाहर सोचने नहीं देते हैं। जो इसके खिलाफ बोलता है उसके खिलाफ ही एक झूठी कहानी शुरू कर देते हैं।

अदालतों ने तो अभी बलात्कार की दोषी खुद लड़की, नाड़ा तोड़ना, कपड़े उतारने की कोशिश यहां तक कि प्राइवेट पार्ट छूने की कोशिश को भी बलात्कार का प्रयास नहीं माना। ऐसे जाने कितने फैसले हैं जो 11 साल पहले नहीं आ सकते थे। खुद चीफ जस्टिस आफ इन्डिया चन्द्रचूढ़ ने कहा कि हम विपक्ष नहीं हैं। किसने पूछा था? खुद ही सफाई। क्या मतलब? सत्ता पक्ष हैं। और इसीलिए अपने फैसलों के लिए कहते हैं कि वह भगवान ने लिखवाया। सुप्रीम कोर्ट के जज अपना डर लेकर मीडिया के सामने आए। कहा सुप्रीम कोर्ट खतरे में है। लोकतंत्र कैसे बचेगा?

बड़ी लड़ाई है। लोकतंत्र बचाने की। संविधान बचाने की। उनके हमले भी तेज हैं।

रोज नया तरीका लाते हैं। विभाजन की शक की खाई को बढ़ाने का। खाइयों से देश कैसे बनाता है पता नहीं! डूबने का गिरने का खतरा होता है यह सबको पता है। इतिहास यही कहता है ! बाकी तो वे जानें जिनके हाथ में सत्ता है। और वे समझते हैं कि हमेशा रहेगी। अनादि काल तक!

-साभार सहित

Dr. Bhanu Pratap Singh