वृंदावन। वृंदावन में मंदिर परिसरों के विकास और व्यवस्थापन को लेकर सरकार की पहल पर स्थानीय गोस्वामी और सेवायत वर्ग ने कड़ा विरोध जताया है। इस मुद्दे पर शुक्रवार को ब्रज वृंदावन देवालय समिति की कोर कमेटी की एक खास बैठक वृंदावन के जयसिंह घेरा स्थित गंभीरा में हुई।
सेवायतों का सामूहिक विरोध: परंपरा और स्वायत्तता पर कुठाराघात
बैठक में सेवायत आचार्यों ने साफ कहा कि वे मंदिरों के अधिग्रहण के किसी भी प्रयास का ज़ोरदार विरोध करेंगे। उनका कहना है कि सरकार के ये कदम मंदिरों की सदियों पुरानी सेवा परंपरा और उनकी आज़ादी पर सीधा हमला है।
समिति के अध्यक्ष श्री आलोक कृष्ण गोस्वामी की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में सभी सेवायतों ने एक सुर में कहा कि मंदिरों की सेवा परंपरा में किसी भी तरह की सरकारी दखलंदाज़ी स्वीकार नहीं की जाएगी। उनका मानना है कि भोग-राग, सेवाएँ और मंदिरों की आंतरिक व्यवस्थाएँ सेवायतों की धार्मिक ज़िम्मेदारी हैं, जिसे वे युगों से निभाते आ रहे हैं।
प्रस्तावित सुझाव: विकास हो, पर परंपरा से छेड़छाड़ नहीं
सेवायतों ने सुझाव दिया कि श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सरकार बाहर की व्यवस्थाएँ, जैसे सुरक्षा, शौचालय, पेयजल और पार्किंग, विकसित कर सकती है। पर मंदिर के मूल स्वरूप और उसकी सेवाओं में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए। उन्होंने यह भी मांग की कि किसी भी निर्माण कार्य में कंक्रीट और ईंट-पत्थर का ज़्यादा इस्तेमाल न हो। इसके बजाय, मंदिरों के आसपास पारंपरिक पेड़ लगाकर प्राकृतिक कुंज बनाए जाएँ, ताकि ब्रज की आध्यात्मिक और पर्यावरणीय पहचान बनी रहे।
विकास के नाम पर विस्थापन स्वीकार नहीं
बैठक में यह भी साफ किया गया कि ब्रज-वृंदावन में विकास कार्यों की योजना बनाते समय स्थानीय लोगों और परंपरा से जुड़े समुदायों के हितों का ध्यान रखा जाए, न कि सिर्फ पर्यटन को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया जाए।
प्रमुख लोगों की उपस्थिति और चेतावनी
बैठक में आचार्य श्रीवत्स गोस्वामी महाराज (संरक्षक), श्री गोविंद पांडेय (उपाध्यक्ष), श्री कान्तानाथ चतुर्वेदी (उपाध्यक्ष), श्री गोविंद महंत (कोषाध्यक्ष), श्री गोपीनाथ लाल देव गोस्वामी (राजा), श्री विजय किशोर देव गोस्वामी, श्री मनीष पारिख, श्री रामदास चतुर्वेदी, श्री गोपाल कृष्ण गोस्वामी, श्री भगवत स्वरूप शर्मा, श्री बालकृष्ण चतुर्वेदी, श्री लालकृष्ण चतुर्वेदी और श्री जगन्नाथ पोद्दार सहित कई प्रतिष्ठित सेवायत, विद्वान और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए।
बैठक में तय किया गया कि अगर सरकार ने मंदिरों की स्वायत्तता में हस्तक्षेप करना बंद नहीं किया, तो सेवायत समाज एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन और जनजागरण अभियान शुरू करेगा।
यह बैठक का स्पष्ट संदेश था कि बांके बिहारी मंदिर केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि ब्रज की आत्मा है। यहाँ की सेवाएँ, परंपराएँ और रसिक संस्कृति सदियों से चली आ रही हैं। विकास और सुविधाएँ ज़रूरी हैं, लेकिन इसके नाम पर परंपरा और आस्था से खिलवाड़ किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाएगा।
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