आज ‘हर इक पल के शायर’ साहिर लुधियानवी का जन्मदिन है। 8 मार्च 1921 को पैदा हुए साहिर लुधियानवी का असली नाम अब्दुल हई था, उनके जन्मदिन पर हम आपको उनकी जिंदगी की दस ऐसी कहानियां सुना रहे हैं जिससे उनकी शख्सियत का पता चलता है।
बतौर शायर साहिर लुधियानवी की लोकप्रियता सिर्फ हिंदुस्तान में नहीं बल्कि समूचे एशिया में थी. वो कमाल के शायर थे. गुलजार साहब उन्हें जादूगर कहते हैं। साहिर उन चंद शायरों में थे जिनके लिखे फिल्मी गाने गायक या संगीतकार के साथ साथ उनकी कलम के जादू की वजह से भी हिट होते थे। साहिर के लिखे सुपरहिट गानों की तादाद सैकड़ों में है।
पिछले दिनों ये खबर भी आई थी कि संजय लीला भंसाली साहिर लुधियानवी की जिंदगी पर एक फिल्म बनाने जा रहे हैं जिसमें अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय लीड रोल में होंगे। दरअसल साहिर लुधियानवी की जिंदगी में चार महिलाओं का जिक्र होता है। इन्हीं में से एक थीं अमृता प्रीतम। अमृता प्रीतम के साथ साहिर लुधियानवी का रिश्ता लगभग जीवन के अंत तक रहा।
आज साहिर लुधियानवी के जन्मदिन पर हम आपको उनकी जिंदगी की दस ऐसी कहानियां सुना रहे हैं जिससे उनकी शख्सियत का पता चलता है। ये दस कहानियां बतौर गीतकार उन्हें मिली बेशुमार मोहब्बत और कामयाबी के काफी पहले की हैं।
साहिर लुधियानवी के पिता चौधरी फजल मोहम्मद का जीवन अय्याशी भरा था। उन्हें पैसे रुपए की कोई कमी नहीं थी। औरत को वो सिर्फ इस्तेमाल किया करते थे। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन में दस से ज्यादा शादियां कीं। आखिर में उनकी इन्हीं आदतों से नाराज होकर साहिर लुधियानवी की मां ने उन्हें साथ लेकर घर छोड़ दिया। साहिर उस वक्त बहुत छोटे थे।
साहिर के अब्बा ने अपनी बीवी से इस बात पर मुकदमा लड़ा कि बेटे को रखने का अधिकार उन्हें दिया जाए। चौधरी फजल मोहम्मद वो मुकदमा भी हार गए। बाद में उन्होंने अपने गुर्गों से धमकियां दिलवाईं कि अगर साहिर को उन्हें नहीं सौंपा गया तो वो उसका कत्ल करा देंगे लेकिन इन धमकियों से बेखौफ साहिर की मां अपनी जिद पर अड़ी रही। उन्होंने अपने बेटे को साथ रखा। साहिर इसी वजह से अपनी मां से बेइंतहा प्यार करते थे।
साहिर के घर परिवार में शेरो-शायरी का दूर दूर तक कोई चलन नहीं था लेकिन साहिर को शायरी की समझ दी फैयाज हरयाणवी ने। वो खुद भी बड़े शायर थे। साहिर अपने दोस्तों के बीच इसीलिए लोकप्रिय थे क्योंकि उन्हें तमाम बड़े शायरों के कलाम याद थे जिसमें मीर, मिर्जा गालिब समेत कई बड़े शायर थे।
साहिर ने 15-16 साल की उम्र में खुद भी शायरी कहनी शुरू कर दी थी। उन दिनों कीर्ति लहर नाम की एक पत्रिका प्रकाशित होती थी जिसे अंग्रेजों के डर से चोरी छुपे प्रकाशित किया जाता था। साहिर की तमाम गजलेंं और नज्में उस किताब में प्रकाशित होती थीं।
साहिर लुधियानवी को उनके कॉलेज में जबरदस्त तौर पर पसंद किया जाने लगा था। उनके प्रेम प्रसंग भी काफी चर्चा में रहते थे। उनकी लोकप्रिय रचना ‘ताजमहल’ ने उन्हें जबरदस्त लोकप्रियता दिला दी थी। इन सारी बातों के बावजूद उन्हें कॉलेज से निकाला गया। कहा जाता है कि कॉलेज से निकाले जाने के पीछे उनके प्रेम प्रसंग ही थे। इसके बाद साहिर ने लाहौर के दयाल सिंह कॉलेज में दाखिला लिया था। इसके बाद लाहौर के एक और कॉलेज में गए लेकिन तब तक शायरी दिलो-दिमाग में इतना घर कर गई थी कि वो उसी में डूबे रहते थे।
साहिर लुधियानवी के पहले कविता संग्रह का नाम था- तल्खियां। ये संग्रह 1945 में यानि आजादी से पहले प्रकाशित हुआ था। इस किताब के प्रकाशित होने के तुरंत बाद साहिर एक स्थापित शायर के तौर पर पहचाने जाने लगे। इसी साल उन्हें कुछ पत्रिकाओं का संपादक भी बना दिया गया था।
1945 के 10 साल बाद यानि 1955 में साहिर लुधियानवी का दूसरा कविता संग्रह आया। उस कविता संग्रह का शीर्षक था- परछाईंया। इस किताब की भूमिका अली सरदार जाफरी ने लिखी थी। ये कविता संग्रह तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका को केंद्र में लेकर लिखी गई रचनाओं के लिए जाना जाता है।
इस बीच आजादी के बाद की बड़ी दुखद घटना ये थी कि साहिर लुधियानवी की मां को बंटवारे के बाद पाकिस्तान भेज दिया गया। हुआ यूं कि साहिर की मां को पहले रिफ्यूजी कैंप में रखा गया और उसके बाद लाहौर भेज दिया गया था। करीब एक-डेढ़ महीने तक पता लगाने के बाद साहिर लुधियानवी पाकिस्तान अपनी मां से मिलने लाहौर गए। इसके बाद वो कई महीने वहां रहे भी। वहां रहकर उन्होंने कुछ काम भी किया लेकिन उन्हें पाकिस्तान रास नहीं आया। वो वापस हिंदुस्तान आ गए।
साहिर लुधियानवी के हिंदुस्तान आने का किस्सा बड़ा दिलचस्प है। साहिर ने पाकिस्तान में रहने के दौरान सवेरा नाम के एक अखबार के संपादक की जिम्मेदारी संभाल ली थी। इस दौरान उन्होंने कुछ ऐसा लिखा जिसपर हूकूमत को नाराजगी थी। साहिर के खिलाफ वारंट जारी कर दिया गया जिसके बाद साहिर लुधियानवी भेष बदलकर वहां से भागे और दिल्ली आ गए। इस दौरान साहिर लुधियानवी ने आर्थिक तंगी भी झेली।
इससे पहले साहिर ने चुनिंदा फिल्मों के लिए गीत लिखे थे लेकिन 60 के दशक से लेकर अपनी जिंदगी के रहने तक उन्होंने बतौर गीतकार बेशुमार सुपरहिट गाने लिखे। जिसके लिए उन्हें खूब सराहा गया। 1963 में फिल्म ताजमहल और 1976 में फिल्म कभी कभी के लिए गीत के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया था।
Entertainment desk: Legend News
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