बात चाहे आयुर्वेद की करें या फिर होम्योपैथिक चिकित्सा की, ये तरीके भी कारगर हैं। हां, परेशानी तब आती है जब हम सही चिकित्सक का चुनाव न करें या फिर डॉक्टर ने जो हिदायतें दी हैं उन्हें अनसुना करें। जैसे: जब जो दवा लेने के लिए कहा हो, उसे न मानें। इसके अलावा ऐसी चीजें खाएं जिनके लिए मना किया गया है। हर दिन अगर योग में ध्यान और प्राणायाम करने के लिए कहा गया हो तो वह भी न करें।
आयुर्वेद और होम्योपैथ के चिकित्सक अक्सर कहते हैं कि ऐलोपैथी में दवाएं बीमारी को तात्कालिक राहत देने के लिए दी जाती हैं। इससे बीमारी दब तो जाती है, लेकिन अमूमन पूरी तरह ठीक नहीं होती जबकि आयुर्वेद और होम्योपैथी बीमारियों को पूरी तरह ठीक करती है।
यह भी सच है कि अल्टरनेटिव मेडिसिन में बीमारियां ठीक होती हैं, लेकिन इमरजेंसी की स्थिति में ऐलोपैथी ही सबसे कारगर है और जल्द राहत देती है इसलिए इसमें कोई बुराई नहीं है कि ऐलोपैथी के साथ इन माध्यमों को भी अपनाकर इलाज कराएं। हां, इस बात का जरूर ख्याल रखें कि अगर आयुर्वेद और होम्योपैथ जिसे भी अपनाएं, इसकी जानकारी अपने डॉक्टर को दें। वहीं, ऐलोपैथी का इलाज चल रहा है तो आयुर्वेद व होम्योपैथी के चिकित्सक को जरूर बताएं ताकि इलाज में कोई परेशानी न हो। अगर कोई दिक्कत होगी तो डॉक्टर आपको आगाह कर देंगे।
मनोरोगों में देते हैं राहत आयुर्वेदिक तरीके
आयुर्वेद एक चिकित्सा पद्धति से ज्यादा जीवनशैली है। इसे अपनाने से ज्यादातर बीमारियां दूर हो जाती हैं। चूंकि इसमें खानपान से लेकर, सुबह से रात तक की रुटीन-सभी चीजों को दुरुस्त रखना होता है तो शरीर ऊर्जावान बना रहता है। आयुर्वेद से योग को अलग नहीं कर सकते। योगासन करने के साथ जब हर दिन प्राणायाम किया जाता है तो पर्याप्त मात्रा में प्राणवायु (ऑक्सिजन) दिमाग के हर भाग में पहुंचती है। इससे दिमाग की कोशिकाएं पूरी तरह सक्रिय रहती हैं। इसके अलावा ब्राह्मी, जटामांसी आदि का इस्तेमाल करने से भी फायदा होता है। इसके अलावा शिरोधारा का भी अपना फायदा है।
मानसिक बीमारियों के मुख्य प्रकार
1. अवसाद (डिप्रेशन)
बेवजह थकान महसूस होना, उदास मन, बेचैनी, चिड़चिड़ापन, निराशा, सोचने और फैसले लेने में दिक्कत, ध्यान करना मुश्किल, नींद और नशा की दवाओं और शराब का ज्यादा सेवन करना आदि।
2. घबराहट यानी एंग्जायटी
दिल की धड़कनें बढ़ जाना या सांस फूल जाना, मांसपेशियों में तनाव बढ़ना, छाती में खिंचाव महसूस होना, किसी चीज के लिए गैरजरूरी जिद करना आदि।
3. ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (OCD)
आमतौर पर ओसीडी किशोरावस्था में लगभग 19 साल या उससे अधिक उम्र में हो सकती है। यह भी हो सकता है 30 साल की उम्र तक इसके लक्षण दिखें ही न।
-अनचाहे ख्याल बार-बार आना, एक ही काम बार-बार दोहराना, एक ही काम पर अटक जाना, अपने विचारों और बर्ताव पर काबू न होना, सफाई की सनक सवार होना।
5. सिजोफ्रेनिया
भ्रम: व्यक्ति उस चीज को सच मानने लगता है जो सच है ही नहीं। सच न होने के सबूत हैं, फिर भी वह अपनी बात पर अड़ा रहता है।
मतिभ्रम: व्यक्ति उन चीजों को सुनता है, सूंघता है, देखता है, छूता है या महसूस करता है जो वहां नहीं हैं।
ये हैं उपयोगी औषधियां
ब्राह्मी, अश्वगंधा, और जटामांसी जैसी औषधियां दिमाग के लिए टॉनिक का काम करती हैं। इसलिए मानसिक बीमारी को काबू में करने और इलाज के लिए इनका इस्तेमाल किया जा सकता है।
ब्राह्मी: ब्राह्मी तनाव कम करने वाले तत्व के रूप में बहुत मशहूर है। पिछले 3000 बरसों से भारतीय पारंपरिक औषधियों में ब्राह्मी का इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत के प्राचीन ग्रंथों चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में भी इस जड़ी-बूटी का उल्लेख किया गया है। सुश्रुत संहिता में ब्राह्मी घृत और ब्राह्मी को ऊर्जा प्रदान करने वाला बताया गया है।
तनाव और चिंता से राहत देने के लिए ब्राह्मी पौधे की पत्तियों (एक समय में सिर्फ 2-3) को चबाया जा सकता है। ब्राह्मी में कुछ सक्रिय तत्व होते हैं जो हमारे शरीर के हॉर्मोन संतुलन पर सकारात्मक असर डालते हैं। इससे तनाव और चिंता के बुरे असर से बचा जा सकता है।
ब्राह्मी कॉर्टिसोल के स्तर को कम करके तनाव और चिंता को खत्म करने में मदद करती है। दरअसल, कोर्टिसोल को तनाव हाॅर्मोन के रूप में जाना जाता है। ब्राह्मी तनाव से जुड़े हाॅर्मोन सही करके तनाव के असर को कम करती है।
अश्वगंधा: यह प्राचीन औषधीय जड़ी-बूटी है जिसके कई फायदे हैं। यह चिंता और तनाव को कम कर सकती है। अवसाद से लड़ने में मदद करती है। पुरुषों में प्रजनन क्षमता को बढ़ा सकती है और यहां तक कि दिमाग की कार्यक्षमता को भी बढ़ा सकती है।
अश्वगंधा के बारे में ये बातें भी खास हैं:
-भारत में अश्वगंधा को आयुर्वेद में शारीरिक और मानसिक, दोनों के स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के मेडिसिन डिपार्टमेंट में मानसिक स्वास्थ्य पर अश्वगंधा के असर का, खास तौर पर अवसाद (डिप्रेशन) में अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में चिंता और अवसाद के बारे में अश्वगंधा के फायदों को विस्तार से बताया गया है।
-60 दिन तक चिंता से ग्रस्त 64 लोगों पर अध्ययन करने पर पता चला कि जो लोग एक दिन में 600 मिलीग्राम अश्वगंधा खाते थे, उनमें डिप्रेशन 79% तक कम हुआ और जो लोग इसका सेवन नहीं करते थे, उनमें 10% परेशानी बढ़ गई थी।
जटामांसी
जटामांसी डिप्रेशन का मुकाबला करने में मदद करती है। आक्रामक लक्षणों के साथ डिप्रेशन में फायदा लेने के लिए यह मुख्य रूप से अकेले इस्तेमाल की जाती है। यह आक्रामकता, खुदकुशी की मानसिकता और हिंसक बर्ताव को कम करती है। यह बेचैनी, गुस्सा, कुंठा, चिड़चिड़ापन, नींद और ऊर्जा की कमी को भी कम करती है। यह जीवन शक्ति और ताकत बढ़ाती है।
जटामांसी और लौह भस्म के साथ डिप्रेशन के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाती है। इसके लिए 40 ग्राम जटामांसी, 20 ग्राम हींग और 10 ग्राम लौह भस्म को मिलाकर मिश्रण तैयार किया जाता है। 250-500 मिली ग्राम 1 दिन में 2 बार जटामांसी के गर्म अर्क के साथ इसका सेवन किया जाता है।
-जटामांसी में चिंता कम करने वाले गुण होते हैं। यह बेचैनी और घबराहट की भावना को कम करती है। हार्ट रेट को सामान्य, चिंता, कंपन, चिंता की वजह से सोने में मुश्किल आदि को नियंत्रित करने और चिंता विकारों के इलाज के लिए उपयोग की जाती है।
रसायन
कुछ रसायन भी हैं जिनका इस्तेमाल मानसिक बीमारियों को दुरुस्त करने में किया जाता है। जैसे: उन्माद गजकेसरी, अश्वगंधारिष्ट, स्मृतिसागर रस और सारस्वतारिष्ट आदि का इस्तेमाल मानसिक बीमारी के इलाज में फायदेमंद होता है।
मन दुरुस्त करेंगे ये घरेलू नुस्खे
संतरा है बहुत उपयोगी
संतरे और संतरे के छिलके की महक तंत्रिकाओं को शांत करने में मदद करती है। इसके अलावा माना जाता है कि खट्टी सुगंध अवसाद और प्रतिरोधक क्षमता से लड़ने में मदद करती है।
संतरे का इस्तेमाल कैसे करें
1. एक संतरे को छीलकर सूंघें। इससे मूड में बदलाव होता है। बेहतर नतीजे के लिए संतरों के छिलकों को पानी में डाल दें और 10 मिनट के लिए उबालें। उबलने के बाद गर्म भाप सूंघते रहें। इससे तनाव, चिंता आदि की समस्या दूर होगी। जरूरत पड़ने पर दिनभर में 3 से 4 बार दोहरा सकते हैं।
2. इसके अलावा एक कप ताजे संतरे के रस में एक चम्मच शहद और चुटकीभर जायफल पाउडर डालकर पी जाएं। इस मिश्रण को हर दिन तीन बार जरूर पिएं।
जायफल
जायफल एक खुशबूदार मसाला है जो शरीर और मांसपेशियों को आराम देने में मदद करता है। साथ ही तनाव से भी लड़ता है। इसलिए चिंता, तनाव और अवसाद के इलाज में यह बहुत फायदेमंद है। यह भी माना जाता है कि जायफल नींद की गुणवत्ता में सुधार करता है। अपने खाने में आधा चम्मच जायफल का पाउडर मिक्स करके खा सकते हैं।
बादाम
बादाम पोषक तत्वों से भरपूर होता है साथ ही इसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड के भी गुण होते हैं। इसकी मदद से मूड में सुधार आता है और चिंता या अवसाद को कम करने में भी मदद मिलती है। ओमेगा-3 फैटी एसिड में मौजूद ऐंटिइन्फ्लेमेटरी गुण कोशिकाओं की सूजन कम करते हैं और मस्तिष्क की कोशिकाओं को ऐक्टिव करते हैं।
बादाम का इस्तेमाल कैसे करें
1. रातभर 10 बादाम गिरी पानी में भिगोकर रखें।
2. अगली सुबह, बादाम का छिलका उतारकर पेस्ट तैयार करें।
3. अब बादाम का पेस्ट, जायफल पाउडर की एक चुटकी और अदरक को एक कप दूध में मिला दें।
4. अब इस मिश्रण का पी जाएं।
5. इस मिश्रण को हफ्ते भर पूरे दिन में 4 से 5 बार पीने की कोशिश करें।
सौंफ
यह तंत्रिकाओं को शांत करती है और चिंता को कम करने में भी मदद करती है। इसके तेल में चिंता से मुक्त करने के प्रभाव मौजूद होते हैं। इसके अलावा इसमें पाचन संबंधी समस्याओं को भी सुधारने के गुण होते हैं जो खासकर चिंता के समय सामने आते हैं।
ऐसे करें सौंफ का इस्तेमाल
एक टिश्यू पेपर पर सौंफ के तेल की कुछ बूंदें डालें और उसे सूंघें। लगभग एक घंटे के लिए उस टिश्यू पेपर को आराम-आराम से प्रयोग करें। जरूरत हो तो कुछ घंटों में इस प्रक्रिया को दोहराएं।
रोजमेरी
रोजमेरी चिंता की समस्या को दूर करने के लिए एक और लोकप्रिय घरेलू उपाय है। इसके अलावा, यह संचलन को उत्तेजित करता है, श्वसन और पाचन की मांसपेशियों को आराम देता है और यादाश्त पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है।
रोजमेरी का इस्तेमाल कैसे करें
1. एक कप गर्म पानी में एक या दो चम्मच रोजमेरी डालें। 10 मिनट के लिए उबालकर छान लें। इस मिश्रण को पी जाएं। इस चाय का उपयोग रोजाना अच्छा परिणाम दिखने तक करें।
2. रोजमेरी को धूप की तरह भी इस्तेमाल कर सकते हैं। अरोमा थेरपी में कुछ बूंद रोजमेरी के तेल की डालें और उसका इस्तेमाल सूंघने के लिए करें।
लैवेंडर तेल से अरोमा थेरपी
लैवेंडर के इस्तेमाल से शरीर को आराम मिलता है और अवसाद से भी राहत मिलती है। इसके रसायन जैसे लिनालूल और लिनियल तंत्रिका तंत्र पर शांत और सुखदायक असर डालते हैं।
लैवेंडर का इस्तेमाल कैसे करें
1. सबसे पहले दो कप पानी उबालें। अब उसमें लैवेंडर तेल की दो से चार बूंदें डाल दें। चिंता की समस्या को दूर करने के लिए इस मिश्रण की गर्म भाप सूंघें। जरूरत के हिसाब से इस प्रक्रिया को दोहराते रहें।
2. इसके अलावा तीन से चार बूंद लैवेंडर तेल, एक चम्मच बादाम तेल, जैतून तेल या कोई सामान्य तेल एक साथ मिलाएं। इस मिश्रण को गर्दन, पीठ और कंधे पर लगाएं और मालिश करें। इस प्रक्रिया को रोजाना तब तक करें, जब तक स्थिति सुधर नहीं जाती।
लेमन बाम
लेमन बाम पुदीने के परिवार से जुड़ा एक सदस्य है। यह मस्तिष्क को आराम देता है और नर्वस टॉनिक के रूप में भी काम करता है। इसलिए इसे काफी समय से चिंता को कम करने, नींद को बढ़ावा देने और भूख में सुधार करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। लेमन बाम को वेलेरीयन, ग्रीन-टी, लैवेंडर अन्य जड़ी-बूटियों के साथ मिलाकर भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
लेमन बाम का इस्तेमाल कैसे करें
एक चम्मच सूखे लेमन बाम को 10 से 15 मिनट के लिए गर्म पानी में उबाल लें। ध्यान रहे कि उस बर्तन को जरूर ढककर रखें, नहीं तो लेमन बाम की सुगंध खुले में उड़ सकती है। अब इस मिश्रण को रात को सोने से पहले हफ्ते भर तक जरूर पिएं। इस मिश्रण को दो हफ्ते से ज्यादा न लें।
रिलैक्सिंग बाथ
गर्म पानी के गुण आपको चिंता और तनाव से राहत प्रदान करते हैं। इसके अलावा, पानी इन सभी प्रभावों को कम करने में बढ़िया माना जाता है।
रिलैक्सिंग बाथ का इस्तेमाल कैसे करें
1. सबसे पहले एक टब को गर्म पानी (बर्दाश्त करने लायक यानी गुनगुना से कुछ ज्यादा) से पूरा भर दें। अब उसमें एक तिहाई कप बेकिंग सोडा और अदरक मिलाएं। फिर उस टब में 10 से 15 मिनट के लिए बैठ जाएं। अगर टब मौजूद नहीं है तो मग का भी इस्तेमाल करके उस मिश्रण से स्नान कर सकते हैं।
2. इसके अलावा आप पांच से सात बूंद कैमोमाइल, लैवेंडर, जेरेनियम, बर्गमोट, जोजोबा जैसे तेलों को भी अपने नहाने के पानी में मिक्स कर सकते हैं। फिर उस पानी से 10 से 15 मिनट तक नहाने का प्रयास करें
साउंड हीलिंग से मन की परेशानी दूर
इस ब्रह्मांड में साउंड (ध्वनि) एकमात्र ऐसी ऊर्जा है जो तीनों अवस्थाओं (ठोस-द्रव्य-गैस) से होकर गुजर सकती है। आयुर्वेद के हिसाब से हमारा शरीर वात-पित्त-कफ के सही संतुलन से ही स्वस्थ रहता है, जिसमें ठोस-द्रव्य-गैस तीनों ही तत्व पाए जाते हैं। जब सिंगिंग बाउल से ध्वनि और कंपन के विशेष प्रकार के समायोजन से आवाज़ शरीर में आती है तो हमारे शरीर की सेल्स ऐक्टिव होती हैं। इससे मेंटल स्टेट चेंज होती है। सूक्ष्म ब्लॉकेज खुल जाते हैं, जिससे मानसिक और शारीरिक स्तर पर लाभ होता है।
साउंड हीलिंग कब लेनी चाहिए
स्वस्थ मानसिक अवस्था: जिस व्यक्ति को ऐसा लगता है कि वह मानसिक रूप से पूरी तरह से स्वस्थ है, वह भी साउंड हीलिंग ले सकता है।
नींद न आना: ऐसे व्यक्ति को एक या दो साउंड हीलिंग के सेशन में काफी राहत मिल सकती है। ऐसे बाउल खरीदकर घर पर ही मेडिटेशन कर सकते हैं। काफी राहत मिल सकती है।
नकारात्मकता के कारण नौकरी, परिवार, रिश्ते या जिंदगी से दूर जाने का ख्याल आना: ऐसे ख्यालात वाले व्यक्ति को साउंड हीलर के पास जाने की बहुत जरूरत है। इसका बकायदा तीन से चार सेशन या उससे ज्यादा सेशन का साउंड हीलिंग कोर्स जरूर करना चाहिए। इस दौरान अगर वह साइकॉलजिस्ट के संपर्क में रहेगा तो और भी अच्छा रहेगा।
घर में ऐसा मानसिक रोगी हो जो 15 मिनट से धैर्य से न सुन पाए: ऐसे मानसिक रोगी जो बहुत ज्यादा हिंसक, उतावले होते हैं और जो धैर्य के साथ न तो 15 मिनट बैठ सकते हैं और न ही लेट सकते हैं, उन्हें साउंड हीलिंग सेशन देना बेहद कठिन हो सकता है। ऐसे व्यक्तियों को पहले डॉक्टरी सलाह या दवा की मदद से इस लायक बनाया जाए ताकि वे शांति से बैठ सकें या फिर उनके परिवार के सदस्य साउंड हीलिंग सेशन लेने के लिए तैयार हो जाएं।
आध्यात्मिक और अध्ययन अभ्यास के लिए: ऐसे व्यक्ति जो पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं और मेडिटेशन करते हैं तो ऐसे लोगों के लिए एक सेशन ही काफी है। फिर वे कोई भी मेडिटेशन के लिए छोटा बाउल खरीद कर घर पर भी मेडिटेशन कर सकते हैं। इससे मेडिटेशन बहुत अच्छा होगा।
इनसे भी फायदा
-तिब्बती बाउल्स के अलावा कोई राग, किसी खास गाने का म्यूजिक, क्लासिकल म्यूजिक आदि के इंस्ट्रूमेंट्ल साउंड सुनाए जाते हैं। हां, इनसे कम गंभीर मामलों में फायदा होता है। अगर स्थिति गंभीर हो तो तिब्बती बाउल्स वाली साउंड हीलिंग ज्यादा फायदेमंद होती है।
-वैसे सामान्य नींद या डिप्रेशन की परेशानी में भी यह काम करती है।
-हर म्यूजिक की अपनी फ्रीक्वेंसी होती है। वहीं ब्रेन में भी अलग-अलग फ्रीक्वेंसी पर अलग-अलग हिस्से काम करते हैं। जब किसी खास हिस्से में परेशानी होती है तो उसी फ्रीक्वेंसी की साउंड दिमाग के उस हिस्से तक पहुंचाई जाती है। इसे विज्ञान की भाषा में आसलेशन (Oscillation) कहते हैं।
कई ऐप मौजूद हैं जिनका उपयोग किया जा सकता है:
1. Binaural Beats Brain Waves
उपयोग: नींद के लिए, ध्यान एकत्रित करने के लिए।
प्लैटफॉर्म: एंड्रॉयड
2. Binaural Beats
उपयोग: पढ़ाई में ध्यान लगाने के लिए
प्लेटफॉर्म: एंड्रॉयड
3. Meditopia
उपयोग: नींद और मेडिटेशन के लिए
प्लेटफॉर्म: एंड्रॉयड और iOS
4. Deep Sleep: Sleep Sounds
उपयोग: अनिद्रा की परेशानी में
प्लैटफॉर्म: एंड्रॉयड
योग
योगासन: ये मन की बीमारी होने से बचने और हो जाने पर दुरुस्त होने में बहुत उपयोगी हैं। आसन से शरीर में खिंचाव लाते हैं और कई प्रकार के हार्मोंस को उत्तेजित करते हैं। इसके साथ ही यह तंत्रिका तंत्र को भी ठीक करता है। इनसे दिमाग शांत होता है और शरीर को आराम मिलता है। नर्वस सिस्टम ठीक होने से शरीर में एंडोर्फिन हार्मोंस निकलते हैं।
ये आसन करें
बालासन, वृक्षासन, वीरभद्रासन, शीर्षासन, उष्ट्रासन, सेतुबंधासन, पश्चिमोत्तानासन, धनुरासन, शवासन। इनसे काफी फायदा मिलता है।
कितनी देर: 15 से 20 मिनट
प्राणायाम: अनुलोम-विलोम:
कितनी देर: 10 से 15 मिनट
रिलैक्सेशन टेक्नीक
जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि वे तरीके जिनसे मन और तन को आराम मिलता हो।
मेडिटेशन: दिन में 2 बार कम से कम 5-5 मिनट के लिए मेडिटेशन करने से काफी फायदा होता है। इसके लिए किसी समतल जमीन पर चटाई बिछाकर और शांत जगह पर करने से फायदा होता है।
डीप ब्रीदिंग: गहरी सांस लेना। सांस सही तरीके से लेना। हमारी सांस की खूबी ऐसी हो:
जब हम सांस अंदर खींचते हैं तो हमारा पेट और छाती बाहर की ओर निकलना चाहिए। इसी तरह जब हम सांस छोड़ते हैं तो पेट और छाती अंदर की ओर आनी चाहिए।हमें सांस लेने में जितना वक्त लगता है, उससे ज्यादा वक्त उसे छोड़ने में लगाना चाहिए।
होम्योपैथी
मानसिक बीमारियों में होम्योपैथी का विशेष इलाज है क्योंकि होम्योपैथी में मन के विकार को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। होम्योपैथी में कहा जाता है कि बीमारी दिमाग से शुरू होती है और कोई भी व्यक्ति पहले इमोशनल और मेंटल लेवल पर बीमार होता है और उसके बाद शरीर में बीमारी आती है।
नोट: कोई भी दवा या उपाय चिकित्सक या एक्सपर्ट की सलाह से ही करें। दवा की मात्रा मरीज की स्थिति, उम्र आदि पर निर्भर करती है।
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