आगरा। भारत का सबसे प्रसिद्ध और विश्व धरोहर स्मारक ताजमहल समय-समय पर तरह-तरह की अफवाहों और दावों का केंद्र रहा है। हाल के वर्षों में सबसे ज्यादा चर्चा तथाकथित “22 कमरों” को लेकर हुई, जिनके बारे में सोशल मीडिया और कुछ तथाकथित इतिहासकार तरह-तरह के दावे करते रहे। कभी इन्हें “गुप्त तहखाना” कहा गया, तो कभी “मंदिर के अवशेष” बताए गए। लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेज़, पुरातात्विक सर्वेक्षण और विशेषज्ञों की रिपोर्ट्स इस पूरे विवाद को पूरी तरह खारिज कर देती हैं।
तहखाने का सच
दरअसल ताजमहल के तहखाने और अन्य हिस्से 1900 तक आम जनता के लिए खुले रहते थे। कोई भी पर्यटक वहां तक जा सकता था। इन तहखानों में न तो कभी कोई मूर्ति पाई गई और न ही धार्मिक चिह्न। इन्हें बंद करने का कारण धार्मिक या ऐतिहासिक नहीं, बल्कि सुरक्षा और संरचना की मजबूती था।
ताजमहल के नीचे बने ये गलियारे दरअसल उस मुख्य ढांचे का आधार हैं, जिन पर यह पूरी इमारत टिकी हुई है। भीड़ और पर्यटकों की आवाजाही से इनकी संरचना को खतरा हो सकता था। इसी कारण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने सुरक्षा की दृष्टि से इन्हें आम लोगों के लिए बंद कर दिया।
विशेषज्ञों और संस्थानों की जांच
ताजमहल के तहखाने एएसआई और देश-विदेश की कई वैज्ञानिक संस्थाओं के लिए हमेशा से खुले रहे हैं।
- 1993 में रुड़की विश्वविद्यालय और नेशनल जियोग्राफिक रिसर्च इंस्टीट्यूट ने ताजमहल और उसके तहखानों का वैज्ञानिक सर्वे किया।
- इसमें इलेक्ट्रिकल और मैग्नेटिक प्रोफाइलिंग तकनीक, ग्रेविटी एंड जियो रडार तकनीक और सीस्मिक रिफ्लेक्शन जैसी आधुनिक विधियों का इस्तेमाल हुआ।
- रिपोर्ट में पाया गया कि मुख्य गुंबद और असली कब्रों के नीचे का हिस्सा ठोस है, खाली नहीं।
- तहखानों की दीवारें तीन मीटर मोटी हैं और ताजमहल की नींव 90 मीटर गहरी चट्टानों तक सुरक्षित है।
भविष्य में भूकंप जैसे प्राकृतिक आपदाओं से ताजमहल को होने वाले खतरे का आकलन भी इसी दौरान किया गया।
“22 कमरे” की हकीकत
सर्वे रिपोर्ट्स और एएसआई के मुताबिक ताजमहल में 22 कमरे नाम की कोई संरचना नहीं है। तहखाने में कुछ छोटे-छोटे बंद कक्ष जरूर हैं, जिन्हें संरक्षण कारणों से सील किया गया है।
पूर्व अधीक्षण पुरातत्वविद और पद्मश्री सम्मानित के.के. मुहम्मद ने भी स्पष्ट कहा था कि ये तहखाने एएसआई के लिए हमेशा से खुले हैं। वे खुद कई बार वहां संरक्षण कार्यों के लिए गए, लेकिन किसी भी प्रकार का धार्मिक प्रतीक या चिह्न कभी नहीं देखा।
अदालत का रुख
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी इस विषय पर दाखिल याचिकाओं को खारिज करते हुए साफ कहा कि इतिहास तथ्यों और शोध पर आधारित होता है। इसे अफवाहों और व्यक्तिगत धारणाओं के आधार पर नहीं बदला जा सकता। अदालत ने याचिकाकर्ताओं से दो-टूक कहा – “पढ़ाई करो, रिसर्च करो, इतिहास किताबों और प्रमाणों से लिखा जाएगा, आपकी कल्पनाओं से नहीं।”
निष्कर्ष
ताजमहल भारत की अमूल्य धरोहर है और इसका संरक्षण सभी की जिम्मेदारी है। “22 कमरे” जैसी अफवाहें न केवल इतिहास के साथ छेड़छाड़ करती हैं बल्कि समाज में भ्रम भी फैलाती हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों और पुरातत्व सर्वेक्षणों से यह बात बार-बार साबित हो चुकी है कि ताजमहल एक स्थापत्य चमत्कार है, जिसकी नींव और संरचना पूरी तरह सुरक्षित है।
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