सरकारी वेबसाइटों पर सूचनाओं के अधूरे खुलासे को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्‍त

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आगरा। सरकारी वेबसाइटों पर सूचनाओं के अधूरे खुलासे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार व 28 राज्यों को दिनांक 21.01.2022 को नोटिस जारी किये हैं जो कि आगरा नगर के वरिष्ठ अधिवक्ता के सी जैन की जनहित याचिका पर किये गये। यह याचिका सूचना अधिकार अधिनियम के प्रभावी कार्यान्वयन की दिशा में एक बड़ी पहल है।

अधिवक्ता जैन ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष स्वयं वर्चुअल सुनवाई के माध्यम से अपनी बात विस्तार से रखी और कहा कि सूचना अधिकार अधिनियम की धारा-4 उसकी आत्मा व भावना है जिसके अनुसार सभी लोक प्राधिकारियों द्वारा स्वतः अधिक से अधिक सूचनाओं को अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराना है और इसका उद्देश्य यही है कि सूचनाऐं लेने के लिए किसी भी व्यक्ति को आवेदन पत्र लगाने की आवश्यकता कम से कम पड़े लेकिन केन्द्रीय सूचना आयोग की 2018-19 व 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि धारा-4 के अनुसार अपनी वेबसाइटों पर समस्त सूचनाऐं देेने के मामले में अधिकांश लोक प्राधिकारी बहुत पिछड़े हुए हैं जिसके लिए यह आवश्यक है कि सुप्रीम कोर्ट इस सम्बन्ध में आदेश कर दे ताकि धारा-4 एकमात्र दिखावे का प्राविधान ना रहे।

अधिवक्ता जैन द्वारा न्यायालय के समक्ष यह बात भी रखी गयी कि केन्द्र सरकार द्वारा अधिनियम की धारा-26 के अन्तर्गत एक कार्यालय ज्ञाप दिनांक 07.11.2019 को जारी किया गया था जिसके अनुसार प्रत्येक लोेक प्राधिकारी के लिए यह अनिवार्य था कि वह धारा-4 के अनुपालन में अधिक से अधिक सूचनाऐं वेबसाइट पर उपलब्ध कराये और इसका प्रतिवर्ष तृतीय पार्टी ऑडिट भी अनिवार्य रूप से करायें। लेकिन इस कार्यालय ज्ञाप के बावजूद भी केन्द्र सरकार के अन्तर्गत आने वाली लगभग दो तिहाई लोक प्राधिकारी द्वारा अपना ऑडिट ही नहीं कराया गया। यही नहीं, जिन एक तिहाई लोक प्राधिकारियों द्वारा अपना तृतीय पार्टी ऑडिट कराया भी गया, उनमें आधे से अधिक का ग्रेड बहुत ही निम्न आया जो दर्शाता था कि उनके द्वारा भी बहुत कम सूचनाऐं अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध करायी गयीं थीं।

अधिवक्ता जैन द्वारा यह बात भी रखी गयी कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए सूचना अधिकार अधिनियम को सफल बनाया जाना जरूरी है ताकि सरकारी कार्यों में पारदर्शिता आ सके। वर्तमान में लाखों की संख्या में सूचना आवेदन पत्र प्रति वर्ष लगाये जाते हैं लेेकिन यदि सूचनाओं को लोक प्राधिकारी अपनी वेबसाइट पर स्वतः उपलब्ध करा दें, तो न तो लोगों को सूचना के लिए आवेदन पत्र लगाने की आवश्यकता होगी और न ही सरकारी कार्यालयों मेें सूचना देने का भार आयेगा।

सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति द्वय संजय किशन कौल एवं एम.एम.सुन्दरेश की खण्डपीठ ने जैन अधिवक्ता के तर्कों को सुनने के उपरांत विपक्षी केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों को नोटिस जारी करने के आदेश जारी कर दिये हैं और अब इस याचिका में 11 मार्च 2022 तिथि नियत है।

अधिवक्ता जैन ने यह भी कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका अन्ततः स्वीकार कर ली जाती है तो सूचना अधिकार अधिनियम कहीं अधिक कारगर सिद्ध होगा। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश दिलीप गुप्ता ने कहा कि यह याचिका व्यवस्था में निश्चित रूप से परिवर्तन ला सकेगी। पूर्व केन्द्रीय सूचना आयोग शैलेष गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जैन अधिवक्ता को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी है। आगरा डवलपमेन्ट फाउन्डेशन के अध्यक्ष पूरन डावर द्वारा भी इस सफलता पर हर्ष व्यक्त किया गया।

अधिवक्ता जैन द्वारा सूचना अधिकार अधिनियम को लेकर इसके पूर्व भी सुप्रीम कोर्ट में चार याचिकाऐं दायर की जा चुकी हैं जिसमें से दो याचिकाऐं वर्ष 2018 में स्वीकार हो चुकी हैं जिसके परिणामस्वरूप विधान सभा एवं विधान परिषद् द्वारा सूचना आवेदन पत्र का निर्धारित शुल्क रू0 500/- से घटाकर रू0 50/- हो गया। अन्य एक याचिका देश के सभी उच्च न्यायालयों व उनके अधिनस्थ न्यायालयों के सम्बन्ध में है जिसमें ऑनलाइन आवेदन पत्र व ऑनलाइन अपील की सुविधा की मांग की गयी है और इस याचिका में भी सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों को नोटिस जनवरी 2021 में जारी कर दिया है। इसके अतिरिक्त एक अन्य जनहित याचिका अधिवक्ता जैन द्वारा देश के सभी राज्य सूचना आयोगों के विरूद्ध दायर की है जिसमें सूचना आयोगों द्वारा वर्चुअल सुनवाई की मांग रखी गयी है। इस याचिका में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश शरद अरविन्द बोबड़े की बेंच ने दिनांक 20.04.2021 को नोटिस जारी किये थे।

अधिवक्ता जैन द्वारा यह आशा व्यक्त की गयी कि ये याचिकाऐं सूचना अधिकार अधिनियम के वर्तमान परिदृश्य में व्यापक परिवर्तन लायेंगी।

 

Dr. Bhanu Pratap Singh