आरएसएस प्रचारक आनंद जी ने अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, श्रीलंका का जिक्र किया
चार्ल्स क्लैरेंस ने ब्रिटिश संसदीय प्रणाली के अन्धानुकरण के नुकसान बताए
डॉ. एमपीएस वर्ल्ड स्कूल में मनाया गया अखंड भारत संकल्प दिवस
Agra, Uttar Pradesh India. उत्तर प्रदेश के आगरा में सिकंदरा स्थित डॉ. एमपीएस वर्ल्ड स्कूल (Dr MPS world school) में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पश्चिम महानगर तथा उसके अनुषांगिक संगठनों की ओर से अखंड भारत संकल्प दिवस मनाया गया। प्रतिवर्ष 14 अगस्त को मनाए जाने वाले अखंड भारत संकल्प दिवस को सभागार में उपस्थित सभी छात्र छात्राओं ने अखंड भारत का संकल्प दोहराया गया। साथ ही अखंड भारत के सपने को साकार करने का आह्वान किया। भारत को अखंड करने के लिए वायु सेना में सेवाएं दे चुके स्क्वाड्रन लीडर एके सिंह ने नई अवधारणा प्रस्तुत की।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि एवं डॉ. एमपीएस ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरपर्सन स्क्वाड्रन लीडर एके सिंह (squadron leader ak singh) ने कहा – 15 अगस्त को हमें आजादी जरूर मिली मगर मातृभूमि के विभाजन का घाव भी हमें सहना पड़ा| सैन्य सामर्थ्य भारत के पास है, लेकिन क्या निकटस्थ देशों पर जीत से अखंड भारत बन सकता है? जब लोगों में मनोमिलन होता है, तभी राष्ट्र बनता है।
उन्होंने कहा कि अखंडता का मार्ग सांस्कृतिक है, न की सैन्य कार्रवाई या आक्रमण। देश का नेतृत्व करने वाले नेताओं के मन में इस संदर्भ में सुस्पष्ट धारणा आवश्यक है। भारत की अखंडता का आधार भूगोल से ज्यादा संस्कृति और इतिहास में है। खंडित भारत में एक सशक्त, तेजोमयी राष्ट्रजीवन खड़ा करके ही अखंड भारत के लक्ष्य की ओर बढ़ना संभव होगा|
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे एमपीएस वर्ल्ड स्कूल के प्रधानाचार्य चार्ल्स क्लैरेंस ने संबोधित करते हुए कहा कि विभाजन के पश्चात् खंडित भारत की अपनी स्थिति क्या है? ब्रिटिश संसदीय प्रणाली के अन्धानुकरण ने समाज को जाति, क्षेत्र और दल के आधार पर जड़मूल तक विभाजित कर दिया है|

कार्यक्रम में मुख्य वक़्ता के तौर पर अपना उद्बोधन देते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवगक संघ के आगरा विभाग प्रचारक आंनद जी ने कहा कि अखण्ड भारत महज सपना नहीं, श्रद्धा है, निष्ठा है। जिन आंखों ने भारत को भूमि से अधिक माता के रूप में देखा हो, जो स्वयं को इसका पुत्र मानता हो, जो प्रात: उठकर “समुद्रवसने देवी पर्वतस्तन मंडले, विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यम् पादस्पर्शं क्षमस्वमे “कहकर उसकी रज को माथे से लगाता हो, वन्देमातरम् जिनका राष्ट्रघोष और राष्ट्रगान हो, ऐसे असंख्य अंत:करण मातृभूमि के विभाजन की वेदना को कैसे भूल सकते हैं। अखण्ड भारत के संकल्प को कैसे त्याग सकते हैं? किन्तु लक्ष्य के शिखर पर पहुंचने के लिये यथार्थ की राह पर आगे बढ़ कर इस संकल्प को पूर्ण करना होगा|
उन्होंने कहा कि 1947 का विभाजन पहला और अन्तिम विभाजन नहीं है। भारत की सीमाओं का संकुचन उसके काफी पहले शुरू हो चुका था। सातवीं से नवीं शताब्दी तक लगभग ढाई सौ साल तक अकेले संघर्ष करके हिन्दू अफगानिस्तान इस्लाम के पेट में समा गया। हिमालय की गोद में बसे नेपाल, भूटान आदि जनपद अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण आक्रमण से बच गये परंतु भारत से अलग हो गये| अपनी सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा के लिये उन्होंने राजनीतिक स्वतंत्रता का मार्ग अपनाया पर अब वह राजनीतिक स्वतंत्रता संस्कृति पर हावी हो गयी है। श्रीलंका पर पहले पुर्तगाल, फिर हॉलैंड और अन्त में अंग्रेजों ने राज्य किया और उसे भारत से पूरी तरह अलग कर दिया। उन्होंने अखण्डित भारत के संकल्प को याद दिलाते हुए सभी से अखण्डित भारत के लिए अपना योगदान देने का आग्रह किया|
कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रवल प्रताप सिंह ने किया। इस अवसर पर कैलाश शक्तिपीठ मंहत निर्मल गिरि गोस्वामी, समाज सेवी सुभाष ढल, नगर प्रचारक दिलीप, विनीत शर्मा सहित संस्थान के सभी अधिकारी, कर्मचारी व छात्र छात्राएं उपस्थित रहे|
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