श्वेताम्बर जैन संत जय मुनि जी महाराज ने ‘भगवान महावीर की करुणा यात्रा’ पर दिए प्रवचन में बेटियों के समान अधिकार पर दिया जोर

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आगरा: श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट, आगरा के तत्वाधान में जैन स्थानक महावीर भवन में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचनों में प्रतिदिन ज्ञान की गंगा बह रही है। आज आगमज्ञान रत्नाकर, बहुश्रुत परम पूज्य जय मुनि जी महाराज ने ‘भगवान महावीर की करुणा यात्रा’ को आगे बढ़ाते हुए पारिवारिक करुणा के महत्व पर प्रकाश डाला।

उन्होंने बताया कि भगवान महावीर की करुणा अपनी पुत्री प्रियदर्शना के लिए भी थी, जिन्हें उन्होंने बड़े नाज़ों से पाला।
मुनि श्री ने कन्याओं के प्रति ऐतिहासिक अत्याचारों और भेदभाव का उल्लेख करते हुए कहा कि एक समय था जब कन्या भ्रूण-हत्याएँ आम थीं और बेटियों को बेटों की तुलना में कम शिक्षा दी जाती थी, यहाँ तक कि बीमारी में भी उनकी उपेक्षा की जाती थी। हालांकि, उन्होंने संतोष व्यक्त किया कि अब परिस्थितियाँ बदल गई हैं और बेटा-बेटी में कोई फर्क नहीं है। उन्होंने कहा, ‘जिस घर में बेटी न हो, वह दहलीज कुंवारी है।’

जय मुनि जी महाराज ने माता-पिता से पुत्र-पुत्रियों को समान अधिकार देने का आग्रह किया, क्योंकि किसी एक को अधिक महत्व देने से करुणा का झरना सूख जाएगा। उन्होंने बेटियों को शिक्षित करने के साथ-साथ धार्मिक और सुसंस्कृत बनाने पर भी जोर दिया, ताकि वे अपने परिवार के सदस्यों पर करुणा बरसा सकें। साथ ही, उन्होंने माता-पिता को बेटियों के पारिवारिक जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप न करने की सलाह दी, ताकि उन्हें मिले सुसंस्कार उनके परिवार को भी खुशहाल रख सकें।

गुरु आदीश मुनि जी महाराज ने बताए सुख प्राप्ति के सूत्र, निष्काम सेवा पर दिया विशेष बल:

गुरु हनुमंत, हृदय सम्राट पूज्य श्री आदीश मुनि जी महाराज ने अपने विषय ‘सुख पाने के सूत्र’ को आगे बढ़ाते हुए जीवन में सुख प्राप्ति के लिए निष्काम सेवा का आदर्श अपनाने का संदेश दिया। उन्होंने बताया कि उत्तराध्ययन सूत्र के 29वें अध्याय में इसे ‘व्यावृत्त’ भी कहा गया है। निष्काम सेवा करने वाले को तीर्थकर नाम गोत्र का उपार्जन होता है, जो पुण्य की सर्वश्रेष्ठ और सबसे ऊंची प्रवृत्ति है।

पूज्यश्री ने बताया कि निष्काम सेवा से अनुकम्पा अर्थात् दया का भाव उत्पन्न होता है, जो सम्यक्त्व का लक्षण है। उन्होंने सेवा के दो प्रकार बताए: निष्काम सेवा (बिना किसी कामना या इच्छा के सेवा करना) और सकाम सेवा (जैसे बच्चों का पालन-पोषण इस उम्मीद से कि वे बड़े होकर हमारी सेवा करें)। आज के युग में सेवा के कई क्षेत्र खुले हैं, जैसे मन से, वचन से, शरीर की सेवा, अभावग्रस्त, बीमार और समाज की सेवा। उन्होंने यह भी बताया कि निष्काम सेवा करने से मन के तनाव दूर हो जाते हैं।

पूज्यश्री ने सेवा करने वालों में कुछ आवश्यक गुणों का भी उल्लेख किया, जिनमें मीठे बोल, सहनशक्ति, सक्रियता, विनम्रता और आलस्य से दूर रहना शामिल है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि निष्काम सेवा द्वारा दूसरों को सुख देने से हमें भी जीवन में सुख मिलेगा।

पूज्य विजय मुनि जी महाराज ने बताया पुण्य का महत्व, परोपकार को बताया सर्वोपरि पुण्य:

पूज्य श्री विजय मुनि जी महाराज ने प्रवचनों में पुण्यों की महत्ता बताते हुए कहा कि पुण्य का अर्थ शुभ कर्म है। शास्त्रों में पुण्य के नौ भेद बताए गए हैं। उन्होंने परोपकार को सबसे बड़ा पुण्य बताते हुए कहा कि परहित में ही स्वहित निहित है। जो दूसरों की भलाई करता है और उनकी मदद करता है, उसका इस लोक में और परलोक में भी कल्याण होता है। पुण्य को एक अदृश्य धन बताया गया।

धर्म सभा के अंत में गुरुदेव ने आज के त्याग के रूप में हलवा, हरी चटनी और हरी मिर्च के अचार का त्याग करने की शपथ दिलाई। इस धर्म सभा में तपस्या की भी अविरल धारा बह रही है, जिसमें बालकिशन का बीसवां आयम्बिल, दिव्या का सातवां और उमा रानी का चौथा उपवास चल रहा है।

आज की धर्म सभा में सूरत, दिल्ली और होशियारपुर से आए धर्म प्रेमियों ने भी गुरुदेव के प्रवचनों का लाभ लिया।

Dr. Bhanu Pratap Singh