कचरा प्रबंधन, भीड़ प्रबंधन, भोजन प्रबंधन, श्रद्धा का चंदन, वीआईपी का वंदन
अद्भुत, अकल्पनीय, अविस्मरणीय, अनुकरणीय, अनुसंधानीय, अकथनीय
डॉ. भानु प्रताप सिंह
Agra, Uttar Pradesh, India. बाबा श्रीमनःकामेश्वर नाथ के भंडारा के बारे में क्या लिखूँ और क्या-क्या न लिखूँ। यह अद्भुत है। अकल्पनीय है। अनुकरणीय है। अविस्मरणीय है। अकथनीय है। इससे भी आगे चलें तो अनुसंधानीय है। आखिर यह होता कैसे है? हजारों लोग चले आ रहे हैं। प्रसाद पाए जा रहे हैं। भंडार फिर भी भरा हुआ है। कहीं गंदगी नहीं। कोई हायतौबा नहीं। कहीं हो-हल्ला नहीं। कचरा प्रबंधन। भीड़ प्रबंधन। भोजन प्रबंधन। श्रद्धा का चंदन। वीआईपी का वंदन। सबकुछ अनोखा।
मनकामेश्वर मंदिर जाना अपने आप में कठिन श्रम करना है। वहां तक वाहन पहुंचना मुश्किल है। दोपहिया वाहन को भी अन्य वाहनों के बीच में ठूँसना पड़ता है। फिर भी प्रतिदिन हजारों लोग बाबा मनकामेश्वर नाथ के दर्शन करके दिवस का शुभारंभ करते हैं। सबकी मनोकामना पूर्ण करने वाले बाबा मनकामेश्वर नाथ का भंडारा कोरोना काल के कारण नहीं हो पाया था। अब कोरोना शांत है तो बाबा के भक्त निकल पड़े भंडारा कराने।

सड़क पर बाबा का फूल बंगला सजाया गया। दरेसी नम्बर-1 की सड़क पर कुर्सी-मेज लगाई। सड़क पर बिछावन बिछाई। कुछ खास लोगों के लिए अलग से स्थान बनाया। मंत्रों के बीच महंत योगेश पुरी ने आह्वान किया। बड़े मंहत हरिहर पुरी ने व्यस्थाएं संभाली। भंडारा शुरू हो गया। इससे पहले महंत योगेश पुरी ने जयकारे लगवाए। सबसे कहा कि प्रसाद पाने से पहले भगवान का ध्यान अवश्य करें। जो भगवान को नहीं मानते हैं वे अपने माता-पिता का ध्यान करें।
दरेसी नम्बर-1 पर ही सोमवार बाजार सजा हुआ था। वहां बड़ी संख्या में महिलाएं खरीदारी करने आई थीं। वे भी भंडारा का प्रसाद करने से नहीं चूकीं। सोमवार बाजार में मुस्लिम महिलाओं की संख्या अच्छी खासी रहती है। भक्तजन आते जा रहे थे। मंहत योगेश पुरी ध्वनिवर्धक पर नाम पुकारते हुए सबका स्वागत करते जा रहे थे। बाबा मनकामेश्वरनाथ के भंडारे को जामा मस्जिद टुकुर-टुकुर देखती प्रतीत हुई।

इसे श्रद्धा ही कहा जाएगा कि एक बार में 500 से अधिक लोग प्रसाद पा रहे हैं तो उससे दोगुने खड़े हुए हैं। पूरे परिवार आए। महिलाएं दुधमुंहे बच्चों को लेकर आईं। उन्हें आशा है कि बाबा का प्रसाद लेगा तो बच्चा संस्कारित हो जाएगा। राधे-राधे की गूंज के बीच महंत हरिहर पुरी बताते रहे कि क्या करना है और क्या नहीं। स्काउट गाइड के बच्चों का सहयोग लिया गया। हालांकि परसाई करने वाले अलग से थे लेकिन भक्तों में सेवा करने की होड़ मची हुई थी।
आमतौर पर भंडारे होते हैं तो दोना में पूरी सब्जी के लिए मारामारी मचती है। शोर होता है। फिर चारों और गंदगी छितरा जाती है। मनकामेश्वर के भंडारे में गंदगी तो ढूंढे नहीं मिल रही थी। परोसने वाले नंगे पांव थे। प्रसाद परोस रहे हैं तो श्रद्धा का भाव है। महंत योगेश पुरी कहते हैं कि इसी तरह से भंडारा होना चाहिए। खड़ा करके पूरी-सब्जी खिलाना भंडारा नहीं होता है। भंडारा श्रद्धा के साथ किया जाना चाहिए। हम यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि भंडारा कैसे किया जाता है।

अरे हां, यह बताना जरूरी है कि भंडारा में क्या है? पूरी, मालपुआ, छिलके वाले आलू की सब्जी और मेवा से भरपूर खीर। ये सब व्यंजन आप घर पर भी बना सकते हैं, लेकिन भंडारा की बात ही कुछ और है। पेट भर गया लेकिन मन नहीं भरता। खाते रहो। बाबा के भंडारे की फिर से प्रतीक्षा है।
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