आध्यात्मिक जागृति द्वारा जीवन प्रबंधन विषय पर आयोजित कार्यशाला में दी गईं उपयोगी जानकारी
Agra, Uttar Pradesh, India. अपने जीवन के आत्मतत्व को जाग्रत करके देश, समाज, राष्ट्र, धर्म के प्रति समर्पण का भाव जागने वली शक्तियों को आध्यात्मिकता कहते हैं। हम काम करने का तरीका बदलकर खराब को भी अच्छे में बदल सकते हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसके उदाहरण हैं। पहले प्रधानमंत्री का पद ऐशो-आराम का होता था और आज मोदी रोज 18 घंटे काम करते हैं। यह आध्यात्मिकता से आता है। आध्यात्मिक जागृति द्वारा हम अपने जीवन का श्रेष्ठ प्रबंधन कर सकते हैं।
यह कहना है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बृज प्रांत प्रचारक डॉ. हरीश रौतेला का। डॉ. एमपीएस ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के अध्यक्ष स्क्वाड्रन लीडर एके सिंह द्वारा आध्यात्मिक जागृति द्वारा जीवन प्रबंधन विषय पर आयोजित कार्यशाला में उन्होंने ये बातें कहीं। उनका संबोधन हर कई अवाक होकर सुनता रह गया। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं पूरा संबोधन ताकि भारतीयता, अध्यात्म, जीवन प्रबंधन के बारे में भिज्ञ हो सकें। आप ऐसे भारत के बारे में जानेंगे जो सोने की चिड़िया था और वह इसलिए कि तब भारत आध्यात्मिक रूप से जाग्रत था।
हमारा जीवन बाह्य जगत और आतंरित जगत से प्रभावित होता है। बाह्य चीजें- जैसे सुंदर फूल। मनुष्य और पशु के अंदर बहुत सी चीजें एक समान हैं, जैसे – खानपान, सोना, मैथुन आदि। धर्म के कारण पशु और मनुष्य अलग हैं। धर्म हमको नियंत्रित करता है। हम ठीक पद्धति से चल सकें, इसलिए धर्म है। फिर दूसरी बात है अर्थ। अर्थ का उपार्जन समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति लिए करना है।
सोमनाथ मंदिर को लूटा गया तो 17 घोड़ों पर सोना ही सोना लादा गया। इंग्लैंड की दूसरी औद्योगिक क्रांति के दौरान लॉर्ड क्लाइव भारत के सोने को पानी के 900 जहाजों में भरकर ले गया था। वे तो पशुवत जीवन जी रहे थे। एक समय इंग्लैंड में जन्म लेना भी अपराध था। आज से 300-400 वर्ष पहले इंग्लैंड में महिलाएं अपने नवजात बच्चों को पशुओं की तरह चाटकर साफ करती थीं। यह अलग बात है कि बाद में दुनिया में बहुत नाम किया। अमेरिका, ब्रिटेन पहले अर्थ की बात करते हैं, इसलिए वहां व्यभिचार अधिक है। हमारे यहां पहले धर्म है ताकि अर्थ को नियंत्रित किया जा सके।
मैं हॉस्टल में जाता हूँ तो छात्र बताते हैं कि अगर गर्ल फ्रेंड न हो तो बैकवर्ड कहा जाता है। नारद जी को भी स्त्री पर मोह हो गया था। विष्णु के पास गए और सुंदर बनने का आग्रह किया। विष्णु जी ने सोचा कि अगर नारद ने विवाह कर लिया तो तीनों लोकों का उद्धार कैसे होगा इसलिए उन्हें बंदर बना दिया। उसी सुंदर युवती ने स्वयंवर में किसी और को वर चुन लिया। नारद ने जब पानी में अपना चेहरा देखा तो वे बंदर थे। कहने का अर्थ यह है कि काम विषय की मर्यादा बनाई गई है। हर चीज में राष्ट्र का चिन्तन था। इसीलिए हजारों सालों से भारत दुनिया का सबसे समृद्ध राष्ट्र था। ऋषि मुनियों ने धर्म को आधारशिला बनाया। अर्थ और काम को बीच में बैठाया। अर्थ और काम के साथ आगे बढ़ते हुए ‘मैं कौन हूँ’ यह जानना है। आद्य शंकराचार्य ने लिखा है कि मैं शून्य हूँ। अध्यात्म विज्ञान क्या कहता है- कुछ भी करो, पूर्ण होगा। शून्य के बाद शून्यता आएगी। विज्ञान ने आध्यात्म को जोड़ते हुए कहा- जो हमारे शरीर में है वही ब्रह्मांड में है। अपनी सुप्त शक्तियों को कैसे जाग्रत करें। वैज्ञानिक शोध है कि 70 अरब किताबों के पृष्ठों को दिमाग में आदमी भर सकता है। जापान के एक नेत्रहीन व्यक्ति ने 40 हजार पुस्तकों का अध्यन किया। इसके बाद 28500 पृष्ठों की पुस्तक लिखी।
आज आप बीटेक डिग्री के लिए करते हैं। हमारे यहां पहले हर चीज को अंतरतम तक समझने की बात थी। इसका एक उदाहरण देखिए- जगदीश चंद बसु ने पेड़ों पर एकाकार होकर अध्ययन किया और निष्कर्ष निकाला कि पौधों में भी प्राण हैं। तुलसी को शाम को नहीं तोड़ते क्योंकि ऑक्सीजन देती हैं। आध्यात्मिकता से अपना प्रबंधन करना चाहिए। सत्यवान सावित्री की कहानी पर महर्षि अऱविन्द ने सावित्री महाकाव्य लिखा है। इसमें बताया गया है कि जीवन क्या है?
हम अपने जीवन का प्रबंधन अपने व्यक्तित्व से शुरू करें। सकारात्मक भाव से भरे रहें। एक उदाहरण है- तीन बोतलों में एक ही बोरवेल से निकला पानी भरा। एक पर हेट, दूसरी पर लव और तीसरी पर डेथ लिखा। छह महीने तक तीनों बोतलों के सामने उसी तरह का व्यवहार किया गया। छह माह बाद तीनों बोतलों की अलग स्थिति थी। हेट वाली बोतल का पानी काला हो चुका था। लव वाली बोतल शुद्ध धवल थी। डेथ वाली बोतल का पानी दूषित था। इस तरह से हम काम करने का तरीका बदलकर खराब को भी अच्छे वातावरण में बदल सकते हैं। मैं कौन हूं, इस कृतित्व बोध में निरंतर रत रहें, यही अध्यात्म है।
अपने देश की पहले क्या स्थिति थी, लेकिन जब सकारात्मक ऊर्जा से ओतप्रोत अच्छे व्यक्ततिव का व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री बना तो दुनिया के लोग सर झुकाने लगे, यही आध्यात्मिकता है। हमको अच्छा बनना है अथवा बनने के लिए लगातार प्रयास करना है। विवेकानंद कहते हैं- मनुष्य बनो। 1890 में विवेकानंद अल्मोड़ा आए। वहां ऊँचा उठने के लिए तीन दिन ध्यान और तपस्या की। फिर उनके मुंह से अपने आप निकला- अब मैं विश्व विजयी बनने के लिए निकलूँगा। यही आध्यात्मिकता है। इससे पहले वे सभी राजाओं को मना कर रहे थे। स्वामी विवेकानंद भगिनी निवेदिता के साथ अमरनाथ यात्रा पर गए। चिकित्सक ने उनकी हृदय गति देखी तो लगा कि इनकी मृत्यु हो गई है। नाड़ी देखी तो शून्य थी। कुछ देर बाद वे अपने आत्मतत्व को जगाकर खड़े हुए तो कहा- बाबा अमरनाथ से मुझे इच्छा मृत्यु का वरदान मिल गया है। जब मरना चाहूंगा, तभी मरूंगा। ये आध्यात्मिकता है। विवेकानंद ने आध्यात्मिक भाव से अपनी आतंरिक शक्तियों को जाग्रत कर लिया था। उनके कहने पर अमेरिकन रागफेलन ने 70 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति दुनिया की चार आध्यात्मिक सस्थाओं को दान कर दी थी। रोटी बनाते समय पहली रोटी गाय की, अंतिम रोटी कुत्ता की, यह आत्मतत्व विकसित करने की प्रक्रिया है। भारत का मनुष्य अलग क्यों है, क्योंकि प्रकृति के साथ एकात्म होता है। तभी तो प्रकृति के साथ समस्यएं नहीं आईं। 40 वर्ष में ग्लैशियर पिघल गए। पृथ्वी का बड़ा भाग धँस गया क्योंकि प्रकृति का दोहन करने लगे। हमें अपने कृतित्व को समाजोपयोगी बनाना है।
हमें एकदूसर में परमतत्व को देखना है। राम-राम, राधे-राधे क्यों बोलते हैं, क्योंकि हम एकदूसरे में राधे तत्व को देखते हैं। वृंदावन में मन से राधे-राधे निकलता है। अयोध्या में राम-राम निकलता है। जब आदमी दुख से दुखी और सुख से सुखी न हो, यही मोक्ष है। हमारे कृतित्व में समाज और देश का विचार होना चाहिए। नकारात्मक विचार न आने से मस्तिष्क में गामा किरणें निकलने लगती हैं। आध्यात्मिक भाव से युक्त रहने वाले व्यक्ति का कृतित्व महान हो जाता है। हमारे मस्तिष्क में जो चल रहा होता है, हम वैसे ही सामने वाले को दिखाई देने लगते हैं।
लीडरशिप यानी दूरगामी दृष्टि भी आध्यात्मिकता से आती है। बुर्ज खलीफा भी दूरगामी सोच का परिणाम है। अपनी सोच छोटी न बनाएं। सोच में वैश्विकता, व्यापकता आनी चाहिए। व्यक्ति को धार्मिक और आध्यात्मिक बनाइए। इससे व्यक्ति राष्ट्रीय हो जाएगा। आजकल व्यक्ति अपने परिवार के बारे में सोच रहा है क्योंकि आत्मतत्व जाग्रत नहीं है। अगर व्यक्ति राष्ट्रीय हो जाए तो देश की सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा। आध्यात्मिक जागरण से व्यक्ति सरल बनता है और सरल रहेंगे तो ईश्वर के निकट रहेंगे।
नेल्सन मंडेला जब 27 साल के संघर्ष के बाद दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बने तो पत्रकारों ने सवाल किया कि क्या विरोधियों को फांसी देंगे? इस पर मंडेला ने जवाब दिया- मैं उनकी योग्यता का उपयोग ताकत के साथ करूंगा ताकि अफ्रीका दुनिया के देशों के साथ दौड़ सके। पत्रकारों ने पूछा कि ये बात आपके मस्तिष्क में कहां से आई तो उन्होंने जवाब दिया कि मैंने भारत के धर्मग्रंथ पढ़े, गांधी जी की पुस्तकें पढ़ीं, प्रबंध गीता पढ़ी। ऐसा होता है तब हम नरेन्द्र मोदी और अब्दुल कलाम जैसे बनते हैं। नेतृत्व का गुण समर्पण भी है। अपने काम और नियमों के प्रति समर्पण। इसका नाम अध्यात्म भी है। इसके लिए आपको अंतरिक्ष और तारों के बारे में जानने की जरूरत नहीं है।
श्रावण मास में भगवान विष्णु भी शंकर जी को 1008 ब्रह्म कमल चढ़ाते थे। एक बार शंकर जी के मन में चपलता आई। एक ब्रह्म कमल छिपा दिया। भगवान विष्णु चिंतित कि समर्पण कैसे पूरा होगा। विष्णु ने सोचा कि मेरे नयन को भी तो कमल नयन कहा जाता है। क्यों न अपनी आँख चढ़ा दूँ। वे बाण से आँख निकालने के लिए छेदने लगे। इस पर शंकर जी ने विष्णु जी को रोका और बताया कि ब्रह्म कमल छिपा लिया था। यह समर्पण का अद्भुत उदाहरण है।
4 जुलाई, 1902 को जब विवेकानंद दुनिया छोड़कर जा रहे थे तब शिष्यों ने पूछा कि भारत का क्या होगा तो उन्होंने जवाब दिया कि जब तक भारत सत्य की खोज मे लगा रहेगा, तब तक भारत का कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। भारत यानी ज्ञान में रत। समर्पण की उच्च सीमा का उदाहरण है स्वातंत्र्य वीर सावरकर और सुभाष चन्द्र बोस। बोस ने असली हिटलर को पहचाना था क्योंकि आध्यात्मिकता से परिपूर्ण थे।
एपीजे अब्दुल कमाल ने इंटीग्रेटेड गाइड मिसाइल कार्यक्रम शुरू किया था। अब्दुल कमाल ने महाभारत के पात्र बर्बरीक का जीवन पढ़ा। उसके तुणीर में तीन बाण रहते थे। ये तीन बाण लक्ष्य का हर तरफ घूमकर संधान करते थे। इस आधार पर उन्होंने अग्नि मिसाइल बनाई। इससे पहले अग्नि मिसाइल बनाने में अनेक बार फेल हो गए थे। कृष्ण के सुदर्शन चक्र के आधार पर एक मिसाइल बनाई जो एक द्वीप से दूसरे द्वीप में मारकर वापस आ सकती है। इसके बाद भारत दनिया का छठा देश बना। 13 मिसाइलें अंतरिक्ष में एक साथ भेजने वला भारत दुनिया का पहला देश बना।
सारे चीजों का मूल है आप जहां काम कर रहे हैं, उसे इस तरह से करें कि वह काम भी शरमा जाए। आरएसएस के द्वितीय सरसंघचालक गुरुजी जब सारगाछी आश्रम में गए तो उन्हें एक महीने पुराने बर्तनों को धोने का काम दिया गया। गुरुजी ने जब बर्तन साफ किए तो एक शिष्य स्वामी अखंडानंद के पास गया और कहा कि आज आश्रम में ऐसा शिष्य आया है जो आश्रम के बर्तनों को सोने के बर्तनों की तररह चमका रहा है। गुरुजी के कार्यकाल में 1952 में भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई थी। आज वही जनसंघ भारतीय जनता पार्टी के रूप में कम कर रहा है। प्रधानमंत्री आज 18 घंटे काम करते हैं। मजदूर की तरह काम करते हैं और पहले प्रधानमंत्री का मतलब एशो-आराम था। चरण दर चरण आगे बढ़ने का काम आध्यात्मिक प्रबंधन है।
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