dadaji naharaj

राधास्वामी गुरु Dadaji maharaj के अनमोल बचन -67: तीन दिन में भी हो सकता है उद्धार, जानिए ट्रिक

PRESS RELEASE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

(67)

यह मत दीन-गरीबी का है तो फिर दीनता लानी पड़ेगी। अपने आपको देखना पड़ेगा। स्वयं अपने तन से, मन से, धन से, सुरत से सेवा करनी पड़ेगी। बिना सेवा किए हुए यानी भक्ति और प्रीत-प्रतीत राधास्वामी दयाल के चरनों में सच्ची पैदा किए हुए उद्धार नहीं होगा, अभ्यास नहीं बनेगा, सुमिरन भी ऊपरी ऊपरी करोगे और सुमिरन के वक्त भी पचास गुनावनें उठेंगी, वो स्वीकार नहीं किया जा सकता। वैसे उनकी मौज है, तुम निर्मल हृदय से आओगे तो वह तीन दिन के अभ्यास में उद्धार कर देते हैं। कुल तीन  दिन में। तीन दिन का फायदा उठाना चाहते हो या कि तीन जन्मों तक घूमना चाहते हो, यह तुम्हारे हाथ में है।

(66)

सतसंगियों में जाती प्रेम होना चाहिए और वह कैसे होगा? मालिक दया करेंगे लेकिन उन्होंने दया पाने का तरीका बताया है कि आप अभ्यास के वक्त उस दया को परख सकते हैं, आप सुमिरन के वक्त परख सकते हैं, आप सेवा के वक्त परख सकते हैं। न आप सेवा करते हैं, न भजन करते हैं, न ध्यान करते हैं और अपना मान चाहते हैं, यह सतसंगी के लिए शोभा नहीं देता। सतसंगी के हृदय में दुनियादारों के प्रति तो लगाव है लेकिन सतसंगी के प्रति नहीं। दुनियादारों से इस कदर बात करते हैं कि मन भर जाता है और सतसंगी के दर्द तथा तकलीफ की तरफ ध्यान भी नहीं देते हैं। प्रेम पत्र में हिदायत साफ-साफ लिखी हुई है- हमको हरेक के दर्द को महसूस करना होगा और खासकर सतसंगी भाई-बहन के दर्द और तकलीफ में साथ देना होगा। वास्तविक दिलासा देने वाले, सम्हाल करने, वाले रक्षा करने वाले, पहुंचाने वाले राधास्वामी दयाल हैं।