अपराधियों की पहचान से संबंधित बिल लोकसभा में पेश, विपक्ष ने किया विरोध

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भारत सरकार बंदियों की शिनाख्त से संबंधित 102 साल पुराने कानून का दायरा बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण विधेयक लाई है। लोकसभा में आज अपराधियों की पहचान से संबंधित बिल (The Criminal Procedure Identification Bill 2022) केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी ने पेश किया। इस बिल में पुलिस को अधिकार दिया गया है कि वह पहचान और आपराधिक मामले की जांच के लिए किसी भी गिरफ्तार व्यक्ति या दोषी के फिजिकल और बायोलॉजिकल सैंपल्स ले सकती है। संसद में पेश यह विधेयक पारित होने के बाद साल 1920 के कैदियों की पहचान संबंधी कानून (The Identification of Prisoners Act, 1920) की जगह लेगा। विपक्ष की ओर से कांग्रेस के सांसद मनीष तिवारी, अधीर रंजन और TMC के सौगत राय और एनके प्रेमचंद्रन ने बिल का विरोध करते हुए इसे वापस लेने की मांग की है। अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि यह बिल लोगों के व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।
बायोलॉजिकल सैंपल्स समेत ये सब जांच की जा सकेगी
नए बिल के तहत पुलिस को दोषियों और अपराध के मामले में गिरफ्तार शख्स की अंगुली एवं हथेली की छाप या प्रिंट, पैरों की छाप, फोटो, आंखों की पुतली, रेटिना, लिखावट के नमूने, हस्ताक्षर, फिजिकल, बायोलॉजिकल सैंपल्स और उसका विश्लेषण आदि जानकारी इकट्ठा करने का अधिकार दिया गया है। सरकार का मानना है कि अधिक से अधिक ब्यौरा मिलने से दोषियों को सजा दिलाने में तेजी आएगी और जांचकर्ताओं को अपराधियों को पकड़ने में सुविधा होगी। जांच से मना करने पर तीन महीने की जेल या 500 रुपये जुर्माना या दोनों हो सकता है।
दंड प्रक्रिया पहचान विधेयक में किसी अपराध के मामले में गिरफ्तार, दोषी ठहराए गए या हिरासत में लिए गए लोगों का रिकॉर्ड रखने के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग की अनुमति देने का प्रस्ताव किया गया है। इस विधेयक को हाल ही में केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दी थी।
अंग्रेजों के समय के कानून में क्या है?
अंग्रेजी हुकूमत के समय बने मौजूदा कानून में उन दोषी ठहराए गए अपराधियों और अपराध के मामले में गिरफ्तार लोगों के शरीर के सीमित माप की अनुमति दी गई है, जिसमें एक साल या उससे अधिक सश्रम कारावास का प्रावधान होता है। मौजूदा कानून में मैजिस्ट्रेट के आदेश पर एक साल या अधिक समय की सजा के अपराध में गिरफ्तार या दोषी ठहराए गए लोगों के अंगुली और पैरों की अंगुलियों के छाप लेने की अनुमति दी गई है।
किसी भी दोषी, गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए लोगों को पुलिस अधिकारी या जेल अधिकारी से इस तरह की जांच करवानी होगी। हालांकि जो दोषी नहीं ठहराए गए हैं या महिलाओं या बच्चों के खिलाफ अपराध में गिरफ्तार नहीं हुए हैं और जो सात साल से कम अवधि वाले अपराध के लिए हिरासत में लिए गए हैं, वे सभी लोग अपना बायलॉजिकल सैंपल देने से मना कर सकते हैं।
75 साल तक रखा जाएगा ये डेटा
इस तरह की जांच-पड़ताल से जो भी जानकारी इकट्ठा की जाएगी उसे डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में कलेक्शन डेट से 75 साल तक सुरक्षित रखा जाएगा। हालांकि ऐसे लोग जो पहले दोषी नहीं ठहराए गए लेकिन बिना ट्रायल के छूट गए या कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया, उनके माप या फोटोग्राफ की जानकारी को सभी कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद नष्ट कर दिया जाएगा।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) को राज्य सरकारों या केंद्रशासित प्रशासन से या किसी अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों से इस जानकारी का रिकॉर्ड रखने के लिए अधिकृत किया गया है। यह जानकारी और माप को राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षित और नष्ट करती है और साथ ही संबंधित अपराध रिकॉर्ड के लिए इस जानकारी का इस्तेमाल करती है। सरकार का कहना है कि पुराने कानून के समय आज की तरह उच्च तकनीक नहीं थी और इसलिए शारीरिक माप लेने और रिकॉर्ड रखने के लिए ऐसे प्रावधान करना जरूरी है।
-एजेंसियां

Dr. Bhanu Pratap Singh