हिन्दी दिवस पर गूंजा आत्मगौरव: “अंग्रेज़ी में अक्षर भी मौन, जबकि हिन्दी की बिन्दी भी बोलती है”
लाइव स्टोरी टाइम
आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत।
आगरा। हिन्दी दिवस का अवसर इस बार केवल परंपरा नहीं रहा — यह भाषा की आत्मगौरव और शोध की उपलब्धि का उत्सव बना। अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य भारती, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में
चन्द्रा बालिका विद्यापीठ इण्टर कॉलेज, न्यू आगरा में आयोजित विचार गोष्ठी में वक्ताओं ने हिन्दी के महत्व, संघर्ष और भविष्य पर सारगर्भित विचार रखे।

हिन्दी: संस्कृति और राष्ट्रीयता की आत्मा
राजभाषा का गौरव
मुख्य अतिथि जिला विद्यालय निरीक्षक (बालिका शिक्षा) श्री विश्व प्रताप सिंह ने कहा कि
“हिन्दी भारत की आत्मा है। यह हमारी संस्कृति, संस्कार और राष्ट्रीयता की प्रतीक है।”
उन्होंने कहा कि 14 सितम्बर सन् 1949 को हिन्दी को ‘राजभाषा‘ के रूप में मान्यता मिली तथा 14 सितम्बर सन् 1953 से प्रति वर्ष 14 सितम्बर को ‘हिन्दी दिवस‘ मनाया जाता है।

हिन्दी विश्व की सबसे समृद्ध, सशक्त और सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में तीसरे स्थान पर है। विश्व के अधिकांश विकसित देशों के विश्व विद्यालयों में हिन्दी पढ़ायी जाती है। साथ ही अनेक देशों के विद्यार्थी केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा में हिन्दी पढ़ने आते हैं। यह एक गौरव की बात है। हिन्दी में बातचीत करने में हमें संकोच नहीं करना चाहिए।
“हिन्दी की बिन्दी भी बोलती है”
देवनागरी की सादगी और माधुर्य
विशिष्ट अतिथि डॉ. देवी सिंह नरवार ने कहा कि हिन्दी विश्व की
सबसे मधुर भाषा है। उन्होंने जोर देकर कहा,
“अंग्रेज़ी में अक्षर भी साइलेंट रहते हैं, जबकि हिन्दी की बिन्दी भी बोलती है।”
हिन्दी में अपार शब्द भण्डार है। हिन्दी का प्रचुर साहित्य अद्भुत है। इस भाषा में एक शब्द के अनेक पर्यायवाची हैं और एक ही शब्द के अनेकार्थवाची भी हैं। हिन्दी मनोभावों की अभिव्यक्ति का सशक्त साधन है। इसमें सुदृढ़ अभिव्यक्ति की अद्भुत क्षमता है। आज भी अंग्रेजी के प्रति लोगों का आकर्षण बना हुआ है।

अंग्रेजी माध्यम के कॉन्वेन्ट स्कूलों में अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाने में प्राथमिकता देते हैं। इससे हिन्दी का काफी नुकसान हुआ है।
हिन्दी को रोजगार और संघर्ष से जोड़ने की आवश्यकता
व्यक्तिगत संघर्ष — राष्ट्रीय उपलब्धि
डॉ. भानु प्रताप सिंह ने कहा कि आज भी हिन्दी उच्च न्यायालयों की भाषा नहीं बन पाई है, इसलिए इसे रोजगार से जोड़ना अनिवार्य है।
“मैंने एमबीए हिन्दी माध्यम से करने का प्रयास किया; प्रथम सत्र की परीक्षा में मुझे शून्य अंक दिए गए। इसके बाद मैंने दृढ़ निश्चय किया कि प्रबंधन विषय में पीएचडी हिन्दी माध्यम से करूंगा। कठिन संघर्ष के बाद सफलता मिली और विश्व में पहली बार हिन्दी माध्यम से प्रबंधन विषय पर पीएचडी का कार्य सम्पन्न हुआ।”
Dr Bhanu Pratap Singh ने कहा कि आज भी हिन्दी भाषा उच्च न्यायालयों के कामकाज की भाषा नहीं बन पायी है। हिन्दी के प्रति लगाव और रूचि उत्पन्न करने के लिये आवश्यक है कि हिन्दी को रोजगार से जोड़ा जाये। तभी हिन्दी का कल्याण हो सकेगा। यह संतोष की बात है कि हिन्दी को प्रतियोगी परीक्षाओं में माध्यम के रूप में स्वीकार किया गया है। इंजीनियरिंग तथा चिकित्सा के अध्ययन में हिन्दी भाषा में शिक्षण कार्य शुरू हो चुका है।

सांस्कृतिक रंगों से सजा समारोह
छात्राओं की प्रस्तुति
विद्यालय की छात्राओं—अनोखी, रजनी, गुनगुन कश्यप, अलीना, वैष्णवी, शिल्पा, लवली और रिया नेगी—ने सरस्वती वन्दना एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर कार्यक्रम को सजीव बनाया।

संपादकीय
हिन्दी दिवस केवल एक स्मरण दिवस नहीं, बल्कि हमारी भाषा-शक्ति और आत्मसम्मान को पुनः जागृत करने वाला दिन है। डॉ. देवी सिंह नरवार की निष्ठा और चन्द्रा बालिका इंटर कॉलेज, न्यू आगरा की मेज़बानी की विशेष प्रशंसा होनी चाहिए।


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