सेवा भारती के कार्यक्रम में कहा गया, राणा प्रताप यानी सनातन की गौरव गाथा
सूर्यवंश में भगवान राम का 64वां और महाराणा प्रताप का 220 वां अवतार था
भामाशाह ने राणा प्रताप को कोई निजी संपत्ति नहीं, बल्कि राजकोष सौंपा था
प्रताप के डर से ही अकबर अपनी राजधानी आगरा छोड़कर लाहौर चला गया था
घास की रोटी खाने की कहानी गलत, वामपंथी, कांग्रेस और नमाजियों ने इतिहास बिगाड़ा
विशेष संवाददाता
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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. आगरा के पावन धरातल पर, सेवा भारती द्वारा आयोजित एक विचारोत्तेजक संगोष्ठी ने भारत के अमर सपूत महाराणा प्रताप की जयंती को स्मरणीय बना दिया। इस अवसर पर वक्ताओं ने उनके जीवन के प्रेरक प्रसंगों को साहित्यिक वैभव के साथ प्रस्तुत किया। महाराणा प्रताप का शौर्य और सनातन संस्कृति के प्रति उनकी निष्ठा आज भी राष्ट्र की धमनियों में प्रवाहित है। उनके युद्ध कौशल, अडिग संकल्प और स्वाभिमान की तुलना वर्तमान युग के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व से की गई। दोनों ही युगपुरुषों में राष्ट्र के प्रति समर्पण, शत्रु के समक्ष अटलता और संस्कृति के संरक्षण की समान भावना दृष्टिगोचर होती है। जैसे महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए अकबर की विशाल सेना को चुनौती दी, वैसे ही श्री मोदी भारत के गौरव को विश्व पटल पर स्थापित करने हेतु दृढ़ संकल्पित हैं। यह संगोष्ठी न केवल महाराणा के शौर्य की स्मृति थी, अपितु सनातन मूल्यों के पुनर्जागरण का आह्वान भी थी।
संगोष्ठी का भव्य आयोजन
आगरा के शास्त्रीपुरम स्थित सरस्वती विद्या मंदिर, दहतोरा के सभागार में यह संगोष्ठी आयोजित हुई। सभागार में उपस्थित विद्वानों, कवियों और समाजसेवियों ने महाराणा प्रताप के जीवन को स्मरण करते हुए उनके आदर्शों को वर्तमान संदर्भ में प्रस्तुत किया। आयोजन की गरिमा और विचारों की गहनता ने प्रत्येक श्रोता के हृदय को आंदोलित किया।
महाराणा प्रताप: मेवाड़ के पुनर्निर्माता
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व प्रचारक और सेवा भारती के वरिष्ठ अधिकारी श्री वीरेंद्र वार्ष्णेय ने कहा, “महाराणा प्रताप मेवाड़ के स्वाभिमान के प्रतीक थे। हल्दीघाटी का युद्ध उनकी विजय का अमर गीत है। चेतक का स्मारक और वह भाला, जो आज भी मेवाड़ की माटी में गर्व से खड़ा है, प्रत्येक भारतीय को प्रेरित करता है।” उन्होंने भारत-पाक तनाव के संदर्भ में सरकार की दृढ़ नीति को महाराणा के शौर्य से जोड़ा, जो ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अभूतपूर्व है।
शौर्य की झलक: मोदी और राणा की समानता
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और वेलनेस कोच डॉ. भानु प्रताप सिंह ने कहा, “महाराणा प्रताप का शौर्य आज हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में परिलक्षित होता है। जिस प्रकार राणा ने अकबर के समक्ष मेवाड़ का मान ऊँचा रखा, उसी प्रकार श्री मोदी ने विश्व मंच पर भारत का परचम लहराया है।” उन्होंने राणा के सम्मान में एक हृदयस्पर्शी छंद प्रस्तुत किया, जो सभागार में उपस्थित सभी के हृदय में उतर गया।

काव्य के माध्यम से गौरव गान
‘सेवा प्रसून’ पत्रिका के संपादक और कवि डॉ. अवधेश उपाध्याय ने महाराणा प्रताप पर केंद्रित चार छंदों के माध्यम से उनके शौर्य को जीवंत किया। उन्होंने कहा, “यह मिथ्या प्रचार है कि राणा अकबर के भय से भागे थे। सत्य यह है कि उन्होंने जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारा। घास की रोटी की कथा वामपंथी इतिहासकारों का दुष्प्रचार है।” उन्होंने राणा की चेतना को प्रत्येक भारतीय के जीवन में संचारित करने का आह्वान किया।
सनातन का सम्मान और एकता का संदेश
लोकतंत्र सेनानी श्री बृजेंद्र सिंह लड्डू ने कहा, “वामपंथी इतिहासकारों ने हमारे गौरवशाली इतिहास को विकृत किया है। महाराणा प्रताप किसी जाति या वर्ग के नहीं, अपितु समस्त भारत के नायक थे। रक्त में राणा की वीरता आज भी हिलोर मारती है।” उन्होंने हिंदुओं को जातियों में विभाजित करने की साजिशों के प्रति सतर्क रहने की चेतावनी दी।
क्षत्रिय गौरव और सनातन की रक्षा
क्षत्रिय सभा बृज प्रांत के अध्यक्ष श्री बृजमोहन भदोरिया ने कहा, “महाराणा प्रताप को जाति या धर्म से जोड़ना उनके साथ अन्याय है। अकबर, जो राणा के समक्ष युद्ध की हिम्मत नहीं जुटा सका, वह महान कैसे हो सकता है?” उन्होंने संसद में राणा सांगा के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करने वाले सांसद श्री रामजीलाल सुमन को कड़ी चेतावनी दी।

वास्तविक इतिहास लेखन की आवश्यकता
कृष्णचरितमानस के रचयिता और प्रसिद्ध कवि श्री देवेंद्र सिंह परमार ने कहा, “हमें अपने गौरवशाली इतिहास को पुनर्लेखन करने की आवश्यकता है। उपेक्षा के कारण ही हमारे कुछ लोग अन्य धर्मों की ओर आकर्षित हुए।” उनके विचारों ने उपस्थित जनसमूह को आत्मचिंतन के लिए प्रेरित किया।
राष्ट्र और संस्कारों का संदेश
पार्षद श्रीमती प्रवीणा राजावत ने कहा, “प्रधानमंत्री श्री मोदी का नेतृत्व और सेना का पराक्रम अभूतपूर्व है। कॉन्वेंट स्कूलों में बच्चों को केवल धनार्जन की मशीन बनाया जा रहा है, जबकि संस्कारों की शिक्षा अनिवार्य है।” उन्होंने मतदान की शक्ति को समझने और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के योगदान को रेखांकित किया।
राणा के जीवन का रोमांच
कार्यक्रम के कर्ताधर्ता और सेवा भारती के वरिष्ठ अधिकारी सूर्यकांत शर्मा ने महाराणा प्रताप के जीवन प्रसंग सुन कर सबको रोमांचित कर दिया। उन्होंने कहा कि हम राणा प्रताप का अनुकरण करें तो जीवन कम पड़ जाएगा और देश में इस तरह के अनेक राणा प्रताप हैं। हम कभी गुलाम नहीं रहे हैं। वामपंथी, कांग्रेसी और नमाजियों ने हमारे गौरवशाली इतिहास को मिट्टी में मिला दिया। अगर रामायण, महाभारत, गीता, वेद, उपनिषद ने होते तो हमारा इतिहास समाप्त हो जाता।
उन्होंने कहा कि सूर्यवंश में भगवान राम का 64वां और महाराणा प्रताप का 220 वां अवतार था। भामाशाह ने राणा प्रताप को कोई निजी संपत्ति नहीं बल्कि राजकोष सौंप दिया था। उन्होंने महाराणा प्रताप के पुत्र अमर सिंह से संबंधित एक रोचक प्रसंग सुन कर सबको रोमांचित कर दिया। राणा प्रताप के डर से ही अकबर अपनी राजधानी आगरा से लाहौर चला गया था। तब महाराणा प्रताप ने राजस्थान में कला का विकास किया।
सनातन की वंदना
राधा प्रकाशन के स्वामी श्री ओम प्रकाश पाराशर ने भगवान राम की वंदना प्रस्तुत की। उन्होंने कहा, “सनातन का सम्मान करें, गरीब की सेवा करें, तभी भगवान की पूजा सार्थक होगी।” उनके शब्दों ने सनातन धर्म के मूल्यों को पुनर्जनन दिया।
समापन और संचालन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह नगर संचालक श्री केशव जी ने कार्यक्रम का समापन किया। श्री बृजेश मंगल ने शानदार संचालन से आयोजन को जीवंत बनाए रखा।
गरिमामयी उपस्थिति
इस अवसर पर अनेक गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति ने संगोष्ठी की गरिमा को और बढ़ाया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह नगर संचालक केशव जी ने कार्यक्रम का समापन किया बृजेश मंगल ने शानदार संचालन किया। इस मौके पर राकेश खरे, प्रभुदत्त उपाध्याय, संतोष कुमार भाटिया, ओमप्रकाश शर्मा, आरडी त्यागी, कैलाश चंद्र पाठक, अंकित मिश्रा, शिक्षक नेता अजय प्रताप सिकरवार, राजेंद्र दातार, दिनेश प्रताप सिंह सिकरवार, राजेश त्यागी, केशव देव, अक्षयकांत शर्मा, रमेश गुप्ता आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
महाराणा प्रताप: संक्षिप्त जीवन परिचय
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को मेवाड़ के कुम्भलगढ़ में हुआ था। वे सिसोदिया राजवंश के शासक और मेवाड़ के 13वें महाराणा थे। उनके पिता उदय सिंह द्वितीय और माता जयवंती बाई थीं। महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कभी पराजय स्वीकार नहीं की। हल्दीघाटी का युद्ध (1576) उनकी वीरता का सर्वोत्तम उदाहरण है, जिसमें उन्होंने अकबर की विशाल सेना के समक्ष मेवाड़ का मान ऊँचा रखा। उनके वफादार घोड़े चेतक की वीरता भी इतिहास में अमर है। भामाशाह जैसे समर्पित सहयोगियों के बल पर उन्होंने मेवाड़ का पुनर्निर्माण किया। 19 जनवरी, 1597 को चावंड में उनका निधन हुआ, किंतु उनका शौर्य और स्वाभिमान आज भी प्रेरणा का स्रोत है।
संपादकीय टिप्पणी
महाराणा प्रताप का जीवन केवल एक योद्धा की गाथा नहीं, अपितु सनातन संस्कृति के संरक्षण और स्वाभिमान की प्रेरणा है। इस संगोष्ठी ने उनके आदर्शों को न केवल स्मरण किया, बल्कि वर्तमान पीढ़ी को उनके अनुकरण का संदेश भी दिया। वामपंथी इतिहास लेखन ने हमारे गौरव को धूमिल करने का प्रयास किया, किंतु सत्य का प्रकाश कभी मंद नहीं पड़ता। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का नवजागरण महाराणा के शौर्य की स्मृति को जीवंत करता है। यह आयोजन सनातन मूल्यों, एकता और राष्ट्रभक्ति के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दृढ़ करता है। हमें अपने इतिहास को पुनर्लेखन और संस्कारों को संरक्षित करने का संकल्प लेना होगा, तभी हम राणा के सच्चे उत्तराधिकारी बन सकेंगे।
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