वीर बनो, धीर बनो, इस जग के लिए महावीर बनो…
जैन मुनि डॉ. मणिभद्र महाराज ने दी सभी को बधाइयां
Agra, Uttar Pradesh, India. आकर्षक साज-सज्जा, सुगंधित वातावारण, भगवान महावीर का पालना और उसे झुलाने की प्रतिस्पर्धा, ऐसा उल्लास का माहौल था राजामंडी के जैन स्थानक में। यहां रविवार को पर्यूषण पर्व के पांचवे दिन भगवान महावीर का जन्मोत्सव मनाया गया। नेपाल केसरी जैन मुनि डॉ. मणिभद्र के केश लोचन किए गए। द्वारिकापुरी के भस्म होने की कहानी सुनाई गई।
पंचम दिन नेपाल केसरी व मानव मिलन संगठन के संस्थापक डॉ. मणिभद्र महाराज ने अरिष्टनेमि भगवान और वासुदेव कृष्ण के द्वारिकापुरी शासन के बारे में विस्तृत चर्चा की। उन्होंने कहा कि द्वारिकापुरी धर्म नगरी बनती जा रही थी, वहां के राजकुमार, रानी, पटरानी भी धर्म साधना में लीन रहने लगे और वैराग्य भाव जा गया। पटरानी पद्मावती के मन में भी वैराग्य आ गया और उन्होंने भी भगवान अरिष्टनेमि से दीक्षा ली। दीक्षा से पूर्व उनका 108 स्वर्ण कलशों से स्नान कराया गया और हजारों लोग उन्हें पालकी में खींचते हुए साधना स्थली पर ले गए। वहां उन्होंने भगवान अरिष्टनेमि की शरण में अपने पंचमुष्टि केश लोंच किए और 20 वर्ष तक संयम का साधना की। एक महीने के सल्लेखना समाधि के बाद उन्हें में भी देवगति मिल गई।
जैन मुनि ने कहा कि द्वारिकापुरी का शराब की वजह से नाश होने लगा था। भगवान अरिष्टनेमि ने सुझाव दिया कि 12 साल तक यहां णमोकार मंत्र का जाप कराया जाए। मंत्र के प्रति सच्ची श्रद्धा, आस्था होगी तो उससे संकटों का निवारण अवश्य होता है। वासुदेव कृष्ण राजी हो गए और वहां मंत्र जाप शुरू हो गया। इससे पहले नगरी की सारी नई पुरानी शराब जंगल में फिंकवा दी गई, जिससे वन में शराब का एक तालाब जैसा बन गया। एक दिन द्वारिकापुरी के राजकुमार जंगल भ्रमण को गए। प्यास लगने पर उन्होंने शराब के तालाब से शराब पी ली और जंगल में भटक गए। शराब के नशे में द्वायपान ऋषि को अधमरा कर दिया। जब वासुदेव कृष्ण को पता तो वे उसके ऋषि के पास गए और क्षमा याचना की। मरते-मरते वह ऋषि कह गए कि वे द्वारिकापुरी को भस्म करने आएंगे। उससे बचने के लिए द्वारिकापुरी में णमोकार मंत्र का जाप कराया गया। लेकिन कुछ बुरे व्यक्तियों की वजह से जाप में शिथिलता आ गई और ऋषि ने द्वारिकापुरी भस्म कर दी। रहने की जगह न होने के कारण वासुदेव कृष्ण और बलराम जंगल में भटकते रहे। वहीं एक शिकारी जरा कुमार ने तीर से भगवान श्रीकृष्ण के अनजाने में प्राण हर लिए थे। इस प्रकार रविवार को वासुदेव श्रीकृष्ण और भगवान अरिष्टनेमि की कथा पूर्ण हो गई।
प्रवचन के बाद जैन मुनि डॉक्टर मणिभद्र के पंचमुष्टि केश लोंच पुनीत मुनि एवम विराग मुनि द्वारा किए गए, पर्यूषण में संवतसरी से पूर्व जैन मुनियों द्वारा आवश्यक रूप से केश लोचन किया जाता है। तदउपरांत भगवान महावीर जयंती का उत्सव मनाया गया। बच्चे भगवान वृर्द्धमान के स्वरूप में आए और वचन भी बोले-वीर बनो, धीर बनो, इस जग के लिए महावीर बनो…। बधाई गीत गाए और एक दूसरे को शुभकामनाएं दी गईं।
पर्यूषण पर्व के पांचवें दिन रविवार की धर्म सभा में नीतू जैन,दयालबाग की 13 उपवास, सुमित्रा सुराना की 8 उपवास, अनौना दुग्गर, महेंद्र बुरड़ की 7 उपवास , अंशु दुग्गर की 6 उपवास, सुनीता दुग्गड़, पद्मा सुराना, मनीष लिघे निकिता मनानिया एवं हिमांशु मनानिया की 5 उपवास की तपस्या चल रही है। आयम्बिल की लड़ी में मधु बुरड़ की 5 आयम्बिल एवं बालकिशन जैन, लोहामंडी की 17 आयंबिल की तपस्या चल रही है।
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