डॉ. भानु प्रताप सिंह
Live Story TimeAgra, Uttar Pradesh, India, Bharat. श्री शैलेंद्र सिंह नरवार शिक्षक हैं। क्लास रूम में बच्चों को शिक्षित करते हैं। क्या शिक्षक का काम सिर्फ क्लास रूम में ही शिक्षित करता है? शैलेंद्र नरवार को देखें तो उत्तर होगा नहीं। फिर शिक्षक क्लास रूम से बाहर कैसे शिक्षा दे सकता है? आजकल तो शिक्षा देने के हजारों अवसर हैं। सबसे बड़ा अवसर तो सोशल मीडिया ने दिया है। जैसे यूट्यूब चैनल। शैलेंद्र नरवार ने यूट्यूब चैनल की ताकत को समझा है। वे इसका उपयोग समाज को शिक्षित करने में कर रहे हैं। वे लघु फिल्में बनाकर सार्थक संदेश दे रहे हैं। उनकी नई फिल्म आई है लगानबंदी। भारत को स्वतंत्रत कराने के लिए आगरा में हुई ऐसी रोमाचंक घटना जिसके बारे में नई पीढ़ी को कुछ भी ज्ञात नहीं है।
शैलेंद्र नरवार ने मुझे 9 सितंबर, 2024 को फोन करके फिल्म लगानबंदी के बारे में जानकारी दी। फिर रात्रि 11 से 12 बजे तक फिल्म देखी। फिर मैं स्वयं को रोक नहीं पाया। 12 बजे मैंने शैलेंद्र नरवार को फोन मिला दिया। हालांकि यह समय शयन का होता है, लेकिन मन में उमड़ रहे भावों को व्यक्त करना ही था। नरवार जी ने सोते हुए बात सुनी। फिर उनका फोन 10 सितंबर, 2024 को आया। बहुत सी बातें हुईं।
मैं शैलेंद्र नरवार के पिता डॉ. बृजेंद्र सिंह नरवार को भी जानता हूँ। जब मैं अमर उजाला अखबार में रिपोर्टर हुआ करता था, तब वे शिक्षकों के बड़े नेताओं में गिने जाते थे। शिक्षक हित के लिए संघर्ष करते थे। मुझे बहुत खुशी हुई कि शैलेंद्र नरवार स्वंत्रता सेनानी परिवार से हैं।
फिल्म की कहानी
यह फिल्म महाशय डरोली सिंह के जीवन और किसानों के लगानबंदी को लेकर हुए संघर्ष पर आधारित है। 1928 में हुए गुजरात के बारडोली की तरह आगरा की किरावली तहसील के गांव बरौदा और भिलावटी में लगानबंदी आंदोलन चला था। इसके नायक थे महाशय डरोली सिंह। आगरा में यह आंदोलन बरौदा-भिलावटी लगानबंदी आंदोलन कहलाता है। महाशय डरोली सिंह के नेतृत्व में सत्याग्रहियों ने विजय वाहिनी बनाई थी। उन्होंने 18 वर्ष की उम्र में ही झंडा उठा लिया था। उन्होंने हर किसान को लगानबंदी आंदोलन से जोड़ लिया। इस आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों ने पूरे गांव को उजाड़ दिया था। सभी की जमीन कुर्क कर ली गई थी। डरौली सिंह को 18 महीने जेल में यातनाएं सहनी पड़ीं। उनके परिवार को भी जेल में डाल दिया गया। उजड़े गांव को दोबारा बसाया गया। अभी भी डरौली सिंह की याद में गांव में दंगल का आयोजन किया जाता है।
बृज भाषा, 1930 का दृश्य
फिल्म का श्वेत-श्याम और रंगीन फिल्मांकन है, जो अतीत और वर्तमान की कहानी कहता है। फिल्म की भाषा ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया है। शैलेंद्र नरवार ने तो खड़ी बोली में प्रस्तुति दी है लेकिन कलाकार बृज भाषा में ही बात कर रहे हैं। हमारी बृज भाषा धीरे-धीरे शहरों से गायब हो रही है। मैंने वर्षों बाद फिल्म में बय्यरबानी शब्द सुना जो महिला के लिए प्रयोग किया जाता है। दिसंबर, 1930-31 का दृश्य खींचा गया है। अलाव दिखाया गया है। तब घर कैसे हुआ करते थे, घर का चौका कैसा होता था, खेत कैसे होते थे, वाहन कैसे होते थे, सब इस फिल्म में समाहित है। हमारे पत्रकार साथी जय सिंह वर्मा ने शानदार अभिनय किया है।
यह एक ऐसी फिल्म है जो हमें एक बार फिर उस खूबसूरत सिनेमा की ओर ले जाएगी जो कहीं न कहीं आज छूट रहा है। देशभक्ति, ग्रामीणों का जोश, जज्बा, बृज भाषा में बोले गए खूबसूरत संवाद, बृज भाषा के मनभावन गीत, खेत- खलिहान, बैलगाड़ी आदि से सजे खूबसूरत ठेठ ग्रामीण परिदृश्य, अधिकांश दृश्यों का ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मांकन आदि इस फिल्म की विशेषता कही जा सकती हैं।
फिल्म लगानबन्दी के निर्माता एवं निर्देशक शैलेन्द्र नरवार कहते हैं- देश के स्वतन्त्रता आंदोलन में आगरा का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है। आगरा के कई क्रांतिकारियों, स्वतन्त्रता सेनानियों ने इस आंदोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह फिल्म आगरा के लगानबन्दी आंदोलन के एक प्रमुख नायक महाशय डरोली सिंह के जीवन और उस दौर में अंग्रेजों के विरुद्ध किसानों द्वारा किए गए लगानबन्दी के महत्वपूर्ण संघर्ष पर आधारित है।
फिल्म की शुरुआत नौटंकी विधा में गायन से होती है-
जिला आगरा में बसा भिलावटी सो गांव,
स्वंतत्रता के समर में जाहिर जा को नाम।
जाहिर जा को नाम लड़ाई अंगरेजन से ठानी
गांव बरौदा कौ सहयोग मिलो जा में लासानी।
फिल्म का समापन इन पंक्तियों के साथ होता है
गदर में नाम कमायो गयो जौहर दिखलायो देस कौ मान बढ़ायो
और शत-शत नमन महाशय जी भारत आजाद करायो
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महाशय डरोलीनसिंह के बारे में
श्री लालबहादुर शास्त्री इण्टर कालेज, आगरा में प्रवक्ता और उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ, आगरा के जिलाध्यक्ष एवं संयोजक लोक शिक्षक संघ रहे डा. विजेन्द्र सिंह नरवार उनके पौत्र हैं। महाशयजी पर फिल्म बनाने वाले शैलेंद्र नरवार उनके प्रपौत्र हैं। उनसे महाशय जी के बारे में जो जानकारी मिली है, उसे हम यथावत प्रस्तुत कर रहे हैं-
महाशय जी का जन्म श्रावण सुदी नाग पंचमी दिन शनिवार सम्वत् 1954 में ग्राम मिलावटी, तहसील किरावली, आगरा में हुआ।

स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान- सन् 1920 में महात्मा गाँधी जी ने देशव्यापी दौरा किया। 23 नवम्बर, 1920 को आगरा आगमन पर गाँधीजी ने विशाल जनसभा को सम्बोधित करते हुए सभी लोगों से असहयोग आंदोलन में कूदने का आव्हान किया। आपने गांधी के आव्हान पर सन् 1920 में कांग्रेस के साधारण सदस्य बन गये और एक कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में कार्य करना प्रारम्भ कर दिया।
मास्टर शांतिस्वरूप श्रीवास्तव, लाल सूरजभान शाक्य आपके घनिष्ठ मित्र थे। अध्यापक रामरतन लवानियाँ जी के देश-प्रेम तथा त्याग की भावना से बहुत प्रभावित हुए।
आपने सन् 1920 से सन् 1940 तक ग्रामीण क्षेत्र के आंदोलनों में अध्यापक रामरतन का साथ कन्धे से कन्धा जोड़कर दिया। अछनेरा में लाला सूरजभान, मास्टर शांतिस्वरूप, अध्यापक रामरतन तथा आपकी गुप्त मंत्रणाएँ होती थीं तथा भावी योजनाएँ तैयार की जाती थीं।
भारत में आगरा ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहाँ पर बारडोली की तरह लगानबन्दी आंदोलन चलाया गया। पं. श्रीकृष्णदत्त पालीवाल द्वारा इस लगानबन्दी आंदोलन की व्यूह रचना की गई।
पं. जगनप्रसाद रावत, पं. रामचन्द पालीवाल पं. गजाधरलाल शर्मा ने पूरे जिले का दौरा करने के बाद इस आंदोलन के लिए सबसे पहले किरावली तहसील के दो गाँव बरौदा एवं भिलावटी को चुना।
20 दिसम्बर, 1930 को शहर में बरौदा-भिलावटी दिवस मनाया गया। बरौदा-भिलावटी के स्त्री-पुरुषों का एक शानदार जुलूस निकाला गया। मुंशी मुनीर खाँ की देखरेख में मिलावटी के जत्थे का नेतृत्व आपने किया। शहर में यह जलूस इस विशाल धूमधाम से निकला कि देखकर अधिकारी वर्ग काप गया। दोनों गाँवों में लगान न देने का ऐलान पहले ही किया जा चुका था।
गाँव में सभी लोग प्रतिदिन आपके संयोजकत्व में प्रातः 4 बजे उठते, तत्पश्चात् प्रभात फेरी, झण्डागान तथा प्रार्थना कार्यक्रमों में भाग लेते। इन कार्यक्रमों में स्त्री, पुरुष, बच्चे समान रूप से योगदान देते थे।
लगानबंदी का बिगुल बज चुका था तथा यह बात अंग्रेजी शासकों की आँख में बहुत खटक रही थी। आंदोलन 20 दिसम्बर, 1930 तक उग्ररूप धारण कर चुका था।
अतः 2 दिसम्बर, 1930 को पुलिस घुड़सवारों द्वारा भिलावटी गाँव को घेर लिया गया। पुलिस की संख्या इतनी थी कि गाँव के तीन घेरे लगाये गये। गाँव के लोगों को बुरी तरह मारा-पीटा गया। अनेक लोग जख्मी हुए परन्तु लगान देने से साफ इन्कार कर दिया। फलतः आपको धर्मपत्नी सहित अनेक लोगों के साथ जेल भेज दिया।
इसमें महाशय जी को 6 माह की कैद तथा 50 रुपये जुर्मान की सजा दी गई।
इससे पूर्व फरवरी सन् 1930 में कुछ व्यक्तियों के जत्थे के साथ मथुरा जनपद के सरौठा गाँव में जाकर कांग्रेस का झण्डा फहरा कर दफा 144 को तोड़ा जिसमें आपको 18 माह की सजा सुनाई गई।
गाँधी-इरविन समझौते के बाद 9 मार्च, 1930 के आदेशानुसार आपको मुक्त कर दिया गया।
30 मई, सन् 1932 को पुनः 17 सी.एल.ए. में 3 मास की सजा तथा 20 रुपये जुर्माना या जुर्माना न देने पर 1 माह की सजा सुनाई गयी।
देश में गाँधी जी के आदेश से व्यक्तिगत सत्याग्रह प्रारम्भ हुआ। व्यक्तिगत सत्याग्रह वह व्यक्ति कर सकता था जिसको गाँधी जी आज्ञा दे दें, और कोई नहीं। आगरे जिले में भी व्यक्तिगत सत्याग्रह की हलचल हुई। गाँधी जी के पास पं. श्रीकृष्णदत्त पालीवाल ही सत्याग्रहियों की सूची लेकर गये। गाँधी जी ने पं. श्रीकृष्णदत्त पालीवाल को ही सत्याग्रही चुनने का पूरा अधिकार दे दिया। महाशय जी को व्यक्तिगत सत्याग्रह के लिए चुना गया।
व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन के दौरान 22 मार्च, 1941 को गिरफ्तार किये गये तथा 3 अप्रैल, 1941 को 6 माह कैद तथा 50 रुपये जुर्माना या जुर्माना न देने पर 1 माह की अतिरिक्त कैद की सजा पायी।
आपके राजनैतिक साथियों में पं. श्रीकृष्णदत्त पालीवाल, चौ. चरणसिंह, मा. शांतिस्वरूप श्रीवास्तव, पं. रामचन्द्र पालीवाल, अध्यापक रामरतन, पं. जगनप्रसाद रावत, सेठ अचल सिंह, रमेश वर्मा, लाला सूरजभान, भवर सिंह एवं लक्ष्मी नारायण बंसल आदि प्रमुख थे।
महाशय जी की धर्मपत्नी श्रीमती हरिभेजी देवी ने अनेक बार जेल यात्राएँ कीं। श्रीमती सुखदेवी पालीवाल के नेतृत्व में श्रीमती चम्पावती एवं श्रीमती आनन्दी देवी आदि के साथ लगानबन्दी के सिलसिले में जेल गई।
आगरा में बच्चों का संगठन जितना लोकप्रिय हुआ, शायद ही कहीं हुआ हो। 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अपनी टोलियाँ बनाकर पिकेटिंग करते थे तथा महात्मा गांधी की जय के नारे लगाते थे।
महाशय जी के ज्येष्ठ पुत्र श्री समुद्र सिंह ने बाल संगठन में सक्रिय भाग लेकर राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय योगदान दिया। नमक सत्याग्रह में आपके पुत्र समुद्र सिंह को 7 मई, 1932 को गिरफ्तार किया तथा 14 मई, 1932 को आठ दिन बाद बच्चा समझकर 10 बेंतों की सजा देकर छोड़ दिया।
उपलब्धि- महाशय जी समाज सेवी एवं स्वतन्त्रता सैनानी होने के साथ-साथ शिक्षा प्रेमी भी थे। आपने अपने गाँव में एक प्राइमरी पाठशाला की स्थापना कराई जिसका उद्घाटन भू. पू. प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह ने सन् 1955 में किया था। भिलावटी गाँव में एक विशाल सभा हुई जिसको चौधरी चरणसिंह जी ने सम्बोधित किया था तथा आपने उस सभा की अध्यक्षता की थी।
हा. सै. स्कूल सहता के अध्यक्ष तथा जू. हा. स्कूल मंगूरा के संस्थापक प्रबन्धक रहे। रुनकता तथा किरावली के बीच सड़क निर्माण, नालों की खुदाई, श्रमदान, भूदान, गरकी एवं बाढ़ की समस्याओं के समाधान में आप जीवन भर सलंग्न रहे।
फतेहपुर सीकरी विधान सभा के विधायक के रूप में रमेश वर्मा का आपको समस्याओं के समाधान में हमेशा पूरा सहयोग मिलता रहता था। आप दोनों घनिष्ठ मित्र थे।
आप जितने शुद्ध ग्रामीण आत्मा थे, उतने ही राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत भी। आप एक दृढ़ संकल्पी, कर्मठ एवं निर्भीक व्यक्तित्व के धनी थे। भारत माँ का सपूत स्वंतत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व अर्पित कर समाज में महाशय के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अपने जीवन में किसी भी पद की लोलुपता से दूर रहकर निस्वार्थ भाव से देश-सेवा का कार्य आपने जीवन के अन्तिम क्षणों तक किया।
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