बांसुरी से सीखें जीवन जीने की कला: जैन मुनि डॉ. मणिभद्र

बांसुरी से सीखें जीवन जीने की कला: जैन मुनि डॉ. मणिभद्र

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जैन मुनि डॉक्टर मणिभद्र

 कान्हा तुमसे मिलने का सत्संग ही बहाना है…

 श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर जैन स्थानक राजामंडी में बही धर्म की गंगा

Agra, Uttar Pradesh, India. श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर नेपाल केसरी व मानव मिलन संगठन के संस्थापक डा.मणिभद्र महाराज ने प्रवचन दिए और कहा कि उनके जीवन का हर पल शिक्षाप्रद है। यदि हम जीवन में सुखद अनुभूति चाहते हैं तो उनके जीवन से हमें बहुत कुछ सीखना होगा।

राजामंडी, स्थानक में जैन मुनि ने कहा कि वैसे तो प्रत्येक महीने में दो अष्टमी होती हैं। इस प्रकार साल में 24 अष्टमी हो गई। लेकिन भाद्रपद की अष्टमी को सभी उल्लास पूर्वक मनाते हैं। क्योंकि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। वैसे तो हमें अपने दादा के बाद किसी के नाम याद नहीं रहता, लेकिन जो महापुरुष होते हैं, उनका नाम हजारों साल बाद भी याद रहता है। उन्हीं के जन्म, दीक्षा और मोक्ष पर्व मनाए जाते हैं।

जैन मुनि ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के हाथ में पहले बांसुरी थी और बाद में चक्र आ गया। बांसुरी प्रेम का प्रतीक थी। उससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। उन्होंने बताया कि बांसुरी में चार गुण होते हैं। वह सीधी होती है। उसमें कोई गांठ नहीं होती। बिना बजाए नहीं बजती। जब भी बजेगी, मीठा सुर ही निकलेगा। यह सब गुण हमें अपनी जीवन में धारण करने चाहिए। उन्होंने कहा कि राधा और कृष्ण का प्रेम पवित्र था। उसमें वासना या स्वार्थ नहीं था, वह केवल भावनात्मक था।

जैन मुनि भजन सुनाया-
कान्हा तुमसे मिलने का सत्संग ही बहाना है,
जब से तेरी लगन लगी, मन हो गया दीवाना है।
उन्होंने कहा कि पर्व दो तरह के होते हैं, लौकिक और पारलौकिक । लौकिक पर्व आनंद पूर्वक उत्सव की तरह मनाए जाते हैं, जबकि पारलौकिक पर्व आत्मा से जुड़े होते हैं। इसमें आत्मा की साधना होती है। जैन मुनि ने कहा कि मृत्यु से भयभीत नहीं होना चाहिए। मृत्यु को सत्य मान कर भयमुक्त जीवन जीना चाहिए, यह भगवान महावीर का अहिंसा परमोधर्म है। वैसे भगवान श्रीकृष्ण का जीवन भी कम कष्टदायक नहीं था। जन्म के समय कोई मंगलगीत गाने वाला नहीं था। उनका देवलोक गमन हुआ तब वे जंगल में थे, तब भी वे अकेले ही थे।
जैन मुनि ने कहा कि व्यक्ति को साधु बनने से कोई नहीं रोक सकता, व्यक्ति केवल बहाना बनाता है। यदि हम क्रोध, वासना, लोभ, लालच, मोह आदि पर नियंत्रण कर लें तो कोई रोकेगा क्या। भगवान महावीर तो 28 साल की उम्र में ही साधु हो गया थे। विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने दो साल महल ही गुजारे लेकिन साधुत्व के साथ। पूरी तरह वे 30 वर्ष की आयु में संत हो गए थे। मन को मोड़ लिया तो कभी भी, कहीं भी साधु बना जा सकता है। प्रारंभ में वैराग्य मुनि ने प्रवचन दिए।

इस चातुर्मास पर्व में नेपाल से आए गुरुसेवक टीकाराम का आठवें दिन का उपवास जारी है। दयालबाग निवासी नीतू जैन की चार उपवास की तपस्या चल रही है।आयंबिल की तपस्या की लड़ी बालकिशन जैन लोहामंडी ने आगे बढ़ाई। शुक्रवार के नवकार मंत्र के जाप का लाभ अखिल भारतीय जैन श्वेतांबर सोशल ग्रुप आगरा ने लिया।

 

Dr. Bhanu Pratap Singh