संयोजक अशोक चौबे एडवोकेट ने सबको भरपेट भोजन कराया तो श्रोताओं ने खूब जोश दिखाया
डॉ. भानु प्रताप सिंह
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Agra, Uttar Pradesh, Bharat, India. ताज महोत्सव के अंतर्गत शनिवार की रात्रि यादगार रही। सूरसदन में कवि सम्मेलन हुआ। कवियों ने राम नाम की गूंज की। वातावरण राममय हो गया। देर रात्रि तक श्रोतागण जय श्रीराम की गूंज करते रहे। इससे पहले श्रोताओं को भरपेट भोजन कराया गया। संयोजक अशोक चौबे एडवोकेट (डीजीसी) ने शानदार व्यवस्थाएं कीं। हर कोई उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट कर रहा था।
इस बार के कवि सम्मेलन की खास बात यह है कि जिलाधिकारी भानु चंद्र गोस्वामी ने किसी की सिफारिश नहीं सुनी। इस कारण ऐसे कवि चुने गए जो राष्ट्रवादी हैं। इसी कारण सूरसदन में भगवान श्रीराम के नाम की गूंज होती रही। कविता में राम का नाम आते ही श्रोता जय श्रीराम की गूंज करने लगते। प्रेम से पगी और हास्य से सनी कविताएं भी हुईं लेकिन जोश तो राम का नाम आने पर ही दिखाई दिया।
कवि सम्मेलन का शुभारंभ मुख्य अतिथि डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. आशु रानी, अपर जिलाधिकारी वित्त शिवांगी शुक्ला, अपर पुलिस आयुक्त केशव चौधरी, संयोजक अशोक चौबे एडवोकेट, डॉ. जीएस राणा, डॉ. राजेंद्र सचदेवा, रेणुका डंग, संयोजक अशोक चौबे, संजीव चतुर्वेदी ने मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया। अध्यक्षता प्रसिद्ध कवि सोम ठाकुर ने की।
बस्ती से आई 7 साल की कवयित्री आहुति ने प्रारंभ में पंक्तियां सुनाकर श्रोताओं का राममय कर दिया।
‘राम आस्था हैं कोई नारा नहीं, राम गंगाजल हैं कोई अंगारा नहीं
चलते फिरते यही काम कीजिए, जो भी मिले उसे राम-राम कीजिए।
प्रख्यात कवि डॉ. विष्णु सक्सेना ने सुनाया
‘आज दुनिया में सभी राम को तो मान रहे,
मगर राम की बात कोई मानता नहीं।
सीतापुर से आए कवि कमलेश मौर्य ने कहा
पांच सौ साल का पाप क्षय हो रहा
भाग्य भारत का फिर से उदय हो रहा
राम फिर भव्य मंदिर में हैं आ गये
विश्व सम्पूर्ण है राम मय हो रहा….
कवि नीलोत्पल मृणाल ने सुनाया
हम मिट्टी के लोग हैं, बाबू मिट्टी ही सदा उड़ाएंगे,
मिट्टी के बने, मिट्टी में सने और फिर मिट्टी के हो जाएंगे
धरा रस राज की है रस यहां कण कण में बहता है..
स्वार्थ सोच में घर कर लें तो जीवन रण हो जाता है
अपने ही विपरीत धरा का तब कण- कण हो जाता है।
ज्ञान, बाहुबल या फिर साहस, कुछ भी काम नहीं आता,
मन में राम नहीं हों तो यह तन रावण हो जाता है…।
आगरा शहर की प्रसिद्ध कवयित्री डॉ. रुचि चतुर्वेदी ने ताज महोत्सव की थीम और शहर की खूबियों को बयां करते हुए गाया
भारती की आरती में संस्कृति का गीत गाकर,
हम सदां संस्कार की संस्कृति के पथ पर बढ़ रहे हैं…।
‘मैं बिंदु से रेखा बनाने चली हूं,
मैं सागर से नदिया मिलाने चली हूं…
निकट आओ तट पर छुपे क्यों खड़े हो,
मैं गीतों की गंगा बहाने चली हूं…।
वागीश दिनकर ने कहा
युग की सुप्त शिराओं में कविता शोणित भरती है
वह समाज मर जाता है जिसकी कविता डरती है
डॉ. सोनरुपा विशाल की पंक्तियां
‘दर्द का आंकलन नहीं होता
इसमें कोई चयन नहीं होता’
मनवीर मधुर की कविता
‘लुटाकर जान खुद इंसानियत की जान हो जाना।
समर्पित यूं वतन की एक दिन पहचान हो जाना।।
राम नाम के जाप से होता है हर काम,
काम अगर मन में बसा पान सकोगे राम…।
अयोध्या 6 दिसम्बर, 1882 से 22 जनवरी, 2024 तक। एक पत्रकार के रूप में बाबरी मस्जिद ढहने और राम मंदिर बनने की आँखों देखी कहानी
आगरा के कवि, साहित्यकार डॉ. राजबहादुर सिंह राज ने ब्रज की महिमा का गान इस पंक्ति से किया-
राधा संग एक बार श्याम की पुकार लीजिए
और मातृभूमि का वंदन इस पंक्ति से किया
मौकूं अपने प्रानन तेऊ प्यारो लगे देश..
मां से बढ़कर जमाने में कोई और नहीं..
कवि राजेश चेतन की बात को इस तरह से रखा-
बात बात में बात बनाना उनके बस की बात नहीं,
घर के लोगों को समझाना उनके बस की बात नहीं।
डॉ. सोनरूपा विशाल की कविता को खूब सराहा गया
दर्द का आकलन नहीं होता, इसमें कोई चयन नहीं होता
प्यार में डूबना ही पड़ता है, प्यार में आचमन नहीं होता
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कार्यक्रम के संयोजक अशोक चौबे ने बताया कि स्वस्थ ठीक नहीं होने के कारण विनीत चौहान नहीं आए।
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