उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की होली पूरे प्रदेश नहीं बल्कि पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान रखती है. इस होली को जूता मार होली कहा जाता है, इसके पीछे एक लंबी कहानी है जो कि शहर के प्रसिद्ध इतिहासकार ने अपनी किताब में लिखी है.
शाहजहांपुर में होली को बहुत ही हटके अंदाज में मनाया जाता है, यहां लाट साहब का जुलूस या नवाब साहब का जुलूस निकाला जाता है और जुलूस के दौरान नवाब साहब पर जूते बरसाए जाते हैं. इस प्रथा के पीछे भी बहुत लंबी कहानी है, जिसे हर साल यहां के लोग बहुत ही धूमधाम से मनाते हुए आए हैं. इस जुलूस में एक व्यक्ति को नवाब (लाट साहब) बनाकर एक भैंस गाड़ी पर बिठाया जाता है और नवाब को जूते मारते हुए पूरे शहर में घुमाया जाता है.
इस प्रथा के पीछे की कहानी भी बहुत मशहूर है, इस प्रथा की शुरुआत किले के आखिरी नवाब अब्दुल्ला खां द्वारा 1746 – 47 में किले पर दोबारा कब्ज़ा करने के बाद हुई. जनपद के सबसे वरिष्ठ इतिहासकार डॉ एन० सी० मेहरोत्रा की किताब “शाहजहांपुर – ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहर” के मुताबिक नवाब अब्दुल्ला खां हिन्दू और मुसलमान दोनों के प्रिय थे, उन्होंने अपनी बेटी की शादी हाफिज-उल-मुल्क से की थी. होली के त्यौहार पर नवाब अब्दुल्ला किले से बाहर आकर होली खेलते थे.
नवाब के किले से निकलकर होली खेलने के बाद से ही ‘नवाब साहब निकल आये’ का नारा चलन में आया. सन 1857 की क्रांति के दौरान किले के नवाब शासकों ने धन वसूली के लिए हिन्दू और मुसलमान दोनों पर अत्याचार किये. मार्च 1858 में हामिद हसन खां और उनके भाई अहमद हसन खां की हत्या कर दी गयी और खलीलगर्वी में उनकी कोठी को जला दिया गया. इस कोठी को उसी वक्त से जली कोठी के नाम से जाना जाता है. इसके बाद हिन्दू ज़मींदारों पर नियंत्रण एक कठिन कार्य बन गया.
नवाबों से हिंदुओं का संघर्ष
हिन्दुओं (विशेषकर ठाकुरों) पर नियंत्रण करने के लिए बरेली से खान बहादुर खां के कमांडर मर्दान अली खां एक विशाल सेना के साथ शाहजहांपुर आया. जिसका हिन्दुओं से संघर्ष हुआ संघर्ष में अनेक हिन्दू मारे गए. हिन्दुओं के सिर काटकर किले के दरवाज़े पर लटकाये गए और उनकी संपत्ति लूट ली गयी. 1857 की क्रांति की असफलता के बाद मई 1858 में जी० पी० मनी डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने अपनी कचहरी ए० बी० रिच इण्टर कॉलेज के सामने स्थित नवाब अहमद अली खां के मकबरे में लगायी और किले को पूरी तरह से नष्ट करने के आदेश दिए.
1859 में जो होली मनाई गयी उसमें अंग्रेज अधिकारियों के उकसाने पर हिन्दुओं ने अपना रोष नवाबों को अपमानित करके व्यक्त किया. बस यहीं से लाट साहब के जुलूस की शुरुआत हुई. उस समय अंग्रेज शासक मुस्लिम विरोधी थे, क्योंकि 1857 की क्रांति का बिगुल मुस्लिम शासकों ने फूंका था. इसकी सत्यता लार्ड एलनबर्ग के इस कथन से स्पष्ट है – मुस्लमान जाति मौलिक रूप से हमारे विरुद्ध है और इसी कारण हमारी नीति हिन्दुओं को प्रसन्न करने की है.
भैंस गाड़ी ही क्यों?
डॉ एन० सी० मेहरोत्रा की किताब “शाहजहांपुर – ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहर” में दिया गया है। 1930 के दशक में होली के नवाब के साथ हाथी, घोड़े और ऊंट भी निकलते थे. मुसलमानों ने इस पर आपत्ति की कि उनके घर नीचे हैं जिससे बेपर्दगी होती है, जिसके बाद सरकार ने ऊंची सवारी के साथ नवाब निकालने पर प्रतिबन्ध लगा दिया. इसके फलस्वरूप भैंसागाड़ी पर ही नवाब का जुलूस निकाला जाने लगा.
1947 के भारत विभाजन के बाद होली पर नवाब निकालने पर अंकुश लगाना संभव न हो सका. इस सम्बन्ध में नगर के बुद्धिजीवियों के प्रयास असफल रहे, इतना ज़रूर हुआ कि इसका नाम बदलकर लाट साहब कर दिया गया. कई सालों तक नवाब के विकल्प के रूप में झांकी निकालने से भी इसका स्वरुप बदलने में सफलता प्राप्त नहीं हुई. चौक से निकालने वाले लाट साहब के जुलूस के लिए कोतवाली के बाहर सलामी देने के लिए आग्रह करना हमारी गुलामी को नमस्कार करने की मानसिकता के अतिरिक्त कुछ नहीं है. हम भूल जाते हैं कि लाट साहब अंग्रेजों के प्रतीक हैं.
अब कहां से निकलता है जुलूस
वर्तमान में होली पर्व पर चौक से बड़े लाट साहब तथा सरायकाइयाँ से छोटे लाट साहब का जुलूस निकाला जाता है. एक समय था जब चौक के नवाब साहब को किले के आस पास के मोहल्लों के नवाब सलाम पेश करके अपने-अपने मोहल्लों में नवाब का जुलूस निकालते थे. इसी तरह बड़ागांव (पुवायां) में गधे पर बैठाकर छोटे लाट साहब का जुलूस निकाला जाता है. विकास खंड खुदागंज में परम्परा है कि होली के बाद पंचमी के दिन गधे पर लाट साहब को गलियों में घुमाया जाता है. जनता इसी जुलूस के साथ रंग खेलती है. आज के समय में जिला प्रशासन के लिए शांति पूर्वक लाट साहब का जुलूस संपन्न करना एक चुनौती का कार्य है.
धार्मिक स्थलों को ढकते हैं तिरपाल से
लाट साहब के जुलूस के लिए जिला प्रशासन की ओर से भारी भरकम व्यवस्थाएं की जाती हैं, लाट साहब के जुलूस जिन मार्गों से होकर गुज़रते हैं उन मार्गों पर बल्ली और तारों वाला जाल लगाकर गलियों को बंद कर दिया जाता है, जिससे कि लाट साहब के जुलूस में मौजूद लोग किसी गली में न घुसें और शहर में अमन चैन कायम रहे. इसके अतिरिक्त लाट साहब के रुट पर पड़ने वाले सभी धर्मस्थलों को बड़े बड़े तिरपालों से ढक दिया जाता है और हर धर्मस्थल पर पुलिस के जवानों को मुस्तैदी से तैनात किया जाता है. इसके साथ-साथ लाट साहब के जुलूस के साथ कई थानों की फ़ोर्स, पीएसी और रैपिड एक्शन फ़ोर्स को भी तैनात किया जाता है.
चप्पे चप्पे पर कैमरों और ड्रोन के माध्यम से निगरानी की जाती है जिससे कि शरारती तत्वों की पहचान की जा सके है शहर में अमन चैन कायम रहे. लाट साहब के जुलूस से लगभग एक महीने पहले ही प्रशासन सभी रूटों का निरीक्षण करता है, जिस रुट पर सड़क और बिजली के तारों में कोई भी कमी नज़र आती है उसे तत्काल दुरुस्त कराया जाता है जिससे कि जल्द से जल्द लाट साहब का जुलूस बिना किसी अड़चन सकुशल संपन्न कराया जा सके. पूरे देश में चर्चित है शाहजहांपुर की लाट साहब और जूतामार होली.
– एजेंसी
- द आगरा स्टोरी: धर्मांतरण रैकेट के सरगना रहमान के दो बेटों समेत तीन और गिरफ्तार, लड़कियों को प्रेमजाल में फंसाते थे - July 23, 2025
- Apollo Cancer Centre Hyderabad Felicitated Bone Cancer Survivors for Their Grit and Determination - July 23, 2025
- पलक शर्मा का विश्व एक्वाटिक्स चैंपियनशिप सिंगापुर 2025 में चयन - July 23, 2025