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1995 में हुआ ऐसा चुनाव जिसमें एक IAS ने निष्पक्षता की मिसाल कायम कर दी थी

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डॉ. भानु प्रताप सिंह

Agra, Uttar Pradesh, India. इस समाचार को लिखना तो तभी चाह रहा था जब 2021 में जिला पंचायत के चुनाव हुए थे। आजकल करते-करते चुनाव निकल गए। अब फिर से चुनाव की बेला है भले ही विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। इसके बाद भी जिला पंचायत चुनाव की चर्चा करना जरूरी है। यह बात है 1995 की। तब केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी। पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। उन्हें बसपा का समर्थन था। कद्दावर मंडलेश्वर सिंह मंत्री थे। जिला पंचायत चुनाव सत्ता और विपक्ष की मूँछ का सवाल बना गया था। दोनों पक्षों ने खूब चालें चलीं। चुनाव में मुख्य भूमिका मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) संजय भूसरेड्डी की रही। उन्होंने सत्ता पक्ष का दबाव नहीं माना और चुनाव निष्पक्ष हुआ। इसी कारण इस चुनाव की आज भी चर्चा होती रहती है। श्री भूसरेड्डी इस समय उत्तर प्रदेश सरकार में अपर मुख्य सचिव गन्ना, चीनी तथा आबकारी हैं। आइए जानते हैं पूरा घटनाक्रम।

डॉ. केएस राना और ठा. चंदन सिंह

ठाकुर चंदन सिंह उस समय जनता दल की राजनीति करते थे। जनता दल के प्रदेश नेता डॉ. केएस राना के वे निकट थे। चंदन सिंह ने जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ने की बात कही। डॉ. राना को जिला पंचायत के आठ सदस्यों का समर्थन था। सात-आठ सदस्य भाजपा के पास थे। इसलिए जीतने की संभावना थी।  डॉ. राना ने चौधरी अजित सिंह से बात की। तब अजित सिंह ने अपनी पार्टी जनता दल (अजित) का विलय कांग्रेस में कर लिया था। अजित सिंह ने कहा कि कुछ भी करो, समाजवादी पार्टी को हराओ। उन्होंने कहा कि अकेल नहीं हरा सकते हैं। डॉ. राना ने भाजपा नेता और महापौर रमेशकांत लवानिया से बात की। चंदन सिंह को समर्थन देने का आग्रह किया। असल में रमेशकांत लवानिया को महापौर बनाने में डॉ. केएस राना का भी योगदान था। उन्होंने 15 सभासदों का सहयोग दिलाया था। श्री लवानिया ने शर्त रख दी कि चंदन सिंह को भाजपा में शामिल कराओ। फिर यह जानकारी चौ. अजित सिंह को दी गई। उन्होंने कहा कि जैसा चाहो करो। अंततः चंदन सिंह को भाजपा में शामिल कर जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर समर्थन दे दिया। भाजपा के युवा तेजतर्रार नेता बसंत गुप्ता एडवोकेट (इस समय डीजीसी) और चंदन सिंह के भ्राता राजवीर सिंह को समर्थक सदस्यों के साथ लगाया गया।विधायक विजय सिंह राणा ने चंदन सिंह का विरोध किया था लेकिन डॉ. केएस राना की पेशबंदी कारगर रही। जाट हाउस का कर्मचारी बंगाली राम जिला पंचायत सदस्य था। मतदान से तीन दिन पूर्व डॉ. केएस  राना ने उसे एक होटल में बुलाया और  चंदन सिंह के हवाले कर दियाल था।

सपा का समर्थन भूपेन्द्र सिंह को

उस समय प्रदेश में समाजवादी पार्टी का जोर था। कद्दावर नेता मंडलेश्वर सिंह उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री थे। उनकी तूती बोलती थी। उन्होंने अपने पुत्र भूपेन्द्र सिंह उर्फ भोलू को जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाने के लिए पूरी ताकत लगा दी। मंडलेश्वर सिंह स्वयं बलशाली थे और सरकार में थे। इस कारण लग रहा था कि चुनावी बाजी जीत जाएंगे। प्रशासनिक मशीनरी भी न चाहते हुए भी सत्तापक्ष का सहयोग कर देती है।
विपक्ष की रणनीति

जिला पंचायत के सदस्यों को अपने कब्जे में करने की कवायद शुरू हुई। राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले डॉ. केएस राना ने पहले ही रणनीति बना ली थी। अपने समर्थक सदस्यों को भदावर हाउस में राजा  महेन्द्र अरिदमन सिंह की संरक्षा में रखा। भाजपा ने अपने सदस्यों को भरतपुर हाउस के घरों में छिपा दिया। भरतपुर हाउस में ही वोटिंग होनी थी। भाजपा तो कदम दर कदम साथ थी ही। तब विकास भवन भरतपुर हाउस में ही था। उस स्थान पर इस समय उद्यमी और समाजसेवी पूरन डावर का विशाल आवास है। प्राचीन सीडीओ ऑफिस को बचाने के लिए अमर उजाला अखबार ने अभियान चलाया था लेकिन सफलता नहीं मिल सकी।

सत्ता पक्ष की रणनीति

सत्ता पक्ष के सदस्यों ने जिला पंचायत सदस्यों के घरों पर दबिश देनी शुरू कर दी। विरोधी सदस्य घरों पर नहीं मिले। हथियारबंद लोग सदस्यों की तलाश कर रहे थे। फिर यह रणनीति बनाई गई कि वोट नहीं डालने देंगे। इसी उद्देश्य से भरतपुर हाउस के चारों और बेरीकेडिंग की गई थी। सोच यह थी कि जैसे ही वोट डालने आएंगे, उठा ले जाएंगे। न वोट पड़ेंगे और न ही चंदन सिंह चुनाव जीत पाएंगे। कई सदस्यों को आगरा से लगे राजस्थान भेज दिया गया था।

पत्रकारों को रोका गया

उस समय पुलिस पूरी तरह सत्ता पक्ष का समर्थन कर रही थी। यहां तक कि पत्रकारों तक को मतदान स्थल पर नहीं जाने दिया जा रहा था। हम पत्रकारों को रोक लिया गया। मैंने फिर उप जिला निर्वाचन अधिकारी और  मुख्य विकास अधिकारी संजय भूसरेड्डी को फोन किया। उन्होंने एक व्यक्ति को पास लेकर मेरे पास भेजा, फिर हमें जाने की अनुमति मिली।

वोट पड़ गए, खबर तक न लगी

वोट डालने का दिन आ गया। बेरीकेडिंग पर मंडलेश्वर सिंह समर्थक हथियार लेकर तैनात थे। वे इस फिराक में थे कि जैसे ही चंदन सिंह समर्थक जिला पंचायत सदस्य आएंगे, उन्हें उठा ले जाएंगे। वे जिला पंचायत सदस्यों का एक दल भदावर हाउस से भारी सुरक्षा के बीच निकला। चूंकि दोनों ओर से हथियारबंद लोग थे, इस कारण तनाव के हालात बन गए। पुलिस भी मुस्तैद थी। उस समय राजा भदावर के बाहुबल के आगे कोई बोलने की हिम्मत नहीं करता था। इसलिए वोट पड़ गए। चंदन सिंह के भ्राता राजवीर सिंह ने बताया कि भरतपुर हाउस में छिपाए गए सदस्य वोट डालकर सुरक्षित बाहर निकल गए। किसी को भनक तक नहीं लगी। जब वोट पड़  गए तो हर कोई भौंचक रह गया कि यहां से तो कोई गया ही नहीं है।

नहीं दिया सदस्यों को सहायक

भूपेन्द्र सिंह ने प्रत्येक सदस्य के लिए सहायक की मांग की जो संजय भूसरेड्डी ने स्वीकार नहीं की। उन्होंने तर्क दिया कि जब सदस्य पढ़े लिखे हैं और विकलांग भी नहीं हैं तो सहायक किसलिए? सहायक मांगने के पीछे उद्देश्य अपने पक्ष में मतदान सुनिश्चित करना था। यह आशंका थी कि मतपेटी को उठाकर ले जाया जा सकता है। इस कारण मतेपेटी की सुरक्षा के लिए विकास विभाग के कर्मचारी तैनात किए गए थे क्योंकि हरीपर्वत पुलिस की भूमिका संदिग्ध थी।

मतगणना के दौरान क्या हुआ

यह आशंका जताई गई थी मतगणना के दौरान चंदन सिंह के पक्ष में पड़े मतों पर स्याही लगाई जा सकती है। इसके चलते मौके पर इंक पैड हटाए गए। हरीपर्वत थानाध्यक्ष ने मतगणना के दौरान पत्रकारों को बाहर भेजने का प्रयास किया लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। इस कारण दस मिनट तक मतगणना रुकी रही। उस समय जिला पंचायत के अपर मुख्य अधिकारी सिरोही थे। उनकी मतगणना में अहम भूमिका थी।

आला अधिकारी मौके पर पहुंचे

मतणना स्थल के बाहर दोनों पक्षों से हजारों लोग जमा थे। अधिकांश वैध और अवैध हथियारों के साथ थे। जैसे ही मतणना पूरी होने की जानकारी मिली, जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मौके पर आ गए। पत्रकारों को देखकर एसएसपी का माथा ठनका और संजय भूसरेड्डी से पूछा कि इन्हें क्यों अंदर आने दिया। इसके बाद  श्री भूसरेड्डी ने जवाब दिया कि मैंने उप जिला निर्वाचन अधिकारी की हैसियत से अनुमति दी है,  जिलाधिकार जी जिला निर्वाचन अधिकारी होते हैं, चाहें तो निकाल सकते हैं। यह सुनकर जिलाधिकारी शांत हो गए। डीएम और एसएसपी ने संजय भूसरेड्डी को अलग कक्ष में ले जाकर बातचीत की। क्या बातचीत हुई कोई जान न सका लेकिन विपक्षी भाजपा वालों का कहना था कि भूपेन्द्र सिंह को जिताने की प्लानिंग हो रही है। माहौल काफी तनावपूर्ण हो गया था।

चुनाव परिणाम

33 में से 14 वोट पर जीत थी। चंदन सिंह तीन वोट से चुनाव जीते। कांग्रेस के समर्थन से ओम प्रकाश जूरैल बौहरे (खंदौली वाले) खड़े थे। उन्हें चार वोट मिले। 14 वोट भूपेन्द्र सिंह को और 15 वोट चंदन सिंह को मिले। दूसरे राउंड की मतगणना में दो वोट चंदन सिंह को मिले। इस कारण चंदन सिंह के कुल 17 वोट हो गए और तीन वोटों के अंतर से चुनाव जीत गए।

गोपनीय इशारे

जैसे ही मतगणना पूरी हुई, निर्वाचन प्रमाणपत्र संजय भूसरेड्डी के हाथ में आ गया। उन्होंने डीएम से कहा कि विजेता को प्रमाणपत्र दे दें। यह देख डीएम अचरज में पड़ गए कि इतनी जल्दी प्रमाणपत्र कैसे छप गया। असल में, श्री संजय भूसरेड्डी ने चुनाव परिणाम की शुद्धता बनाए रखने के लिए पूरा इंतजाम कर रखा था। उन्होंने कम्प्यूटर ऑपरेटर से अंगुली का इशारा समझा रखा था। एक अंगुली यानी भूपेन्द्र सिंह और दो अंगुली यानी चंदन सिंह। मतगणना पूरी होते ही उन्होंने दो अंगुली से इशारा किया और चंदन सिंह के नाम का प्रमाणपत्र छपकर आ गया। प्रमाणपत्र मिलते ही सांसद भगवान शंकर रावत ने चंदन सिंह को माला पहनाई। फिर डीएम और एसएसपी भी अपनी गाड़ी से निकल गए।

जीतने के बाद चंदन सिंह ने क्या किया

जैसे ही चंदन सिंह जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित हुए, उनसे कहा गया कि माधव भवन जाओ। चंदन सिंह ने साफतौर पर कहा कि मेरे गुरु डॉ. केएस राना हैं, पहले उनसे मिलूंगा। उन्होंने यही किया। चंदन सिंह ने पांच साल तक जिला पंचायत अध्यक्षी पूरी दमदारी से की। उनके साथ हथियारबंद लोग हर समय रहते थे। उनके साथ पंडित केशव दीक्षित भी अकसर देखे जाते थे।

सीडीओ का तबादला

इस घटनाक्रम के तत्काल बाद संजय भूसरेड्डी का आगरा से बनारस तबादला हो गया। वहां से उन्होंने फैजाबाद। वहां तैनात अर्चना अग्रवाल को आगरा का सीडीओ बनाया गया। श्रीमती अग्रवाल आगरा में एक माह भी नहीं रह पाईं। उनका पूरा समय बैठक करने में निकल गया। फील्ड में कोई काम नहीं किया। संजय भूसरेड्डी आगरा में 10 जुलाई, 1993 से 19 जून, 1995 तक रहे। इस दौरान वे चुनावी शुद्धता का नया इतिहास लिख गए।

संजय भूसरेड्डी की निष्पक्षता के करण चुनाव जीतेः राजवीर सिंह

चंदन सिंह के भ्राता राजवीर सिंह ने बताया कि ‘संजय भूसरेड्डी साहब पर यह दबाव था कि वह भूपेन्द्र सिंह को निर्वाचित घोषित कर दें। उनका कहना है कि सीधे मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव से बातचीत हो रही थी। मुख्यमंत्री ने यहां तक कह दिया था कि परिणाम घोषित कराओ, जो होगा मैं देख लूंगा लेकिन संजय भूसरेड्डी ने गलत काम करने से मना कर दिया था। बाहर भारी भीड़ थी। भाजपा के पक्ष में नारेबाजी हो रही थी। लोग हाथों में पत्थर लेकर खड़े हुए थे। ऐसा लग रहा था कि अगर भपेन्द्र सिंह को अवैध रूप से अध्यक्ष निर्वाचित घोषित किया तो प्रशासनिक अधिकारी जीवित बाहर नहीं जा पाएंगे। दो घंटे तक चुनाव परिणाम रोके रखा। अंततः जनदबाव के चलते चंदन सिंह को अध्यक्ष निर्वाचित घोषित कर दिया गया।’

संजय भूसरेड्डी से सीखना चाहिए

राजवीर सिंह कहते हैं कि ‘उप जिला निर्वाचन अधिकारी संजय भूसरेड्डी किसी भी दबाव में नहीं आए और निष्पक्ष बने रहे, इसी कारण चंदन सिंह चुनाव जीत पाए। सत्ता पक्ष ने तो पूरा जोर लगा लिया था। मुख्यमंत्री को पल-पल की खबर दी जा रही थी। मुख्यमंत्री ने तो यहां तक कह दिया था कि भूपेन्द्र सिंह को विजेता घोषित कर दो, बाकी सब मैं देख लूंगा। अगर अवैध रूप से विजेता घोषित किया जाता तो शायद कोई अधिकरी जीवित नहीं जा पाता क्योंकि भीड़ उग्र थी।’ उन्होंने कहा- ‘चुनाव परिणाम की शुद्धता बनाए रखने की कला संजय भूसरेड्डी से सीखनी चाहिए।’

क्या कहते हैं डॉ. केएस राना

डॉ. केएस राना कहते हैं कि अगर अधिकारी को कोई लालच नहीं है तो वह निष्पक्ष रह सकता है। लोकतंत्र में अधिकारी का निष्पक्ष रहना बहुत आवश्यक है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में तो अधिकारी किसी का पक्ष नहीं ले पाते हैं लेकिन पंचायत चुनाव में यह खूब होता है। सत्ता पक्ष अपनी ताकत के बूते पंचायत चुनाव को प्रभावित करता है। 1995 में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में तत्कालीन सीडीओ संजय भूसरेड्डी ने एक नजीर स्थापित की थी। आशा है सभी पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी इससे सीख लेंगे।

Dr. Bhanu Pratap Singh