आगरा शहर में मंगलवार को एक बुलडोजर ने ‘कानून के राज’ का डंका बजाया। आगरा विकास प्राधिकरण (ADA) के बुलडोजर ने, जैसे कि किसी फिल्म के एक्शन सीन में होता है, एक-दो नहीं, बल्कि तीन अवैध कॉलोनियों को नेस्तनाबूद कर दिया। इन कॉलोनियों में मुख्य गेट से लेकर अंदर की सड़कें और अधबने मकान भी शामिल थे। इस चार घंटे की ताबड़तोड़ कार्रवाई से उन लोगों में हड़कंप मच गया, जो कानून को जेब में रखकर ‘विकास’ की अपनी परिभाषा गढ़ रहे थे।
यह कार्रवाई आगरा के तीन अलग-अलग ठिकानों पर की गई।
पहली कार्रवाई शाहगंज वार्ड के सिरोली रोड पर रूद्राक्ष रेजीडेंसी पर हुई, जिसे हरीश बासवाल, भद्र सिंह और तेजपाल सिंह द्वारा लगभग 5000 वर्गमीटर में अवैध रूप से बनाया जा रहा था। ADA ने पहले उन्हें नोटिस दिया था, लेकिन जब कोई जवाब नहीं मिला तो बुलडोजर ने जवाब दिया।
दूसरी कार्रवाई भी इसी सिरोली रोड पर श्यामजी गार्डन मैरिज होम के सामने हुई, जहां महावीर अग्रवाल लगभग 10,000 वर्गमीटर में एक और अवैध कॉलोनी बसा रहे थे। बुलडोजर का पहिया वहां भी रुका नहीं।
और तीसरी कार्रवाई, हरीपर्वत-2 वार्ड के मौजा जगनपुर, दयालबाग में हुई, जहां अनिल खंडेलवाल, अनूप गर्ग और रोहित गर्ग लगभग 5000 वर्गमीटर में तीसरी अवैध कॉलोनी विकसित कर रहे थे। तीनों ही मामलों में बुलडोजर ने वही कहानी दोहराई – अवैध निर्माण का अंत।
ADA ने भविष्य में बिना अनुमति के निर्माण न करने की हिदायत भी दी है।
क्या बुलडोजर ही एकमात्र समाधान है?
यह घटना सिर्फ तीन अवैध कॉलोनियों को गिराने की नहीं है, बल्कि यह उस पूरे तंत्र पर एक सवालिया निशान है जो ऐसी कॉलोनियों को सालों तक पनपने देता है। यह बात चौंकाती है कि 5000 या 10,000 वर्गमीटर के बड़े-बड़े अवैध निर्माण बिना किसी की नजर में आए कैसे शुरू हो जाते हैं? क्या इन कॉलोनियों को बनाने वाले लोग इतने मजबूत हैं कि उन्हें किसी की परवाह नहीं? या फिर इस पूरे खेल में कुछ ऐसे ‘अदृश्य हाथ’ भी शामिल हैं जो पर्दे के पीछे से इस धंधे को शह देते हैं?
ADA की यह कार्रवाई उत्तर प्रदेश नगर योजना एवं विकास अधिनियम-1973 की धारा-27 के तहत की गई है, जो कानूनी रूप से सही है। लेकिन सवाल यह है कि यह कार्रवाई ‘अंतिम’ क्यों होती है? जब निर्माण चल रहा होता है, तब क्यों कोई नहीं देखता? क्या अधिकारियों को तब तक का इंतजार रहता है जब तक कि लोग अपनी जीवन भर की कमाई इन भूखंडों में लगा न दें? यह कार्रवाई अवैध निर्माणकर्ताओं के साथ-साथ उन भोले-भाले ग्राहकों पर भी एक तरह का प्रहार है, जो अक्सर कागजी कार्रवाई की पेचीदगियों को समझे बिना इन बहकावे में आ जाते हैं।
सवाल: बुलडोजर के नीचे कौन?
अब कुछ सवाल, जो हमारे आपके दिमाग में भी आ रहे होंगे।
क्या बुलडोजर को सिर्फ तभी याद किया जाता है जब कोई कार्रवाई करनी हो? क्या वह ‘अवैध’ निर्माण शुरू होने के समय कहीं और ‘चाय’ पी रहा होता है?
क्या ‘विकास’ की परिभाषा सिर्फ वही है जो बुलडोजर की मार से टूटती है? और क्या जो बचा रह जाता है, वह ‘विकास’ की सच्ची तस्वीर है?
ये तीन कॉलोनियां तो गिर गईं, लेकिन क्या ADA के पास बाकी अवैध कॉलोनियों की सूची नहीं है? या फिर बुलडोजर को हफ्ते भर की छुट्टी पर भेज दिया गया है?
सबसे बड़ा सवाल, क्या इस पूरी घटना का उद्देश्य सिर्फ एक सख्त संदेश देना था, या फिर यह उन बड़े मगरमच्छों को बचाने का एक छोटा सा प्रयास है जो असली खिलाड़ी हैं?
आगरा में हुई यह कार्रवाई एक गंभीर संदेश देती है कि कानून का पालन करना अनिवार्य है। यह एक सबक है उन लोगों के लिए जो सोचते हैं कि वे नियम-कानूनों को ताक पर रखकर अपनी मनमानी कर सकते हैं। लेकिन यह सिर्फ एक शुरुआत होनी चाहिए, न कि अंत।
ADA और अन्य सरकारी संस्थाओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी अवैध गतिविधियों को शुरू होने से पहले ही रोका जाए। इसके लिए पारदर्शिता और जवाबदेही बहुत जरूरी है। जब तक ‘अवैध’ और ‘वैध’ के बीच की खाई को पाटा नहीं जाएगा, तब तक बुलडोजर की गरज शायद ही शांत हो पाएगी। यह बुलडोजर का डर नहीं, बल्कि कानून के प्रति सम्मान ही होना चाहिए जो लोगों को सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करे।
अब देखना यह है कि क्या यह सिर्फ एक शो-पीस कार्रवाई थी, या फिर आगरा में एक नई और पारदर्शी शहरी व्यवस्था की शुरुआत।
-मोहम्मद शाहिद की कलम से
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