डॉ. भानु प्रताप सिंह
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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. अगर कोई यह कहता है कि मुशायरा में सिर्फ मोहब्बत, इश्क और दिल की बात होती है तो मैं इससे सहमत नहीं हूँ। जिसने भी साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था चित्रांशी द्वारा आयोजित 39वां कुलहिंद मुशायरा सुना है, वह भी मेरी बात से सहमत ही होगा। शायरों ने इशारों-इशारों में ही व्यंग्य बाण छोड़े। समझने वाले समझ गए कि इशारा किस तरफ है। यह कवि और शायर ही कर सकते हैं कि बात भी कह दें, दिल में चुभ जाए और किसी को बुरा भी न लगे।
होटल ग्रांड में 21 अप्रैल की रात्रि मुशायरा के नाम रही। कार्यक्रम संजीदगी भरा था। बहुत ही अच्छा था। एक समय था जब मुशायरा सूरसदन सभागार में हुआ करता था। केसी श्रीवास्तव के स्वर्गवास के बाद मुशायरा लघु सभागार में सिमट गया है। यह तो हम जानते ही हैं कि श्रेष्ठ कार्यक्रम में संख्या कम ही होती है। इसलिए यहां भी करीब 100 लोग थे लेकिन थे सबके सब कद्रदान।
कुछ शायरों की शायरी पर बात करूं तो कवि सम्मेलन और मुशायरा में दो अंतर दिखाई दिए। मुशायरा की मशाल मुख्य अतिथि और प्रसिद्ध जूता निर्यातक नजीर अहमद, चित्रांशी के अध्यक्ष तरुण पाठक, महासचिव अमीर अहमद और जीडी शर्मा ने प्रज्ज्वलित की। सब पदवेश धारण किए हुए थे। मंचासीन शायर भी पदवेश में थे। कवि सम्मेलन में मंच पर पदवेशविहीन होते हैं सब। खैर यह तो अपनी-अपनी आस्था की बात है।

कवि सम्मेलन हो या मुशायरा, रिपोर्टिंग में यह परंपरा है कि सबसे पहले मशहूर कवि या शायर का उल्लेख किया जाता है। इसके विपरीत मैं तारा इकबाल की चर्चा करूंगा। वे रायबरेली से आईं। उन्होंने जब शेर-शायरी सुनानी शुरू की तो लोग सुनते रह गए। कई शेर तो श्रोताओं को इतने भाये कि दोबारा सुनाने की फरमाइश की गई। देखिए कुछ शेर..
तूने तो बातों-बातों में झड़ी लगा दी अश्कों की
तेरा थोड़े ही उसने शहर का मौसम पूछा था
इसी गुमान से वो दस तरस से जाता रहा
जरा सा हाथ बढ़ाएंगे उसको पा लेंगे
जब तक उसका शहर दिखा देखा रेल की खिड़की से
बाद इसी फिर बैठ के मैंने आँख निचोड़ी आंचल में
अब के उसके शहर ने रोका ना यादों न दस्तक दी
खिकड़ी खोली सांसें थी और आसानी से गुजर गईं

देवबंद से आए डॉ. नदीम शाह ने सुनाना शुरू किया तो वे पूरी तरह छा गए। कुछ शेर जरूर पढ़िए-
वो शराबी है तो क्या उसको भी जन्नत चाहिए
वो खुदा से मांगता है आप क्यों नाराज हैं
जरा सा सब्र था जो कर गए हम
उसे लगने लगा था मर गए हम
ये नाकदरी हमारी इसलिए है
तेरा होने में जल्दी कर गए हम
वक्त तुम्हारा है पर उतना जुल्म करो
बाद में जितना सहने में आसानी हो
तुम्हारी याद के लश्कर कहीं पड़े होंगे
हमारे जिस्म के अंदर कहीं पड़े होंगे

चंदौसी से आए चराग शर्मा के शेर
तुम्हें ये गम है कि चिट्ठियां नहीं आतीं
हमारी सोचो हमें हिचकियां नहीं आतीं
तितली से दोस्ती न गुलाबों का शौक है
मेरी तरह उसे भी किताबों की शौक है
हम आशिके गजल हैं तो मगरूर क्यों न हों
आखिर ये शौक भी तो नवाबों का शौक है
शायरों का तो चलो माना कि झूठे लोग हैं
पर वो जो तारीफ करते हैं शराबी आपकी
ये बेजुबानों की महफिल है दोस्त याद रहे
यहां खामोशी का मतलब जबान देना है
अबके मिली शिकस्त मेरी ओर से मुझे
जितवा दिया गया किसी कमजोर से मुझे
मैंने कुबूल कर लिया चुपचाप वो गुलाब
जो शाख दे रही थी तेरी ओर से मुझे

फिरोजाबाद से आए कलीम नूरी ने शानदार शेर सुनाए
किसी की हो हुकूमत हो या कोई सरकार आ जाए
हमें आपस में मिलजुलकर हमेशा साथ रहना है
फकत बंसी बजाने से कन्हैया बन नहीं सकते
जिसे राधा कहे अपना वही घनश्याम होता है
घर में तहखाने के सामान में रखा है हमें
उसने टूटे हुए गुलदान में रखा है हमें
अपने कमरे की महक और बढ़ान के लिए
उसने जलते हुए लोहबान में रखा है हमें
हम तो तिनका थे मगर सोने की बाली की तरह
ऐ कलीम उसने सदा कान में रखा है हमें

आगरा के भरतदीप माथुर की बात
तहजीब की मिट्टी में सुलहकुल का कमल है
गालिब नजीर मीर का सीमाओं का कल है
है सूर की धरती यहीं अकबर की है गुरबत
ये शहर ए मोहब्बत यहां ताजमहल है।
एक चिड़िया आपके पिंजरे की रौनक हो गई
और वो बच्चे कि जिनक चोंच से दाना गया
सुख से दुख को तौल रहा आना है आ जाओ
सच्चे मोती रोल रहा आना है आ जाओ
तुम्ही उलझे रहते हो जाने किस दुनियादारी में
अरे मैं तो कब से बोल रहा हूँ आना है आ जाओ
अच्छा हुआ नहीं हुआ, हम पर कोई हसीन फिदा,
दिल भी ये मुस्कराएगा अच्छा हुआ नहीं हुआ।
सुनकर हमारी बेबसी रोती हमारी शायरी,
किस्सा हमारा जाबोदार अच्छा हुआ नहीं हुआ।

बरेली से आए अकील नोमानी ने शानदार शेर सुनाए। संचालन चित्रांशी के महासचिव अमीर अहमद ने किया। इस दौरान डॉ. त्रिमोहन तरल, हरीश चिमटी, अब्दुल कुद्दूस खां, शिवराज यादव, कर्नल जीएम खान, डॉ. सिराज कुरैशी, पूनम जाकिर, सीमांत साहू, अभिनय प्रसाद, प्रो. मोहम्मद हुसैन असद, वैभव, सुनील श्रीवास्तव आदि मौजूद रहे।
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