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नेशनल चैम्बर के आयकर प्रकोष्ठ चेयरमैन अनिल वर्मा के प्रयास रंग लाए, देशभर के MSME क्रेता-विक्रेताओं को लाभ

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MSME के लिए 45 दिवसीय भुगतान नियम अप्रैल, 2025 तक स्थगित

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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. नेशनल चैम्बर ऑफ इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स (National Chamber of Industries and Commerce) के पूर्व अध्यक्ष एवं आयकर प्रकोष्ठ के चेयरमैन और जाने-माने आयकर अधिवक्ता अनिल वर्मा (Anil Verma Advocate)  की एक मांग ने पूरे देश के व्यापारियों की बड़ी राहत दी है। वित्त मंत्रालय ने एम.एस.एम.ई. ( Micro, Small and Medium Enterprises) के लिए 45 दिवसीय भुगतान नियम को अप्रैल, 2025 तक विलम्बित कर दिया है। इससे एम.एस.एम.ई. इकाइयों और खरीदारों को क्या लाभ होगा, इस बारे में विस्तार से बताएंगे।

 

आयकर अधिनियम 1961 की धारा 43बी (एच)

आयकर अधिनियम 1961 की धारा 43बी (एच) का जो प्रावधान 2022 के बजट में लागू हुआ था, उसके अनुसार व्यापारी को एम.एस.एम.ई. से खरीद या उसकी सेवाओं के बदले भुगतान अधिकतम 45 दिन में करना है। श्री अनिल वर्मा ने इस प्रावधान का अध्ययन किया तो पाया कि यह प्रावधान तो एमएसएमई इकाइयों के लिए भी खतरनाक है। उन्होंने पाया कि इस प्रावधान से व्यापारियों को अकस्मात बड़ी परेशानी महसूस हो रही है। उन्होंने फरवरी, 2023 से इस प्रावधान को आगे बढ़ाने के लिए अभियान चलाया। मांग कर रहे थे कि इस प्रावधान को 2024-25 से लागू किया जाना चाहिए ताकि व्यापारी अपनी व्यवस्थाएं पहले से कर लें।

 

क्या है हानि

श्री अनिल वर्मा ने बताया कि अगर एम.एस.एम.ई,. इकाई से माल या बिल आ गया है तो ठीक 15 दिन में भुगतान करना है। अगर विक्रेता और खरीदार के बीच एग्रीमेंट है तो भुगतान 45 दिन में करना होगा। विलम्ब होने पर 22 फीसदी ब्याज देना होगा। यह ब्याज खर्चे की श्रेणी न मानते हुए छूट नहीं दी जाएगी। जो भुगतान नहीं किया है तो भी उस वर्ष की आय में जुड़ जाएगा। खरीदार पर भुगतान के लिए धनराशि है या नहीं, इससे कोई मतलब नहीं है।

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एम.एस.एम.ई. इकाइयों को भी नुकसान

श्री वर्मा ने बताया कि इसका दूसरा दुष्प्रभाव यह हुआ कि एम.एस.एम.ई. इकाइयों से माल ही खरीदना बंद कर दिया। सरकार ने कानून तो एम.एस.एम.ई. इकाइयों के लाभार्थ बनाया लेकिन उनका नुकसान होने लगा। खरीदार तो मुश्किल में पड़ ही गए। बहुत से लोग कच्चे में भुगतान कर देते है, लेकिन पक्के में खड़ा रहता है। कई बार माल खराब निकलता है तो दोबार बनवाया जाता है। इसमें समय लगता है लेकिन तब तक बिल आ जाता है और भुगतान करना ही होता है।

 

जाने-माने आयकर अधिवक्ता अनिल वर्मा ने किया अध्ययन

जाने-माने आयकर अधिवक्ता अनिल वर्मा इस बारे में सबसे पहले नेशनल चैम्बर आगरा जागा। अध्ययन किया गया तो पाया कि आमतौर पर विक्रेता और खरीदार के बीच तीन माह की उधारी चलती है। कपड़ा और जूता उद्योग में तो यह आम बात है। मांग की गई कि अगर एम.एस.एम.ई. खरीदार और विक्रेता है तो उस पर लागू न हो। साथ ही जिनका टैक्स ऑडिट नहीं होता उन पर भी लागू न हो। यदि भुगतान आयकर विवरणी दाखिल करने की तिथि 139 (1) से पूर्व दाखिल कर दिया हो तो आय में न जोड़ा जाए यानी छूट मिल जाए।

 

फरवरी, 2023 से स्थगित कराने का प्रयास

नेशनल चैम्बर के अध्यक्ष राजेश गोयल ने बताया कि इस प्रावधान के विपरीत प्रभावों का आकलन घोषणा के तुरन्त बाद किया गया। हानि लाभ के सम्बन्ध में आगरा के कर विशेषज्ञों के साथ मंथन किया गया। सबका मत था कि यह प्रावधान उद्योग जगत के लिए सही नहीं सिद्ध होगा। चैम्बर से सुझावों सहित इस प्रावधान को वापस लेने के लिए वित्त मंत्री से अनुरोध किया गया। 16 मार्च, 2023 को चैम्बर ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को एक विस्तृत प्रतिवेदन भेजा।

 

समूचे देश के व्यापारियों को लाभ

आयकर प्रकोष्ठ के चेयरमैन अनिल वर्मा ने बताया कि इस घोषणा के बाद 31 मार्च 2024 को दाखिल होने वाली विवरणी में कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता और कर विशेषज्ञ डॉ. राकेश गुप्ता के साथ एक सेमिनार का आयोजन आगरा में किया गया। डॉ. राकेश गुप्ता ने भी इस प्रावधान की गम्भीरताओं को समझाया। उद्यमियों एवं व्यापारियों ने एक स्वर में कहा कि आयकर अधिनियम 1961 की धारा 43बी (एच) का प्रावधान लागू न हो। प्रसन्नता की बात है कि चैम्बर के प्रयासों से इसे अप्रैल, 2025 तक विलंबित कर दिया गया है। समूचे देश के व्यापारियों को इसका लाभ मिलेगा।

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Dr. Bhanu Pratap Singh