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आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत। हिंदी दिवस पर नागरी प्रचारिणी सभा ने हिंदी के योद्धा डॉ. मुनीश्वर गुप्ता का अभिनंदन किया। इस मौके पर डॉ. गुप्ता ने ऐलान किया, “मैं तब तक लगा रहूंगा जब तक कोई भी प्रवेश परीक्षा अंग्रेजी में होगी। नेता न करेंगे तो सर्वोच्च न्यायालय करेगा।”
डॉ. मुनीश्वर गुप्ता के उद्बोधन की मुख्य बातें
अंग्रेजों के 200 वर्ष के राज्य के बाद भी 3-4 प्रतिशत लोग ही अंग्रेजी में बात कर पाते हैं। एक समय था जब 765 परिवारों की पीढियां ही आईएएस में थे। अब स्थिति बदल रही है।
1987 में एमडी का शोधग्रंथ हिंदी में लिखने को चुनौती लेने के लिए लिया। तब ज्ञानी जैल सिंह के भाषण पर बहस शुरू हुई जो उन्होंने हिंदी और पंबाजी में दिया था। जनसत्ता में प्रभाष जोशी ने लिखा था कि चिकित्सा क्षेत्र में हिंदी के लिए कुछ नहीं किया। इसके बाद उन्होंने काम शुरू किया।
1986- 87 में प्री-मेडिकल प्रवेश परीक्षा केवल अंग्रेजी में कराने की घोषणा की गई। हमने आंदोलन शुरू किया। हम सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश से मिले तो उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में आना होगा। मोरारजी देसाई ने समस्त भारतीय भाषाओं में प्रवेश परीक्षा कराने की बात कही। एक वर्ष में ही यह परीक्षा हुई। तब 118 पेपर होते थे।
न्यूयॉर्क के बाजार में हिंदी है। लंदन के एयरपोर्ट और हिंदी बोली जाती है। अमिताभ बच्चन की फिल्मों ने हिंदी का विरोध खत्म कर दिया है।
2023 में भोपाल में हिंदी माध्यम से एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू हो गई है।
भाषा अपने मन की बात है। इसते लिए अपने स्तर पर जो भी कर सकते हैं, करें।

मुख्य वक्ता के रूप में आए वरिष्ठ पत्रकार और लेखक डॉ. भानु प्रताप सिंह ने अपने अनुभव सुनाते हुए कहा, 1990 के दशक में भी हिंदी अखबारों में काम पाने की पहली शर्त अंग्रेजी का ज्ञान था। यह क्रम आज भी है। उन्होंने बताया कि एमबीए प्रथम सत्र की परीक्षा में उत्तर हिंदी में लिखने पर अनुत्तीर्ण कर दिया गया है। फिर उन्होंने प्रबंधन विषय में हिंदी माध्यम से पीएचडी की। हिंदी में इस तरह के कीर्तिमान बनाने वालों में चंद्रशेखर उपाध्याय भी शामिल हैं, जिन्होंने एलएलएम किया। हिंदीवीरों के प्रेरणास्रोत डॉ. मुनीश्वर गुप्ता हैं।
डॉ. भानु प्रताप सिंह ने कहा कि इतना सब होने के बाद भी हिंदी के सहारे पेट पालन नहीं हो रहा है। इसके लिए अंग्रेजी का ही सहारा है। हिंदी में लिखी पुस्तकें बिकती नहीं। वे अमेजन पर अंग्रेजी में पुस्तकें लिख रहे हैं, जो विदेश में खूब बिकती हैं। उन्होँने विद्वानों से अपेक्षा की कि हिंदी को आर्थिक रूप से भी समृद्धि बनाया जाए।
केंद्रीय हिंदी संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. रामवीर सिंह ने हिंदीतर प्रदेशों से आए छात्रों को संबोधित करते हुए कहा, आप भाग्यशाली हैं जो आगरा में हिंदी सीख रहे हैं। हिंदी का विकास और प्रसार जितना अहिंदी भाषी लोगों ने किया, उतना हिंदी भाषी लोगों ने नहीं किया। राजाश्रय हिंदी आगे नहीं बढ़ती है। जनसंपर्क से आगे बढ़ा करती है और हिंदी यह काम कर रही।
उन्होंने कहा कि अपने देश में हम अपनी बात अपनी भाषा में कहना चाहते हैं और हमारे देश का ही बड़ा भाई हमारी बात नहीं सुनता है तो कठिनाई होती है। हिंदी स्कूलों की क्या स्थिति है, किसी से छिपी नहीं है। फिर भी हिंदी बढ़ेगी। संघर्ष के बाद परीक्षाएं हिंदी में होने लगी हैं। हिंदी किसी की बपौती नहीं है।

प्रसिद्ध कवि रामेंद्र मोहन त्रिपाठी ने डॉक्टर मुनीश्वर को हिंदी का योद्धा बताया। उन्होंने कहा कि हिंदी का विकास अभी होना बाकी है। राष्ट्र भाषा का दर्जा आज तक नहीं मिला। हिंदी को राष्ट्र भाषा का पद प्रदान किया जाए। मीडिया ने हिंदी का बहुत नुकसान किया है। हिंदी की दशा दिशा पर सिर्फ एक दिन चर्चा क्यों? हिंदी की आरती घर घर में हो, तभी हिंदी का संवर्धन होगा।
उन्होंने गीत सुनाया-
आसमान लाए हो तो रख दो हमारे पैताने
मैं उसे जी भर कुचलना चाहता हूँ।
इसने बहुत सताया है सारी दुनिया को
मैं उसकी रंगत बदलना चाहता हूँ।
ऐ मेरे हमराज बता, कल क्या होगा आज बता,
चीख भरी ये सदी है इसमें तू मेरी आवाज बता।
देने वाले तू क्या देगा, तू खुद है मोहताज बता

डॉक्टर ज्योत्सना रघुवंशी ने कहा, आज सब मनी के पीछे भाग रहे हैं लेकिन हारमोनी की जरूरत है। ये हारमोनी भाषाओं के बीच भी हो। भारतीय भाषाओं को साथ लेकर चलेंगे तभी हिंदी का विकास होगा।
जाने-माने गीतकार सोम ठाकुर ने हिंदी वंदना प्रस्तुत की-
अभिनंदन अपनी संस्कृति का, वंदन अपनी भाषा का।
नागरी प्रचारिणी सभा के सभापति डॉक्टर खुशीराम शर्मा ने कहा, हिंदी भारत के प्रत्येक कोने की भाषा है। तमिलनाडु के नेता भी कहते हैं की भविष्य हिंदी का है। हिंदी अपनी शक्ति से बढ़ रही है। व्यापार चलाने के लिए हिंदी के बिना काम नहीं चलेगा।
सभा के उपसभापति डॉ. विनोद कुमार माहेश्वरी ने डॉ. मुनीश्वर का अभिनंदन पत्र पढ़ा। उपसभापति प्रोफेसर डॉ. कमलेश नागर के संचालन में हुए कार्यक्रम में बृज कोकिला डॉ. शशि तिवारी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की-
मां तू अपने कंठहार का मोती मुझे बना ले
वीणा के तारों में से मुझको एक तार बना ले।
मेरी अभिलाषा है मां तेरा मयूर बन जाऊं
फिर कविता के पंख खोलकर थिरक- थिरक कर गाऊँ
इन पंखों के रंगों को मां अपने अंग सजा ले।
केंद्रीय हिंदी संस्थान के छात्र-छात्राओं ने भी सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। उन्होंने संस्थान गीत भी प्रस्तुत किया जो हिंदी भाषा को समर्पित है। केंद्रीय हिंदी संस्थान के छात्र ओडिशा से क्षलक कुमार और पश्चिम बंगाल से विभा कुमारी ने भी हिंदी की जयकार की। कहा कि हिंदी को भारत माता के माथे का मुकुट, साड़ी भी बना सकते हैं। संस्थान के सभी छात्रों और शिक्षकों का सम्मान किया गया।
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मंत्री डॉक्टर चंद्रशेखर शर्मा ने आभार प्रकट किया। अशोक अश्रु, वरिष्ठ पत्रकार राजीव सक्सेना ने अतिथियों का स्वागत किया। डॉक्टर मधुरिमा शर्मा, डॉ. गिरिजा शंकर शर्मा, अजय रंगीला, अनिल अरोरा संघर्ष, कृपालु किंकर महाराज (योगेंद्र परिहार), अजय रंगीला, प्रो. ज्योत्सना रघुवंशी, आनंद शंकर आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
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