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रामचरितमानस की तरह ‘श्रीकृष्ण चरित मानस’ लिख आधुनिक तुलसीदास बन गए देवेन्द्र सिंह परमार

साहित्य

रामकथा की तरह कृष्ण कथा का आधार बन सकता है यह ग्रंथ

श्रीकृष्ण चालीसा, श्री विष्णु चालीसा, 108 आहुतियों की रचना

 डॉ. भानु प्रताप सिंह

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आगरा। रामचरितमानस की रचना आज से 448 साल पहले गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी। रामचरितमानस का पाठ घर-घर में होता है। रामकथा होती है। देश में अनेक विख्यात और सुविख्यात कथावाचक हैं। देश -विदेश में राम से अधिक श्रीकृष्ण के मंदिर हैं। इसके बाद भी श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र पर आधारित कोई संपूर्ण ग्रंथ नहीं है। इस कमी को पूरा किया है श्री देवेन्द्र सिंह परमार ने। उन्होंने रामचरितमानस की तर्ज पर ‘श्रीकृष्ण चरित मानस’ की रचना की है। इसमें चौपाई, दोहा, सोरठा और छंद हैं। अगर श्री देवेन्द्र सिंह परमार को आधुनिक तुलसीदास कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं है। रामकथा की तरह कृष्ण कथा शुरू करने का विचार बन रहा है। भागवत में कृष्ण चरित के इतर तमाम कथाएं हैं लेकिन कृष्ण कथा में सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण की संपूर्ण लीलाएं होंगी।

तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना अवधी में की है। श्री देवेन्द्र सिंह परमार ने ‘श्रीकृष्ण चरित मानस’ की रचना बृज भाषा में की है। अत्यंत सरस, सरल, सुगम्य, सुंदर, श्रेष्ठ शैली है। गेय शैली में है। प्रत्येक चार चौपाइयों के बाद उनका भावार्थ भी दिया गया है। मोटे अक्षरों में है, सो जिनकी नेत्र दृष्टि तीक्ष्ण नहीं है, वे भी आसानी से पढ़ सकते हैं।‘श्रीकृष्ण चरित मानस’ में श्रीकृष्ण के जीवन की छोटी-बड़ी सभी घटनाएं समाहित की गई हैं।

रचयिता देवेन्द्र सिंह परमार ने कहीं-कहीं उन्होंने अपने कवि कौशल का भी परिचय दिया है।

कृष्ण जन्म का एक छंद देखिए-

दरशन दीया नैनों पीया दोनों हुए सुखारी।

ये सुधि भूले प्रेम में फूले पाके खुशी अपारी

हे परमेश्वर हे जगदीश्वर लीला खूब दिखाई

बनि जा लाला छोटे ग्वाला आबे कंस कसाई।।

श्रीकृष्ण का नाम मुरारी कैसे पड़ा, इसका सुंदर वर्णन मुरा असुर का वध में पृष्ठ संख्या 258 पर किया गया है-

थोथे गाल बजावत कोरे। ग्वाला बाण साधि अब मोरे।।

अस्त्र-शस्त्र सब असुर चलाए। काटि-काटि के श्याम गिराए।।

श्याम सुदर्शन चक्र चलाया। काटा शीश धरनि पै आया।।

 मुर को मारि दई किलकारी। तब से पड़ि गयो नाम मुरारी।।

बल्देव संतित, भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र की प्राप्ति, गोकुल से नंदगांव पलायन, असली वृंदावन आदि अप्रचारित घटनाओं का उल्लेख प्रामाणिक तरीके से किया गया है। कुल मिलाकर रामचरितमानस की तरह श्रीकृष्ण चरित मानस का भी पाठ किया जा सकता है।

यह ग्रंथ रामकथा की तरह कृष्ण कथा का आधार बन सकता है। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस को आधार बनाकर रामकथा शुरू की थी। उसी तरह से देवेन्द्र सिंह परमार को कृष्ण कथा शुरू कर देनी चाहिए। हो सकता है विधि ने उन्हीं के हाथों यह शुभ कार्य लिखा हो।

जूना अखाड़ा (हरिद्वार) के मंहत विश्वापुरी ने आशीर्वचन देते हुए कहा है- भगवान श्रीकृष्ण के 108 नामों की आहुतियां विशेष लाभकारी हैं। इन्हें सिद्ध किया जा सकता है। भक्तजन इसका लाभ उठा सकते हैं।

रचयिता देवेन्द्र सिंह परमार ने लिखा है- जो भक्तिभाव से इस ग्रंथ को पढ़ेगा या सुनेगा, उसी को भगवत भक्ति का प्रसाद मिलेगा। भक्ति में अविश्वास एवं तर्क का कोई स्थान नहीं होता है। भक्त पूरी तरह से भगवान के श्री चरणों में अफने आपको समर्पित करके आदर के साथ इस ग्रंथ को पढ़ेंगे, सुनेंगे या रखेंगे तो उनके मन में भक्तिभाव का संचार अवश्य होगा।

पुस्तक के पांच भागों में 79 विषय हैं। श्रीकृष्ण और शिव युद्ध का रोमांचकारी वर्णन है। भक्त नरसी का जीवन वृतांत दिया गया है। कवि देवेन्द्र सिंह परमार ने श्रीकृष्ण चालीसा और श्री विष्णु चालीसा की रचना की है। भगवान श्रीकृष्ण के 108 नामों की आहुतियों की रचना की गई है। अंत में मंत्रों के साथ सूक्ष्म हवन पद्धि दी है।

रामचरितमानस की रचना 966 दिन में पूरी हुई थी। इसके लिए तुलसीदास ने अयोध्या, काशी, समेत उन स्थानों का भ्रमण किया था जहां भगवान राम से जुड़े साक्ष्य थे। रामचरितमानस की हस्तलिखित पांडुलिपि राजा का रामपुर गांव में रामाश्रय के पास आज भी मौजूद थे। मेरा सुझाव है कि देवेन्द्र सिंह परमार को भी श्रीकृष्ण चरित मानस की पांडुलिपि सुरक्षित रखनी चाहिए।

कौन हैं देवेन्द्र सिंह परमार

12 वर्ष की आयु में देवेन्द्र सिंह परमार की भेंट भगवताचार्य रामकिशोर शर्मा पैंतखेड़ा वालों से हुई। उन्होंने श्रीकृष्ण का गुरु मंत्र दिया। तभी से श्रीकृष्ण की आराधना कर रहे हैं। कृषि विभाग उत्तर प्रदेश में सेवा की। शुरुआत से ही विचार था- मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के संपूर्ण जीवन की घटनाओं को क्रमबद्ध रूप से वर्णन करने वाला एक ग्रंथ श्रीरामचरित मानस रामभक्तों के जीवन का आधार है। कृष्ण भक्तों के लिए इस तरह का कोई ग्रंथ नहीं है। राजकीय सेवा से निवृत्ति के बाद मंहत विश्वापुरी (जूना अखाड़ा, हरिद्वार) से हुई। उनका आशीर्वाद से श्रीकृष्ण चरित मानस की रचना हो गई। वे शास्त्रीपुरम, सिकंदरा के रहने वाले हैं। समाजसेवा के कार्यों में अग्रणी भूमिका निभाते हैं।

पुस्तक का नामः श्रीकृष्ण चरित मानस

पृष्ठ संख्याः 504

प्रकाशकः मनोज प्रकाशन, आगरा

मूल्यः 751 रुपये।

वेबसाइटः devaradhya.com से खरीद सकते हैं।

संपर्कः 9411400931

Dr. Bhanu Pratap Singh