लोकतंत्र को बीमार कर रही प्रेस पर पाबंदी…क्या पत्रकारों की कलम बंद करने से देश आगे बढ़ेगा?

दुनिया के कई देशों में इन दिनों प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर व्यापक चर्चा हो रही है. खासकर भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में, जहां सरकार की नीतियों की आलोचना करने और उनकी कार्यशैली पर सवाल उठाने पर पत्रकारों पर बड़े पैमाने पर मुक़दमे दर्ज किए जा रहे हैं. इसका सीधा असर विश्व […]

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झूठे मुकदमों का कारोबार और वकीलों की जवाबदेही: जब न्याय के प्रहरी ही अपराधी बन जाएँ, तो कानून की आस्था कैसे बचे?

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार झूठे मुकदमे केवल निर्दोषों को पीड़ा नहीं देते, बल्कि न्याय तंत्र की नींव को भी हिला देते हैं। जब वकील ही इस व्यापार में शामिल होते हैं तो वकालत की गरिमा और न्यायपालिका की विश्वसनीयता दोनों पर गहरा आघात होता है। ऐसे वकीलों पर आपराधिक मुकदमे चलना अनिवार्य […]

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घुमन्तु समाज को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए जरुरी है केंद्र व राज्य सरकारों की इच्छाशक्ति

भारत की सांस्कृतिक विविधता में घुमंतू समाज एक अनमोल रत्न की तरह है, जो अपनी अनूठी जीवनशैली और परंपराओं के साथ देश की सामाजिक-आर्थिक संरचना का अभिन्न हिस्सा रहा है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से यह समाज, दशकों से अपनी खानाबदोश प्रकृति के कारण मुख्यधारा से कटा हुआ है और आज भी मूलभूत सुविधाओं व अधिकारों […]

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टिकटॉक की ‘वापसी’: क्या यह सिर्फ एक तकनीकी गड़बड़ी है या चीन से ‘बदला’ हुआ प्रेम?

दिल्ली: तो जनाब, एक बार फिर वही पुरानी कहानी। चीन से आया था एक तूफ़ान, नाम था टिकटॉक। 2020 में गलवान में कुछ हुआ और हमारे देश की सरकार ने एक झटके में 59 चीनी ऐप्स को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ का हवाला देकर बैन कर दिया। वाह! क्या दिन थे वो भी। देश की संप्रभुता और […]

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आगरा में क्या सब शांत था, तब मिला सम्मान, कैसे और क्यों हुई मैडल की हुई बरसात

आगरा। क्या आप सोच रहे हैं कि आगरा पुलिस कमिश्नरेट में सब कुछ शांत है? कोई अपराध नहीं, कोई उत्पीड़न नहीं, कोई लापरवाही नहीं? अगर आप ऐसा सोच रहे हैं, तो आप बिल्कुल सही हैं। क्योंकि तभी तो स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर यहां के पुलिस अधिकारियों को इतने मेडल मिले हैं। इतने मेडल कि […]

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आगरा में क्या सब शांत था, तब मिला सम्मान, कैसे और क्यों हुई मैडल की हुई बरसात

आगरा। क्या आप सोच रहे हैं कि आगरा पुलिस कमिश्नरेट में सब कुछ शांत है? कोई अपराध नहीं, कोई उत्पीड़न नहीं, कोई लापरवाही नहीं? अगर आप ऐसा सोच रहे हैं, तो आप बिल्कुल सही हैं। क्योंकि तभी तो स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर यहां के पुलिस अधिकारियों को इतने मेडल मिले हैं। इतने मेडल कि […]

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स्वतंत्रता का अधूरा आलाप… क्या लोकतंत्र का मतलब सिर्फ़ चुनाव रह गया है?

“आज़ादी केवल तिथि नहीं, एक निरंतर संघर्ष है। यह सिर्फ़ झंडा फहराने का अधिकार नहीं, बल्कि हर नागरिक को समान अवसर और सम्मान देने की जिम्मेदारी है। जब तक यह जिम्मेदारी पूरी नहीं होती, हमारी स्वतंत्रता अधूरी है।” प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार 15 अगस्त 1947 को हमने विदेशी शासन की बेड़ियों को […]

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नन प्रकरण: हिंदुत्व की प्रयोगशाला बनता छत्तीसगढ़

संजय पराते छत्तीसगढ़ में दुर्ग रेलवे स्टेशन पर दो ननों, सिस्टर प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस और एक आदिवासी युवक सुखमन मंडावी पर बजरंग दल के लोगों द्वारा हमले, उनके खिलाफ जबरन धर्मांतरण और मानव तस्करी के मामले दर्ज होने, एनआईए कोर्ट द्वारा तीनों आरोपियों को जमानत मिलने का मामला मीडिया की सुर्खियों में है। […]

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रक्षाबंधन के बदलते मायने: परंपरा से आधुनिकता तक

प्रियंका सौरभ स्वतंत्र पत्रकार, कवयित्री और व्यंग्यकार रक्षाबंधन का धागा सिर्फ कलाई पर नहीं, दिल पर बंधता है। यह एक वादा है—साथ निभाने का, सुरक्षा का, और बिना कहे समझ लेने का। बहन की राखी में वो मासूम दुआ होती है जो शब्दों में नहीं कही जाती, और भाई की आंखों में वो संकल्प होता […]

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रक्षाबंधन: क्या वास्तव में निभा रहे हैं भाई-बहन प्रेम और रक्षा का वादा?

डॉ सत्यवान सौरभ रक्षाबंधन केवल राखी बांधने और गिफ्ट देने का त्योहार नहीं, बल्कि भाई-बहन के स्नेह, विश्वास और परस्पर सहयोग का प्रतीक है। आज यह पर्व सोशल मीडिया दिखावे और औपचारिकताओं में सिमटता जा रहा है। भाई-बहन सालभर दूर रहते हैं, पर एक दिन फोटो खिंचाकर ‘रिश्ता निभाने’ का प्रमाण दे देते हैं। असली […]

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