पुरस्कारों का सौदा: साहित्य के बाज़ार में बिकती संवेदनाएं
डॉ सत्यवान सौरभ साहित्य आज साधना नहीं, सौदेबाज़ी का बाज़ार बनता जा रहा है। नकली संस्थाएं ₹1000-₹2500 लेकर ‘राष्ट्रीय’ और ‘अंतरराष्ट्रीय’ पुरस्कार बांट रही हैं। यह केवल साहित्य नहीं, भाषा की भी हत्या है। “सहयोग राशि” के नाम पर सम्मान बिक रहा है, और सच्चे साहित्यकारों की साधना उपेक्षित हो रही है। अब समय आ […]
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