पुरस्कारों का सौदा: साहित्य के बाज़ार में बिकती संवेदनाएं

डॉ सत्यवान सौरभ साहित्य आज साधना नहीं, सौदेबाज़ी का बाज़ार बनता जा रहा है। नकली संस्थाएं ₹1000-₹2500 लेकर ‘राष्ट्रीय’ और ‘अंतरराष्ट्रीय’ पुरस्कार बांट रही हैं। यह केवल साहित्य नहीं, भाषा की भी हत्या है। “सहयोग राशि” के नाम पर सम्मान बिक रहा है, और सच्चे साहित्यकारों की साधना उपेक्षित हो रही है। अब समय आ […]

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पर्यावरण दिवस फोटो के लिए नहीं, भविष्य के लिए मनाएं,: क्या आपने पिछले साल के पौधे भी देखे ?

हर वर्ष ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ पर हम पौधे लगाते हैं, फोटो खिंचवाते हैं, लेकिन एक प्रश्न अनदेखा रह जाता है — क्या पिछले साल लगाए पौधे अभी भी जीवित हैं? पौधारोपण अब महज़ एक दिखावे का आयोजन बन चुका है, जिसमें जिम्मेदारी गौण और प्रचार प्रमुख हो गया है। जरूरत है “वृक्षपालन” की, जिसमें हर […]

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पर्यावरण संरक्षण: पेड़ों की कटाई पर प्रतिबन्ध से क्या वाकई बदल रहे हैं हालात?

पर्यावरण संरक्षण में पेड़ों की क्या भूमिका है, इसे शब्दों में बयां करना थोड़ा मुश्किल है. बस यूँ समझ लीजिए कि शरीर को चलायमान रखने के लिए जिस तरह से आत्मा का उसमें होना ज़रूरी है. वैसे ही पर्यावरण के लिए पेड़ों की मौजूदगी आवश्यक है. शायद यही वजह है कि देश में पेड़ों की […]

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“लाइक्स” ओर “फॉलोअर्स” में जीवन का अस्तित्व तलाशते युवा…

बृजेश सिंह तोमर(वरिष्ठ पत्रकार एवं आध्यात्मिक चिंतक) सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में जीने की प्रवृत्ति से आज की युवा पीढ़ी आत्ममूल्यांकन के बजाय “लाइक्स” और “फॉलोअर्स” के तराजू से अपने अस्तित्व की कीमत आंकने लगी है। हाल ही में मात्र 23 वर्ष की आयु में सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर मीशा का इस दुनिया को अलविदा […]

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हरियाणा में चौपालों का वर्चस्व – लोकतंत्र की जड़ें या परंपरा की जंजीर?

डॉ सत्यवान सौरभ हरियाणा की ग्रामीण संस्कृति में ‘चौपाल’ सिर्फ एक बैठने की जगह नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और कभी-कभी राजनीतिक निर्णयों का अनौपचारिक मंच रही है। यह जगह जहाँ बुज़ुर्ग अपनी ताश की गड्डी के साथ बैठते हैं, वहीं यह सामाजिक आचार-संहिताओं का अनकहा विधान भी तय करती है। लेकिन समय के साथ सवाल […]

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यदि भारत ने विश्व पर इंग्लैंड की तरह साम्राज्य स्थापित किया होता! (भाग – 2) ठाकुर दलीप सिंघ जी

यदि विचार किया जाए: तो आज भी विश्व के सब से बड़े भाग को गुलाम बना कर, उस पर इंग्लैंड, अमरीका आदि के अंग्रेज़ी-भाषी लोग ही शासन कर रहे हैं। इस का कारण केवल वही है, जिस का मैं यहाँ उल्लेख कर रहा हूँ : ‘इंग्लैंड का विश्व के लोगों को गुलाम बना कर, वहाँ अपना साम्राज्य स्थापित […]

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व्हाट्सएप बैन और डिजिटल गुलामी: क्या हम टेक कंपनियों के बंधुआ मज़दूर बनते जा रहे हैं?

डॉ सत्यवान सौरभ Jio ने हमें सस्ते डेटा का स्वाद चखाया और फिर उसकी लत लगाकर हमारी जेबें ढीली कर दीं। आज WhatsApp उसी रास्ते पर है — “पहले फ्री दो, फिर गुलाम बनाओ, फिर लूटो”। यह समय है कि हम सिर्फ यूज़र नहीं, डिजिटल नागरिक बनें — जागरूक, संगठित और अधिकारों के लिए लड़ने […]

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विकसित भारत लक्ष्य- 2047: भगवान बुद्ध के योग, तप, चरित्र और दर्शन से संभव अखंड व भारत का निर्माण

मानव इतिहास में कुछ महान व्यक्तित्व ऐसे होते हैं, जिनका प्रभाव न केवल अपने समय और भूभाग तक सीमित रहता है, बल्कि वह युगों-युगों तक मानवता के लिए पथप्रदर्शक बन जाते हैं। तथागत भगवान गौतम बुद्ध एक ऐसे ही महामानव थे, जिनका जीवन, चरित्र, योग, तप और दर्शन का समन्वय मानवता के उद्धार का मार्ग […]

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बड़वा गांव की हवेलियों में इतिहास की गूंज: ठाकुरों की गढ़ी से केसर तालाब तक

दक्षिण-पश्चिम हरियाणा की रेतीली धरती पर, जहां धूप की तल्खी रेत के कणों को भी तपाने में सक्षम होती है, वहीं बसा है बड़वा — एक गांव जो आज भी अपने अतीत की स्मृतियों को हवेलियों की दीवारों, तालाबों की गहराई, और चित्रों की रंगरेखा में संजोए हुए है। यह गांव भिवानी जिले में, हिसार […]

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यदि भारत ने विश्व पर इंग्लैंड की तरह साम्राज्य स्थापित किया होता!

नई दिल्ली, मई 23: आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि यदि भारत ने इंग्लैंड की तरह विश्व पर साम्राज्य स्थापित किया होता; तो भारतीय भाषाएं कितनी समृद्ध होती! जिस तरह आज ‘इंग्लिश’ विश्व पर शासन कर रही है, उसी तरह ही भारतीय भाषाएं भी विश्व पर शासन करती। आज विश्व में अंग्रेज़ी की बजाय […]

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