अभी तो मेंहदी सूखी भी न थी: पहलगाँव की घाटी में इंसानियत की हत्या

डॉ सत्यवान सौरभ जम्मू-कश्मीर के पहलगाँव में हुए आतंकी हमले में जहाँ एक नवविवाहित हिंदू पर्यटक को उसका नाम पूछकर सिर में गोली मार दी गई। ये हमला सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि धार्मिक पहचान के आधार पर की गई घृणा और आतंक का प्रतीक है। मृतक की पत्नी की स्तब्ध तस्वीर को राष्ट्र की […]

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फसलों में लगती आग: किसान की मेहनत का जलता सपना

डॉ सत्यवान सौरभ हर साल हजारों एकड़ फसल आग में जलकर राख हो जाती है, जिससे किसानों की मेहनत, उम्मीदें और जीवन प्रभावित होते हैं। आग के मुख्य कारणों में बिजली की लचर व्यवस्था, मानवीय लापरवाही, आपसी दुश्मनी और जलवायु कारण शामिल हैं। सरकारी मुआवज़ा योजनाएं और फसल बीमा प्रक्रियाएं इतनी जटिल और असंवेदनशील हैं […]

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शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा, थाना और तहसील: संस्थानों की विफलता गंभीर चिंता का विषय

प्रियंका सौरभ शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा, थाना और तहसील जैसे पाँच संस्थानों की विफलता गंभीर चिंता का विषय है। शिक्षा अब ज्ञान नहीं, कोचिंग और फीस का बाजार बन चुकी है। स्वास्थ्य सेवाएँ निजीकरण की भेंट चढ़ चुकी हैं, जहाँ इलाज से ज्यादा पैकेज बिकते हैं। चिकित्सा व्यवस्था मुनाफाखोरी का अड्डा बन गई है। थाने न्याय […]

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लोकतंत्र से चुनकर आकर लोकतंत्र को सीमित करने की कोशिश: न्यायपालिका निशाने पर क्यों..

शकील अख्तर प्रतिक्रियावाद का यह पुराना तरीका है। करो खुद आरोप दूसरे पर लगा दो। प्रतिक्रियावाद दक्षिणपंथ पाखंड पर ही चलता है। मूल उद्देश्य होता है लोगों को बेवकूफ बनाकर अपना काम निकालाना। इसके लिए वे कुछ भी कह सकते हैं। किसी पर भी कोई भी आरोप लगा सकते हैं। ताजा उदाहरण है निशिकांत दुबे […]

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प्राइवेट स्कूल का मास्टर: सम्मान से दूर, सिस्टम का मज़दूर

प्रियंका सौरभ प्राइवेट स्कूलों में शिक्षकों से उम्मीदें तो आसमान छूती हैं, लेकिन उन्हें न तो उचित वेतन मिलता है, न सम्मान, न छुट्टी और न ही सुरक्षा। महिला शिक्षक दोहरी ज़िम्मेदारियाँ उठाती हैं, वहीं शिक्षक दिवस के दिन सिर्फ प्रतीकात्मक सम्मान मिलता है जबकि सालभर उनका शोषण जारी रहता है। अभिभावक, स्कूल प्रबंधन और […]

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“डिग्री से दक्षता तक: शिक्षा प्रणाली को उद्योग से जोड़ने की चुनौती”

“क्लासरूम से कॉर्पोरेट तक: उच्च शिक्षा और उद्योग के बीच की दूरी” “डिग्री नहीं, दक्षता चाहिए: नई अर्थव्यवस्था की नई ज़रूरतें” “कुशल भारत की कुंजी: उद्योग अनुरूप विश्वविद्यालय शिक्षा” डॉ सत्यवान सौरभ वर्तमान में, उच्च शिक्षा प्रणाली उद्योग की तेजी से बदलती आवश्यकताओं से मेल नहीं खाती, जिसके परिणामस्वरूप अधिकांश स्नातक रोजगार के लिए अपर्याप्त […]

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रंगमंच पर जाति का खेल: मनोरंजन के नाम पर मानसिकता का निर्माण कितना जायज़?

प्रियंका सौरभ कला का काम समाज को जागरूक करना है, उसकी विविधताओं को सम्मान देना है, और उस आईने की तरह बनना है जिसमें हर वर्ग खुद को देख सके। लेकिन जब कला सिर्फ कुछ खास वर्गों या समूहों की महिमा गाने लगे, और बाकी समाज की पीड़ा, संघर्ष और उपस्थिति को नज़रअंदाज़ कर दे, […]

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डॉ. भीमराव अंबेडकर और आज: विचारों का आईना या प्रतीकों का प्रदर्शन?

डॉ सत्यवान सौरभ डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भारत को एक समतामूलक, न्यायप्रिय और जातिविहीन समाज का सपना दिखाया था। उन्होंने संविधान बनाया, शिक्षा और सामाजिक न्याय को हथियार बनाया, और जाति व्यवस्था का खुला विरोध किया। आज उनका नाम हर मंच पर लिया जाता है, लेकिन उनके विचारों को गंभीरता से अपनाया नहीं जाता। आरक्षण […]

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किसी सिरफिरे द्वारा दिया गए दुर्भाग्यपूर्ण बयान से राणा सांगा की वीरता कम नहीं होगी: पूरन डावर

देश की राजनीति आजकल नकारात्मक मुद्दों पर केंद्रित होती जा रही है। लगभग सभी दलों के नेताओं के ऐसे बयान सामने आते हैं, जिनसे अनावश्यक विवाद खड़ा हो जाता है और राजनीति गरमा जाती है। राणा सांगा जैसे ऐतिहासिक और वीर पुरुष पर किसी सिरफिरे द्वारा दिया गया दुर्भाग्यपूर्ण […]

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अंबेडकर जयंती विशेष: लोकतंत्र केवल अधिकारों का मंच नहीं, बल्कि नागरिकों के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का साझेधार भी

डॉ सत्यवान सौरभ लोकतंत्र केवल अधिकारों का मंच नहीं, बल्कि नागरिकों के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का साझेधार भी है। भारत जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में नागरिकों की भूमिका केवल वोट देने तक सीमित नहीं होनी चाहिए। उन्हें न्याय, समानता, संवाद, स्वच्छता, कर भुगतान, और संस्थाओं के प्रति सम्मान जैसे क्षेत्रों में भी सक्रिय […]

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