ब्रज लोक कला परम्परा कार्यशाला बेव संवाद एवं कार्यशाला

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Mathura (Uttar Pradesh, India)। मथुरा। वृन्दावन शोध संस्थान, वृन्दावन के ब्रज संस्कृति संग्रहालय द्वारा चार दिवसीय ऑनलाइन एवं ऑफलाइन कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला के प्रथम दिवस में लुप्त हो रही ब्रज लोक संस्कृति में रेखांकन चित्र तथा भित्ति चित्रकला तथा विभिन्न प्रकार के चौक निर्माण का प्रशिक्षण बालक-बालिकाओं को दिया गया। वर्तमान समय में यह परम्परायें एवं कलायें विलुप्त होती जा रही हैं। घर में भी इन कलाओं ने अपना स्थान कैलेण्डर व रंगोली के रूप में ले लिया है। वर्तमान पीढ़ी भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं से दूर न हो इस हेतु वृन्दावन शोध संस्थान ने उक्त कार्यशाला का आयोजन किया।

वैज्ञानिक तथ्यों का आधार देते हुए जानकारी प्रदान की

ब्रज संस्कृति संग्रहालय की क्यूरेटर श्रीमती ममता कुमारी ने ब्रज की प्रसिद्ध लोक कलाकार डॉ. सीमा मोरवाल ने संवाद के माध्यम से बालक-बालिकाओं को इन कलाओं के विषय में विस्तार से वैज्ञानिक तथ्यों का आधार देते हुए जानकारी प्रदान की। विशेष रूप से स्वास्तिक, अठ्गुठ्ठा चौक, सतकली दीपक तथा देवउठान एकादशी पर कार्तिक मास में बनाये जाने वाले विभिन्न चौकों का प्रशिक्षण व उनके विषय में विस्तार से बताया गया। उन्होंने बताया कि लोक कलाऐं मन को आनन्द देने वाली, धर्म से जुड़ी तथा शुभ एवं मंगल की कामना लिए होती हैं। ये कलायें जीवन की खटास से नवनीत निकालने का संदेश देती हैं।

स्वास्तिक सर्वतोऋद्धअर्थात सभी दिशाओं में सब का कल्याण हो का द्योतक है

स्वास्तिक निर्माण के विषय में उन्होंने बताया कि यह प्रगति का सूचक है, ऋग्वेद में इसे सूर्य का प्रतीक माना गया है। इसकी चार भुजाऐं चार दिशाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। हमारे प्राचीन वेदों में इसे ब्रह्माण्ड का प्रतीक भी माना गया है। स्वास्तिक ‘सर्वतोऋद्ध’ अर्थात सभी दिशाओं में सब का कल्याण हो का द्योतक है। स्वास्तिक सु़अस़क धातु से निर्मित है, सु माने अच्छा, अस माने सत्ता या अस्तित्व, क माने कर्ता या करने वाला अर्थात यह प्रतीक हमेशा मंगल करने वाला होता है।

सीधे स्वास्तिक एवं उल्टे स्वास्तिक का अर्थ क्या है एवं कैसे प्रयोग किया जाता है

प्राचीन समय में महिलायें अपने घर से निकलकर देवालयों में कम जा पाती थीं, इस कारण देवउठान एकादशी पर समस्त देवों का आह्नान अपने आंगन में ही कर लेती थीं। जिसमें गेरू, खड़िया के माध्यम से देवचरण, गौचरण, गंगा-यमुना एवं सरस्वती, राई दामोदर, दीपक घण्टा, कच्छ-मच्छ आदि का अंकन कर उनकी परिक्रमा कर लेती थीं। चौकों को रेखांकित करने में ब्रज की ही भावी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाली कलाकार कु. उमा सिंह ने बालिकाओं को रेखांकन कला का प्रशिक्षण देने में अपना सहयोग प्रदान किया। कार्यशाला का अवलोकन करते हुए श्री आदित्य चौधरी ने बच्चों को जानकारी दी कि सीधे स्वास्तिक एवं उल्टे स्वास्तिक का अर्थ क्या है एवं कैसे प्रयोग किया जाता है तथा बताया कि ब्रज के नक्शे में मथुरा का स्वास्तिक आकार का दिखाया गया है जिसके चारों कोनों पर चार महादेव प्रहरी के रूप में अवस्थित हैं। धन्यवाद ज्ञापन संस्थान निदेशक सतीशचन्द दीक्षित द्वारा दिया गया। सुकुमार गोस्वामी, रेखा रानी, पूजा, भगवती प्रसाद, रमेशचन्द आदि द्वारा कार्यशाला का अवलोकन किया गया। कार्यक्रम संयोजन ब्रज संस्कृति संग्रहालय की क्यूरेटर श्रीमती ममता कुमारी एवं रजत शुक्ला द्वारा दिया गया। तकनीकी सहयोग श्रीकृष्ण गौतम, उमाशंकर पुरोहित, जुगल शर्मा एवं राजकुमार शुक्ला का रहा।

Dr. Bhanu Pratap Singh