sanskar bharati

साहित्य सृजन में सबसे पहले समाजहित का ध्यान रखें: बांकेलाल

साहित्य

संस्कार भारती की साहित्य विधा की अखिल भारतीय चिंतन बैठक नागपुर में हुई

आगरा से कई पदाधिकारी गए, साहित्यकारों को प्रबुद्ध कर्मयोगी बताया गया

Agra, Uttar Pradesh, India. संस्कार भारती साहित्य विधा की अखिल भारतीय द्विदिवसीय चिंतन बैठक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय माधव भवन, रेशमबाग, नागपुर में संपन्न हुई। बैठक में पूरे भारत से संस्कार भारती के अखिल भारतीय पदाधिकारी, प्रांत साहित्य संयोजक, सह संयोजक एवं स्थानीय कार्यकर्ताओं सहित लगभग 80 लोग सम्मिलित हुए। यह बैठक अपने आप में अनूठी, ज्ञानवर्धक साहित्यकारों द्वारा राष्ट्र के हित में एक प्रबुद्ध कर्मयोगी के रूप में सान्निध्य तथा तादात्म्य स्थापित करने वाली रही।

चिंतन बैठक की उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कांचन ताई गडकरी ने अपने वक्तव्य में कहा कि नागपुर में सभी साहित्यकारों का स्वागत है। आश्वासन दिया कि इस तरह के कार्यक्रम होते हैं तो हमारा पूरा सहयोग आपको सदा मिलता रहेगा। अपने बीज वक्तव्य में डॉ. रवींद्र भारती ने बताया कि साहित्य जितना पहले प्रासंगिक था, उससे कहीं अधिक आज प्रासंगिक है। समाज में बदलती मान्यताओं को पुन:स्थापित करने के लिए इसकी बहुत आवश्यकता है। साहित्य साधना के द्वारा हमें राष्ट्र जागरण करना है।

द्वितीय सत्र की अध्यक्षता करते हुए संस्कार भारती के मार्गदर्शक और वरिष्ठ प्रचारक बांकेलाल जी ने साहित्य के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए बताया कि साहित्य व्यक्तिपरक न होकर समाजपरक होता है। इसलिए हमें समाज के हित का सबसे पहले ध्यान रखना चाहिए।

अखिल भारतीय संस्कार भारती साहित्य के संयोजक और चिन्तन बैठक के संयोजक आशुतोष आडोनी ने अपने वक्तव्य में बताया कि हमारे देश में साहित्य पर सदा ही वैचारिक आक्रमण होते रहे हैं। आज उन्हें संतुलित व संशोधित करने की बहुत जरूरत है।

राघवेंद्र नायकवाड दे बताया कि भारत की सभी मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं की अपनी-अपनी स्वतंत्र सत्ता है। इसलिए किसी भी भाषा के साहित्य का दूसरी भाषा के साहित्य से तुलना नहीं करनी चाहिए।

विदर्भ प्रांत से पधारे साहित्यकार विवेक कोठेकर ने बताया कि प्रचार-प्रसार में साहित्य विधा की भूमिका अहम है।

समापन सत्र में भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय मंत्री परम विद्वान और ओजस्वी वक्ता मुकुल कानीटकर ने अपने वक्तव्य में बताया कि आज के युवाओं को जो मार्ग स्वामी विवेकानंद ने प्रशस्त किया है वह प्रशंसनीय है। हमें अपने साहित्य के मंतव्य को सदा स्मरण रखना चाहिए।

चिंतन बैठक में अनेक महानुभाव, साहित्यकार, प्रचारक, पदाधिकारी उपस्थित थे। उनमें उत्तर क्षेत्र प्रमुख बवलानी जी, प्रसिद्ध कवि कमलेश मौर्य, कला कुंज भारती पत्रिका के संपादक पद्मकांत शर्मा प्रभात, कोंकणी भाषा से संबद्ध डॉ० भूषण भावे, डॉक्टर नैनाताई कासखेडीकर आदि। सायंकाल देश के प्रमुख कवियों की कविताओं की सारगर्भित प्रस्तुति रही, जिन्हें सभी श्रोताओं ने बहुत सराहा। आगरा से अखिल भारतीय संरक्षक श्री बांकेलाल जी, श्री नंदकिशोर जी एवं प्रांतीय साहित्य संयोजक डॉ. केशव शर्मा, ब्रज प्रांत, आगरा ने सहभागिता की।

Dr. Bhanu Pratap Singh