09 मार्च 2025 को अनहद कृति ई पत्रिका के सौजन्य से मियामी फ्लोरिडा, अमेरिका में ‘विश्व-शांति एवं सहकार के सरोकार: साहित्यिक संध्या’ गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें अंबाला, हरियाणा – भारत से अपनी बेटी विभा चसवाल के यहाँ मियामी, अमेरिका में मिलने आए ‘अनहद कृति ई-पत्रिका’ के संपादक-द्वय, श्री पुष्पराज चसवाल एवं डॉ प्रेमलता चसवाल ‘प्रेमपुष्प’ के साथ, अमेरिका के मियामी में रहने वाले प्रवासी भारतीयों ने भागीदारी की। विश्व-शांति के आवाहन की इस गोष्ठी में मियामी के हिंदीप्रेमी सुधिजनों की भागीदारी, विश्व-शांति एवं सद्भावना के प्रति समर्पित भाव लिए दिखाई पड़ी। उल्लेखनीय है, कि इसी उद्देश्य व नाम से, मियामी में अनहद कृति की पहली काव्य-संध्या, 15 मार्च 2022 को आयोजित की गई थी, जिसमें अनहद कृति से जुड़ी वर्जीनिया प्रांत की ग़ज़लकार विनीता तिवारी ने स्मरणीय सहभागिता अंकित की थी। जबकि उस संगोष्ठी में बच्चों समेत ग्यारह हिन्दी प्रेमियों की सहभागिता रही थी, अनहद कृति की, मियामी में इस पाँचवी हिन्दी-बैठक में, लगभग पैंतीस हिन्दी प्रेमियों का जमावड़ा रहा। अपने साथ जुड़ रहे मियामी में बसे हिन्दी-प्रेमियों के साथ, अनहद कृति ई-पत्रिका ने, प्रकाशन-वर्ष तेरह में पदार्पण के इस अवसर को, महिला-दिवस-विशेष सप्ताहांत पर, 09 मार्च को, ‘मैथिसन हैमक्स पार्क’ में घने पेड़ों की छाँव तले हिन्दी की काव्य-संध्या, ‘विश्व-शांति और सहकार के सरोकार’ आयोजित कर के मनाया।
गोष्ठी का आगाज़ बुद्धिविधात्री मां शारदा के निमित्त प्रार्थना द्वारा किया गया जिसमें बाल-प्रतिभागियों त्विशा-तन्वी-विग्नेश ने सरस्वती वंदना और गणेश स्तुति के श्लोक गाए। मंच-संचालन विभा चसवाल ने किया, अनहद कृति ई-पत्रिका के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए स्पष्ट किया कि आज की यह गोष्ठी एक परिचर्चा की तरह होगी। विभा ने स्पष्ट किया कि अनहद कृति ई-पत्रिका 23 मार्च 2013 शहीदी दिवस पर लोकार्पित अपने पहले अंक से ही, खुले मन से उभरते, प्रतिष्ठित एवं भूले-बिसरे रचनाकारों की दुर्लभ रचनाओं को विश्व पटल पर लाने का संकल्प लिए, साहित्य के माध्यम से कई सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई पत्रिका है। इन उद्देश्यों के लिए अपने छोटे-बड़े प्रयासों में निरंतर संलग्न रहती है।
दोपहर के दो बजे से शाम के सात बजे तक चली इस हिंदी की गोष्ठी का कार्यक्रम अनहद कृति की रचनाओं से शुरू हुआ, जिसमें इस बार सबसे पहले संपादक पुष्पराज चसवाल ने अपनी कविता ‘मानव हो तुम/मानव हम हैं/मानवता की बात करें’ और ‘आओ हम अंतर्मन के द्वार खोलें/जड़ीभूत संस्कारों को बोलें/बहने दो/ नई हवा बहने दो’ के साथ श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर, बंधुत्व और समीचीन बदलाव का संदेश साँझा किया। इसके बाद पुष्पराज चसवाल की पुरस्कृत अनुवादित पुस्तक ‘महात्मा, मार्टिन और मंडेला’ के बारे में बताते हुए गांधी जी के ‘भारत छोड़ो’ भाषण के भाग ‘असली आज़ादी/real freedom’ को पुस्तक से शब्दशः पढ़ के पुष्पराज चसवाल और विभा ने, महात्मा गांधी द्वारा दिये गये ‘सभी के लिए पूर्ण आज़ादी’ के उत्कट संदेश को साँझा किया। अनहद कृति के कार्यक्रमों में चसवाल-परिवार की पहचान उनके साथ जुड़ रहे नए हिन्दी-प्रेमियों से होती ही है।
इस कड़ी में इस बार विजया त्रिपाठी, ललिता-एवं-दामोदर अग्रवाल, हेमावती शर्मा, पुनीता-एवं-चंद्रप्रकाश शर्मा, जानकी शर्मा, मेघा गुप्ता, अनीता गांधी, अरुणा-एवं-रमेश शर्मा, अमरजीत साहनी और लेखिका स्वाति बग्गा के नाम जुड़े। नये जुड़े साथियों ने अनहद कृति के रचनाकारों की कुछ रचनाएँ भी प्रस्तुत की – विजया त्रिपाठी ने अंक 43 से, गीतकार विजय कुमार सिंह के गीत ‘चल तिमिर में दीप धर दें’ प्रस्तुत किया और अनहद कृति परिवार के राजेश मुरली ने अंक 45 से महेश चंद्र द्विवेदी की कविता ‘ईश्वर! तू मानव का आभार कर/मानव तेरा स्रजक है/अपने स्रजक की अज्ञानता का/ तू न स्वहित में व्यापार कर’ का पाठ किया।
कर्नाटक-मूल के राजेश मुरली की प्रभावी प्रस्तुति भाषा-प्रदेश की सीमाओं से आगे, कविता-प्रेम में डूबी प्रतीत हुई, उनकी इस पहली बार हिंदी में प्रस्तुति की खूब सराहना हुई। इसके बाद संपादिका डॉ प्रेमलता ‘प्रेमपुष्प’ ने अपने गीत ‘मन में गीतों की लड़िया हैं इस मन को खोल/वाणी ही तेरी ताक़त है, रे/ कुछ तो बोल’ की सुंदर लयबद्ध प्रस्तुति की और सभी को साथ गाने के लिए उत्साहित किया, उन्मुक्त अभिव्यक्ति की ताक़त को समर्पित गीत के बोलों की सामूहिक आवाज़ जब प्राकृतिक वातावरण में गुंजायमान हुई तो जैसे विश्व-शांति के उद्देश्य हर दिशा में अग्रसर दिखे। इस गीत के बाद डॉ प्रेमलता ने सभी के अंदर के कवि को जगाती हुई अपनी कविता ‘मेरी बात सुनो’ का सुंदर पाठ किया। विभा चसवाल ने अपनी कविता ‘रेफ़्यूजी’ का पाठ किया, और देश-जाति-नस्ल-औक़ात-धर्म-प्रांत-भाषा के अलग-अलग खेमों में बंटे मानवीय समुदाय को, इतिहास के काले-अध्यायों और तत्कालीन युद्धों के उदाहरण दे, इन लकीरों को मिटाने की संवेदनशील गुहार लगाई।
अनहद कृति के साथ जुड़े कवि राजेंद्र खरे की कविता ‘रुस और यूक्रेन के लोग’ के बारे में सबको बताते हुए अनहद कृति ई-पत्रिका से काव्य-पाठन का समापन हुआ। हिन्दी गोष्ठी को नया मोड़ देते हुए विभा चसवाल ने भरतनाट्यम गुरु हेमावती शर्मा को निमंत्रित कर उनके तीन दशक से लंबे नृत्य-कला सेवा, समर्पण एवं दीक्षा के बारे में बताया। डॉ प्रेमलता की कविता ‘सत्यम् शिवम् सुंदरम्’ के एक बंद को गुरु हेमावती शर्मा ने भरतनाट्यम नृत्य में भाव-भंगिमाओं के साथ, ‘ऐ महाकाल! तू जाग आज/समाधि त्याग कर देख ज़रा/धरती पर पड़ी बड़ी दरारें पाट ज़रा!’ इस ओजमायी कविता की ऊर्जावान नाट्य-प्रस्तुति की।
इसके बार उनके भरतनाट्यम स्कूल ‘नृत्या अकादमी’ के बच्चों त्विशा-तन्वी-रिया-नायला-आरना-माया ने चसवाल-परिवार के अग्रज, अनहद कृति की प्रेरणा, बलराम चसवाल कृत ‘सरस्वती वंदना’ की नृत्य-प्रस्तुति कर सबका मन मोह लिया। सरस्वती-वंदना के इस नृत्य की प्रस्तुति गुरु हेमावती शर्मा की दीक्षा में त्विशा-एवं-तन्वी ने साहित्याश्रय-2023 में भारत में की थी।
इसके बाद खुले मंच की प्रस्तुतियों में पुनीता शर्मा ने अपनी सुरीली आवाज़ में दो ग़ज़लें प्रस्तुत की, दामोदर अग्रवाल ने बताया कि आज इस समरोह के लिये पाँच दशकों के बाद उन्होंने हिन्दी में कविता लिखी है, और अपनी कविता में महिला-शक्ति को ‘मानवता की ध्वजा’ संज्ञा से अभिभूत किया! अनहद कृति परिवार ने उनके इस स्नेहिल प्रयास की अनुशंसा की। ऋषिका दासवानी ने उनकी पसंदीदा, अनजान कवि की ‘छोटी-बड़ी-ख़ुशी’ नामक कविता पढ़ी। लेखिका स्वाति बग्गा ने स्वरचित सनातन-मूल्यों को समर्पित कविता का पाठ किया। पम्मी साहनी, अरुणा और कात्यायनी भटनागर ने भी भावप्रवण प्रस्तुतियाँ की।
अनहद कृति के स्तंभ ‘मेरी राय में’ जो हमारे सजग बच्चों की ‘सोच’ का पन्ना है, वहाँ से तन्वी-त्विशा-विग्नेश और आन्या ने अपनी राय की प्रस्तुति की – जिनमें व्यावहारिकता, करुणा, सुकर्म, विश्व-शांति के संदेश भर-भर के समाहित थे।
संपादक-द्व्य चसवाल-दंपति ने गुरु हेमावती शर्मा को साहित्याश्रय-2023 के गोंड-आदिवासी-कला के स्मृति-चिन्ह से सम्मानित किया। दोपहर से शाम तक, औसतन पाँच घंटे चली इस सार्थक काव्य-संध्या में सूर्य की सुनहली किरणों में डा.प्रेमलता चसवाल ने सभी आगंतुक काव्य-रसिक हिंदी प्रेमियों का धन्यवाद किया, जिन्होंने यहाँ सुदूर देश में अपनी भाषा एवं संस्कृति के प्रति समर्पित भाव से एकत्रित होकर काव्य-गोष्ठी को सफल बनाया। शायद यह काव्य रसास्वादन और भी चलता यदि पार्क के बंद होने की समय-सीमा न होती।
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