हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति और अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए निर्जल उपवास करती हैं। शाम को तारों का दर्शन करने के बाद उन्हें अर्घ्य देकर व्रत पारण करती हैं। हिंदू धर्म में अहोई अष्टमी का विशेष महत्व है। यह कहते हैं कि अहोई अष्टमी का व्रत कठिन व्रतों में से एक है। मान्यता है कि अहोई माता की विधि-विधान से पूजन करने से संतान को लंबी आयु प्राप्त होती है। इसके साथ ही संतान की कामना करने वाले दंपति के घर में खुशखबरी आती है
अहोई अष्टमी तिथि गुरुवार, 28 अक्टूबर 2021 दोपहर 12 बजकर 51 मिनट से प्रारंभ होकर शुक्रवार, 29 अक्टूबर सुबह 02 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। अहोई अष्टमी व्रत (Ahoi Ashtami Vrat) के दिन गुरु पुष्य योग (Guru Pushya Yog) होने के कारण अहोई अष्टमी व्रत का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस बार अहोई अष्टमी पर यही योग बना रहा है, तो माताएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए ये व्रत अवश्य रखें।
अहोई अष्टमी पूजा सामग्री
अहोई माता मूर्ति, माला, दीपक, करवा, अक्षत, पानी का कलश, पूजा रोली, दूब, कलावा, श्रृंगार का सामान, श्रीफल, सात्विक भोजन, बयाना, चावल की कोटरी, सिंघाड़े, मूली, फल, खीर, दूध व भात, वस्त्र, चौदह पूरी और आठ पुए आदि।
अहोई अष्टमी शुभ मुहूर्त (Ahoi Ashtami Shubh Muhurat)
अहोई अष्टमी का व्रत 28 अक्टूबर 2021 को बृहस्पतिवार के दिन रखा जाएगा।
पूजा का शुभ मुहूर्त- 05:39 PM से 06:56 PM
अवधि- 01 घण्टा 17 मिनट
गोवर्धन राधा कुण्ड स्नान गुरुवार, अक्टूबर 28, 2021 को
तारों को देखने के लिए सांझ का समय- 06:03 PM
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय-11:29 PM
ध्यान रखें
1. अहोई व्रत रखने वाली महिलाएं संतान की लंबी उम्र और सुखदायी जीवन की कामना करें
2. व्रत से पहले की रात सादा भोजन करें। मांस, लहसुन, प्यार और मदिरा का सेवन न करें
3. अहोई अष्टमी के दिन निर्धन व्यक्ति को दान दें, इससे फल की प्राप्ति होती है
4. अहोई अष्टमी के लिए नए करवे का प्रयोग करें
यदि आपने अहोई अष्टमी का व्रत रखा है तो आपको दिन के समय भूलकर भी सोना नहीं चाहिए, मान्यता है कि इससे व्रत का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है.
अहोई अष्टमी व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार दिवाली के मौके पर घर को लीपने के लिए एक साहुकार की सात बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो उनकी ननद भी उनके साथ चली आई। साहूकार की बेटी जिस जगह मिट्टी खोद रही थी, उसी जगह स्याहु अपने बच्चों के साथ रहती थी। मिट्टी खोदते वक्त लड़की की खुरपी से स्याहू का एक बच्चा मर गया। इसलिए जब भी साहूकार की बेटी को बच्चे होते थे, वो सात दिन के भीतर मर जाते थे। एक-एक कर सात बच्चों की मौत के बाद लड़की ने जब पंडित को बुलाया और इसका कारण पूछा तो उसे पता चला कि अनजाने में उससे जो पाप हुआ, उसका ये नतीजा है। पंडित ने लड़की से अहोई माता की पूजा करने को कहा, इसके बाद कार्तिक कृष्ण की अष्टमी तिथि के दिन उसने माता का व्रत रखा और पूजा की। बाद में माता अहोई ने सभी मृत संतानों को जीवित कर दिया। इस तरह से संतान की लंबी आयु और प्राप्ति के लिए इस व्रत को किया जाने लगा।
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