आगरा। गुरुद्वारा श्री दमदमा साहिब में रविवार को मीरी पीरी दिवस को समर्पित विशाल कीर्तन समागम का आयोजन किया गया। जिसमें अनेक रागी जत्थों, कथा वाचकों और वीर रस में कविताएं गाने वाले रागी जत्थों ने हिस्सा लिया।
गुरुद्वारा गुरु का ताल के मौजूदा मुखी संत बाबा प्रीतम सिंह ने बताया कि सिख धर्म के छठवें गुरु, गुरु हरगोबिंद साहिब सन 1612 ई0 मार्च के प्रथम सप्ताह में आगरा आए थे और चार दिन तक यहां प्रवास किया था ।इसी स्थान पर गुरुद्वारा श्री दमदमा साहिब सुशोभित है। उनके साथ तत्कालीन हिंदुस्तान का शहंशाह जहांगीर भी यहां रुका था ।प्रतिवर्ष मार्च के प्रथम रविवार को यहां मीरी पीरी दिवस मनाया जाता है और विशाल कीर्तन समागम यहां आयोजित किया जाता है।
कीर्तन समागम में मुख्य रूप से गुरुद्वारा बंगला साहिब नई दिल्ली के हजूरी रागी भाई प्रेम सिंह जी बंधु ने गुरु जस का गायन किया ।इसके साथ ही पंजाब के सुलतानपुर लोधी से आए ढाढी जत्थे भाई मेजर सिंह जी खालसा ने गुरु हरगोबिंद साहिब के आगरा आने, ग्वालियर में उनकी गिरफ्तारी और फिर बाद में रिहाई से जुड़े इतिहास को बहुत ही ओजस्वी स्वरों में सुना कर संगत को जोश से भर दिया।
इसके अलावा गुरुद्वारा गुरु का ताल के हजूरी रागी भाई हरजीत सिंह जी ने कीर्तन किया और कथा वाचक ज्ञानी केवल सिंह जी ने गुरु हरगोबिंद साहिब के आगरा आगमन की कथा को विस्तार से संगत के सामने रखा। कीर्तन समागम की समाप्ति आनंद साहिब के पाठ के साथ हुई ।जिसके बाद ग्रंथी ज्ञानी हरबंस सिंह जी ने अरदास की। कीर्तन समागम के अंत में गुरु का अटूट लंगर वरताया गया।
गुरुद्वारा गुरु का ताल के मीडिया प्रभारी जसबीर सिंह ने बताया कि आगरा प्रवास के बाद आगे जाते हुए ग्वालियर में पहुंचने पर गुरु हर गोविंद साहिब को मुगलिया हुकूमत ने गिरफ्तार कर लिया था और ग्वालियर के किले में पहले से बंद 52 राजाओं के साथ कैद किया था।
कीर्तन समागम की सभी व्यवस्थाएं गुरुद्वारा श्री दमदमा साहिब के महंत जत्थेदार महेंद्र सिंह और गुरुद्वारा गुरु का ताल के सेवक जत्थे ने संयुक्त रूप से संभाली । इस दौरान गुरुद्वारा गुरु का ताल के जत्थेदार राजेंद्र सिंह जी ,बाबा अमरीक सिंह ,महंत हरपाल सिंह मुख्य रूप से मौजूद रहे।
शस्त्र और शास्त्र का प्रतीक है मीरी पीरी
सिख धर्म में पांच गुरुओं के बाद मीरी पीरी की परंपरा शुरू हुई। गुरु हरगोबिंद साहिब ने दो कृपाने धारण की । जिसमें एक मीरी और एक पीरी की थी। मीरी का अर्थ राजसी ताकत और पीरी का अर्थ रूहानी शक्ति को धारण करना था। जिस तरह से मुगलिया हुकूमत का लगातार अत्याचार हो रहा था, उसको देखते हुए धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाना और सत्ता व ताकत भी अपने पास रखना आवश्यक माना गया। जिसके चलते एक कृपाण ताकत और दूसरी धर्म के प्रतीक के रूप में धारण की गई।
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