डॉ. भानु प्रताप सिंह
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मैं उन भाग्यशाली पत्रकारों में से एक हूँ, जिसने अयोध्या में छह दिसम्बर, 1992 का घटनाक्रम देखा है। अब 22 जनवरी, 2024 का घटनाक्रम भी जीवंत देखूंगा। 6 दिसम्बर, 1992 को भारत के भाल पर 495 वर्ष पूर्व आक्रांता बाबर के नाम पर बनाया गया कलंक मिटा दिया गया। हिन्दू समाज ने शक्ति प्रदर्शन किया तो सरकार भी असहाय हो गई। अब 22 जनवरी, 2024 को श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर में रामलाल की प्राण प्रतिष्ठा होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस भव्य समारोह के मुख्य अतिथि हैं।
6 दिसम्बर, 1992 को कारसेवा के दौरान बाबरी मस्जिद नहीं गिराई गई बल्कि राम मंदिर निर्माण की आधारशिला की तैयारी की गई। इसी आधारशिला पर भव्य राम मंदिर बन रहा है, ऐसा राम मंदिर जो 1000 वर्षों तक भूकंप से भी सुरक्षित रहेगा। यह ऐसा मंदिर है, जिसमें सभी हिंदुवादियों ने आर्थिक सहयोग दिया है। मंदिर निर्माण में सरकार का पैसा नहीं लगा है। हां, सरकारी मशीनरी ने बाधाएं अवश्य दूर की हैं, जो उसका दायित्व भी है।
आपको बता दूँ कि मैं 6 दिसम्बर, 1992 को अमर उजाला आगरा की ओर से रिपोर्टिंग करने अयोध्या गया था। तब और अब की तुलना करूँ तो सबकुछ बदल गया है। 32 वर्षों में इतना कुछ बदला है जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती है। कह सकता हूँ कि हिंदुओं में एकता का प्रस्फुरण हुआ है। इसका प्रमाण है कि राजस्थान विधानसभा का चुनाव परिणाम। राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने ऐसी लोकलुभावनी योजनाएं चला रखी थीं कि जिनके आधार पर कहा जा रहा था कि सत्ता में कांग्रेस ही लौटेगी। राजस्थान में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में हिंदुओं को उपेक्षित कर दिया गया था। परिणाम यह रहा है कि भारतीय जनता पार्टी सत्ता में लौट आई। यह राम मंदिर का ही प्रभाव है।
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दिसम्बर 1992 में अयोध्या में कलंक मिटते ही देशभर में दंगे हो गए थे। बड़ी संख्या में जनहानि हुई। 2024 में राम मंदिर का उद्घाटन होने जा रहा है तो चहुंओर शांति है। बाबरी मस्जिद गिरी तो दंगे हो गए और राम मंदिर बन रहा है तो शांति है। इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि बदलाव कितना सकारात्मक हो रहा है।
दिसम्बर, 1992 में चारों ओर साम्प्रदायिकता की आग लगी हुई थी। इसमें पूरा देश झुलस रहा था। हिंदू और मुसलमानों के बीच गहरी खाई थी। आज वातावरण बदला हुआ है। मुस्लिम पक्ष की ओर से राम मंदिर का कोई विरोध नहीं हो रहा है। हां, कुछ कट्टर किस्म के लोग एडवाइजरी अवश्य जारी कर रहे हैं।
दिसम्बर 1992 में सभी भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर सभी राजनीतिक दल मंदिर के विरोध में बोला करते थे। 2024 में एक-दो कट्टर दलों को छोड़ दें तो कोई विरोध करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है।
1990 की कारसेवा में उत्तर प्रदेश सरकार में रहते हुए कारसेवकों पर गोली चलवाई थी। उसी दल के नेताओं को मलाल हो रहा है कि राम मंदिर के उद्घाटन में नहीं बुलाया जा रहा है। अब सर्वधर्म समभाव की बात कही जा रही है। जिन राज्यों में गैर भाजपा सरकार है, उन राज्यों में भी राम मंदिर का विरोध प्रायः नहीं किया जा रहा है। हां, कुछ लोग नेतागीरी के चक्कर में बयानबाजी अवश्य कर रहे हैं।
दिसम्बर 1992 में तोड़फोड़ की बात होती थी और आज निर्माण की बात हो रही है। दिसम्बर 1992 में केंद्रीय सत्ता मंदिर के विरोध में थी और प्राण प्रतिष्ठा समारोह की मुख्य अतिथि है।
दिसम्बर 1992 में दो समुदायों में शत्रुता का भाव था। 32 साल बाद यह भाव तिरोहित हो चुका है। अब ऐसी नई पीढ़ी आ गई है, जिसे मंदिर आंदोलन के बारे में कोई जानकारी नहीं है। वह भी मंदिर के साथ है। बॉलीवुड हो या टॉलीवुड, सब राम-राम कर रहे हैं। नए-नए भजन बन रहे हैं। तब रामलला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे, नारा लोकप्रिय था और अब ऐसा कोई भी नारा नहीं है। यह नारा मृत हो गया है।
छह दिसम्बर, 1992 का घटनाक्रम कवर करने के लिए देश-विदेश का मीडिया आया था और 22 जनवरी, 2024 को मीडिया के साथ सौ से अधिक देशों के प्रतिनिधि भी पहुंच रहे हैं।
राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले कई साधु संत गोलोक धाम के निवासी हो चुके हैं। कुछ संत परिदृश्य से बाहर हो गए हैं। दिसम्बर 1992 को अयोध्या में कारसेवा की प्रतिदिन योजना बनाने वाले चंपत राय इस समय श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव हैं। मुझे याद आ रहे हैं अशोक सिंघल, जो राम मंदिर आंदोलन की मुख्य धुरी हुआ करते थे। बजरंग दल के संयोजक विनय कटियार पता नहीं कहां हैं।
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रामलाल की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में कांग्रेस ने किनारा कर लिया है। इस पर मुझे कोई आश्चर्य नहीं है। कांग्रेस ने राम मंदिर के प्रति सदैव नकारात्मक रवैया अपनाया है। कांग्रेस शासन में तो राम का अस्तित्व होने से ही इनकार कर दिया गया था। ऐसे में कांग्रेस के कर्ताधर्ता रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होंगे, यह सोचना भी उचित नहीं है।
चारों शंकराचार्यों की भूमिका पर भी मुझे कोई आश्चर्य नहीं है। अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि पर अवैधपूर्वक बनाई गई बाबरी मस्जिद को हटाने में शंकाराचार्यों की कोई भूमिका नहीं रही है। ऐसे में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। सोशल मीडिया पर आजकल सवाल पूछा जा रहा है कि हिंदू धर्म के उत्थान में शंकराचार्यों का क्या योगदान है। इस जिज्ञासा का समाधान किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय में शंकराचार्यों की ओर से पैरवी की जानी चाहिए। इसके विपरीत विख्यात संत रामभद्राचार्य ने शास्त्रीय पक्ष रखा और राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त हुआ।
रामलला का प्राण प्रतिष्ठा समारोह तय करेगा कि कौन सा राजनीतिक दल हिंदुओं के साथ है और कौन नहीं। हिंदू किसी भी संप्रदाय, जाति, वर्ण का हो, राम को सब मानते हैं। सिर्फ वोट बैंक की खातिर कुछ नेता इनकार कर सकते हैं। उस वोट बैंक की खातिर जो आज तक किसी पार्टी का सगा नहीं हुआ है। यह वोट बैंक अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग दलों का समर्थन करता है। उत्तर प्रदेश की बात करें तो कांग्रेस, जनता दल, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और अब फिर से समाजवादी पार्टी के साथ है। इस वोट बैंक का उद्देश्य हिंदुओं की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी को सत्ताच्युत करना है।
मुझे यह कहने में भी कोई झिझक नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी इस भ्रम में न रहे कि राम मंदिर पर उसका पेटेंट है। अच्छी बात यह है कि पहले दिन से लेकर आज तक भाजपा ने अपने एजेंडा में राम मंदिर को रखा है और आज तक कायम है। इसी कारण भारतीय जनता का भारतीय जनता पार्टी के प्रति सकारात्मक रुख है।
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