आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत। अपनी हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए आजीवन प्रयासरत रहे स्वतंत्रा संग्राम सेनानी और भारत रत्न राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन की जयंती पर आगरा में आज अनूठा कार्यक्रम होने जा रहा है। कार्यक्रम का नाम है वंदे हिन्दी समागम। दिनांकः 1 अगस्त, 2022 यानी आज। स्थान है- संस्कृति भवन, भाग फरजाना, आगरा। समय है- अपराह्न 2.30 बजे। क्या होगा- देश की जानी-मानी हस्तियां हिन्दी के वर्तमान परिदृश्य पर चिन्तन करेंगी। पिछले 10 दिन से आयोजन की तैयारियां चल रही हैं। आजादी का अमृत महोत्सव के तहत यह सुंदर आयोजन हो रहा है।
उद्घाटन सत्र
इनक्रेडिबल इंडिया फाउंडेशन के अजय शर्मा ने बताया कि कार्यक्रम की अध्यक्षता जाने-माने गीतकार सोम ठाकुर करेंगे। विशिष्ट अतिथि के रूप में भारतीय वायु सेना महिला कल्याण एसोसिएशन की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती आशा भदौरिया और डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. अजय तनेजा विशिष्ट अतिथि हैं। हिन्दी में सर्वप्रथम एमडी करने वाले डॉ. मुनीश्वर गुप्ता भी उद्घाटन समारोह में रहेंगे। आयोजन समिति के समन्वयक बृजेश शर्मा ने बताया कि कार्यक्रम तीन सत्रों में होगा। डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय पुरातन छात्र परिषद आयोजक हैं। इनक्रेडिबल इंडिया फाउंडेशन, आगरा डवलपमेंट फाउंडेशन, सीसीएलए, सक्षम डावर मेमोरियल ट्रस्ट सहयोग कर रहे हैं। डिजिटल मीडिया पार्टनर है- बिजनेस वर्ल्ड हिन्दी।
प्रथम सत्र
राष्ट्र के विकास में मातृभाषा की भूमिका विषय पर वरिष्ठ टीवी पत्रकार दीपक चौरसिया, इनक्रेडिबल इंडिया फाउंडेशन के चेयरमैन पूरन डावर, डॉ. एमपीएस ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरपर्सन स्क्वाड्रन लीडर एके सिंह, बिडनेस वर्ल्ड ग्रुप के चेयरमैन अनुराग बत्रा, राज्यसभा टीवी के संस्थापक संपादक राजेश बादल भाग लेंगे। संचालन करेंगी वरिष्ठ टीवी पत्रकार गरिमा सिंह।
द्वितीय सत्र
द्वितीय सत्र का विषय है- कल की हिन्दी और आज की हिन्दी का भविष्य। इस सत्र को आजतक के कार्यकारी संपादक सईद अंसारी, रोमसंस ग्रुप के एमडी किशोर खन्ना, बिजनेस वर्ल्ड हिन्दी के संपादक अभिषेक मेहरोत्रा, न्यूज-18 इंडिया के एसोसिएट एडिटर यतेन्द्र शर्मा, एसजीआई के वाइस चेयरमैन वाईके गुप्ता संबोधित करेंगे। संचालन करेंगी वरिष्ठ टीवी पत्रकार प्रमिला दीक्षित।
तृतीय सत्र
तृतीय सत्र का विषय है- हिन्दी कैसे बने जन-जन की भाषा। इस सत्र को गांधी कथा फाउंडेशन ब्रिटेन के अध्यक्ष अनुरंजन झा, वरिष्ठ टीवी पत्रकार शैलेश रंजन, डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के संकाय अध्यक्ष (डीन) प्रो. लवकुश मिश्रा, प्रिल्यूड पब्लिक स्कूल के चेयरमैन डॉ. सुशील गुप्ता, राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि पवन आगरी संबोधित करेंगे। संचालन करेंगे इंडिया टीवी के वरिष्ठ संपादक दिनेश कांडपाल।मैन डॉ. सुकूल के चेयरमैन डॉ. ,दकलजनेस वर्ल्ड हिन्दी सहयोग कर रहे हैं
कार्यक्रम में भारतीय सशस्त्र सेना को भी जोड़ा
डॉ. एमपीएस ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरपर्सन स्क्वाड्रन लीडर एके सिंह ने बताया कि कार्यक्रम का उद्देश्य समाज में राष्ट्रप्रेम की भावना का विस्तार करना है। राष्ट्रभाषा हिन्दी एक सशक्त माध्यम है जो सम्पूर्ण भारत को एकसूत्र में पिरो सकती है। हिन्दी प्रेमी, साहित्यकार और हिन्दी के प्रसार के लिए अनवरत सेवा देने वाले पत्रकारों का आभार है। सर्वाधिक उल्लेखनीय बात यह है कि कार्यक्रम में भारतीय सशस्त्र सेना को भी जोड़ा गया है। परमविशिष्ट सेवा मेडल, अति विशिष्ठ सेवा मेडल, वायु सेना मेडल प्राप्त भारतीय वायु सेना के पूर्व अध्यक्ष एयरचीफ मार्शल आरकेएस भौदरिया व श्रीमती आशा भदौरिया आगरा आ चुके हैं।
आगरा में चार ‘हिन्दी वीर’
आगरा के चार हिंदी वीरों ने हिंदी के उत्थान के लिए व्यक्तिगत रूप से प्रयास किए, तमाम मुश्किलों के बाद सफलता मिली। इनका विवरण निम्नवत है*
- डॉक्टर मुनीश्वर गुप्ता, एमडी रेडियोलॉजी हिंदी माध्यम से करने वाले प्रथम
- चंद्रशेखर उपाध्याय,एल एल एम हिंदी माध्यम से करने वाले प्रथम
- डॉक्टर भानु प्रताप सिंह, प्रबंधन विषय में हिंदी माध्यम से पीएचडी करने वाले प्रथम
- डॉक्टर जितेंद्र चौहान, कृषि प्रसार में हिंदी माध्यम से पीएचडी करने वाले प्रथम
भारत सरकार की संस्था ‘द सर्वे ऑफ इंडिया’ ने डॉ. मुनीश्वर गुप्ता और डॉक्टर भानु प्रताप सिंह का नाम हिन्दी में कार्य करने के लिए देश में प्रथम स्थान देते हुए अपने यहां सूचीबद्ध किया है। यह सब विश्व रिकॉर्ड है भले ही किसी संस्था में पंजीकृत ना हुए हों। अपने देश में हिंदी में शोध कार्य करने के लिए कितनी समस्याएं आईं यह लंबी कहानी है। डॉ. मुनीश्वर गुप्ता ने सब को हिंदी में कार्य करने के लिए प्रेरणा दी।
राज ऋषि पुरुषोत्तम दास टंडन के बारे में
हिन्दी वीर डॉ. मुनीश्वर गुप्ता ने फेसबुक पर लिखा है- राज ऋषि पुरुषोत्तम दास टंडन कांग्रेस का एक बहुत बड़ा नाम थेI 1 अगस्त 1882 को इलाहाबाद में उनका जन्म हुआ थाl पढ़ाई करते हुए 17 वर्ष की उम्र में ही कांग्रेस के कार्यकर्ता बन गए l वकील बने और अपने प्रखर ज्ञान और व्यक्तित्व के कारण कांग्रेस की अग्रिम पंक्ति के नेताओं में उनका नाम आ गयाl तिलक के संपर्क में आने के कारण भाषा और भारतीयता उनके अंदर प्रमुख बात बन गईl 1919 में हुए जलियांवाला बाग कांड के बाद कांग्रेस ने जो समिति बनाई गांधीजी ने उसमें उन्हें रखा और 1921 के कांग्रेस के आंदोलन में उन्होंने अपनी वकालत छोड़ दी l पंडित नेहरू जी इलाहाबाद से ही थे। देश की आजादी के पश्चात हिन्दी को राष्ट्रभाषा, राजभाषा और अधिकारिक भाषा इन सब बातों में वह निश्चय ही अपनी बात को बहुत आग्रहपूर्वक रखते थे। इन सब कारणों से पंडित नेहरू से उनके मतभेद सामने आने लगे l सरदार पटेल उन्हें बहुत पसंद करते थे। पंडित नेहरू के विरोध के बावजूद 1950 में सरदार पटेल ने उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनवायाl इस बात से पंडित नेहरू बहुत खफा हो गए और उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा तक देने की बात कर दीl बाद में समय के साथ पंडित नेहरू ने उनकी राजभाषा से संबंधित बातों को माना भी और वहीं से हिन्दी के स्वतंत्र भारत में विकास की यात्रा प्रारंभ हुईl स्वतंत्रता आंदोलन और स्वतंत्र भारत में उनके योगदान को सम्मान देने के लिए 1961 में पंडित नेहरू के प्रधानमंत्री रहते हुए उन्हें भारत रत्न का सम्मान मिलाl सही बात यह है यह देश के लोकतंत्र का भी प्रतीक हैl मतभेद हो सकते हैं परंतु उनके योगदान को नजरअंदाज नहीं किया गयाl 1अगस्त को आगरा में राज ऋषि पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्मदिन बहुत भव्य तरीके से मनाया जा रहा है। इस पूरी योजना के करने वाले प्रत्येक हिन्द और हिन्दी प्रेमी को साधुवाद है।
राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन के बारे में यह भी जानें
राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन का हिन्दी के साथ-साथ गोहत्या बन्द न किए जाने, शराब को राजस्व का साधन बनाए रखने तथा “धर्मनिरपेक्षता” की आड़ में पाठ्य पुस्तकों में से धार्मिक-नैतिक प्रेरणा देने वाली सामग्री हटाये जाने जैसे विषयों पर कांग्रेस से निरन्तर विरोध रहा। पौराणिक साहित्य के मर्मज्ञ, महान् गोभक्त संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी महाराज का टंडन जी से निकट का आत्मीय सम्बंध था। टंडन जी के गोलोकवासी होने के बाद प्रभुदत्त जी ने “कल्याण” पत्रिका में पुरुषोत्तम दास टंडन के संस्मरण में लिखा था कि- “वे मुझे अपनी सब बातें हृदय खोलकर बताते थे। कहते थे कि एक बार चित्रकूट के कुछ लोग मालवीय जी के पास आये और कहने लगे- “महाराज! हमारे यहाँ गाय का वध होता है।” मालवीय जी ने मुझे वहाँ भेजा। मैंने वहाँ जाकर पूछा- “गऊ को क्यों मारते हो?” उन दिनों गोमांस को मुस्लिम भी नहीं खाते थे। चमड़े के लिए गोवध करते थे। मांस को तो वे फेंक भी देते थे। उसी दिन मैंने चमड़े के जूते न पहनने की प्रतिज्ञा की।
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