भोपाल। भील जनजाति की कला ‘पिथौरा पेंटिंग’ के उस्ताद और अंतर्राष्ट्रीय कलाकार पेमा फत्या का गत वर्ष निधन हो गया। मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के रहने वाले पेमा फत्या को देश के बड़े कलाकारों में गिना जाता था। कोरोना वायरस की खबरों के बीच उनके इस दुनिया से चले जाने की खबर दबी रह गई। उन्होंने पिथौरा बनाने का कार्य वंशानुगत परम्परा से सीखा।
पिथौरा पेंटिंग जिसे पिठोरा भी कहा जाता है, भील जनजाति की एक विशिष्ट कला है। इसमें ध्वनि सुनना एवं उसे आकृति के रूप में उकेरने की अद्भुत कला का प्रदर्शन किया जाता है। यह कला भारत में एक मात्र ऐसी कला है, जिसमें विशिष्ट ध्वनि सुनना, उसे समझना और लेखन से चित्र रूप प्रदान करना प्रमुख है।
भीलों का विश्व प्रसिद्ध चित्र ‘पिथौरा’ है और श्री पेमा फत्या थे उसके श्रेष्ठ कलाकार। भील मृत्युपरांत जीवन में विश्वास करते हैं। कोरकू जनजाति राजपूतों को अपना पूर्वज मानते हैं तथा शिव एवं चंद्रमा की पूजा करते हैं।
भील आदिवासियों के समाज में पिठोरा ( पिथौरा) सजावट के चित्र नहीं हैं, यह विशिष्ट धार्मिक अनुष्ठान है, जिसमें चित्रकार अपने मन से कोई रूपांकन नहीं करता। यह उर्वरता और समृद्धि के देवों के आह्वान और उनको समर्पित छवियां हैं जिनमें सौंदर्य का उतना महत्व नहीं, जितना कि विधान का।
गांव के पुजारी या बड़वा के चित्रांकन देखकर संतुष्ट होने के बाद ही इसे पूरा माना जाता है। जे.स्वामीनाथन ने पेमा के हवाले पिठोरा में शामिल रूपों की पहचान इस तरह की है – बाबा गणेश, काठिया घोड़ा, चंदा बाबा, सूरज बाबा, तारे, सरग (आकाश), जामी माता, ग्राम्य देवता, पिठोरा बाप जी, रानी काजल, हघराजा कुंवर, मेघनी घोड़ी, नाहर, हाथी, पानी वाली, बावड़ी, सांप, बिच्छू, भिश्ती, बंदर और पोपट के साथ ही चिन्नाला, एकटांग्या, सुपारकन्या।
आयताकार रेखाओं के घेरे में बायें हाथ पर सबसे नीचे हुक्का पीते हुए काले रंग की जो छवि बनाते हैं, वही बाबा गणेश हैं, इनकी और गणेश की प्रचलित छवि में कोई समानता नहीं होती, हां, भील आख्यानों में ख़ूब जगह पाने वाला घोड़ा पिठोरा ( पिथौरा) के केंद्र में होता ही है।
पेमा ने अपने पिता से चित्र बनाना सीखा मगर शार्गिद रामलाल छेदला के हुए। भील समाज की परम्परा में पिठोरा चित्रांकन का कौशल विरासत में नहीं मिलता यानी ज़रूरी नहीं कि यह हुनर लिखंदरा के बेटे को ही मिले। जैसे रामलाल लिखंदरा ने उन्हें सिखाया, वैसे ही पेमा ने अपने भतीजे थावर सिंह को सिखाया। पेमा के दोनों बेटे पंकज और दिलीप मजदूरी करते हैं। दो बार फ़ालिज का शिकार होने के बाद भी पेमा ने अपनी इच्छा शक्ति के बूते ख़ुद को इस लायक़ बनाया कि चित्र बनाते रह सकें। चित्रों ने उन्हें ख़ूब शोहरत दिलाई।
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