ब्रजभाषा मुक्तक, छंद और लोक गीतों के वरिष्ठ एवं लोकप्रिय रचनाकार सोम ठाकुर का जन्म 5 मार्च 1934 को आगरा (उत्तर प्रदेश) के राजामंडी क्षेत्र अंतर्गत अहीर पाड़ा मौहल्ले में हुआ था।
‘उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान’ के कार्यकारी अध्यक्ष रहे सोम ठाकुर को 2006 में ‘यशभारती सम्मान’ और वर्ष 2009 में दुष्यंत कुमार अलंकरण प्रदान किया गया।
व्यक्तित्व
सोम ठाकुर बड़े ही सहज, सरल व संवेदनशील व्यक्तित्व के कवि हैं। आगरा के बाज़ार रावतपाड़ा की एक धर्मशाला में कवि सम्मेलन हो रहा था, जिसकी अध्यक्षता डॉ. कुलदीप कर रहे थे। सोम ठाकुर एक ही कविता लिखकर ले गये थे, जिसे उन्होंने अपने मधुर कंठ से पढ़ा और जो काव्य प्रेमियों को बेहद पसंद आई। तब उनसे अन्य कविताएं सुनाने का आग्रह किया। वे बड़े धर्म संकट में पड़ गये, दूसरी कविता हो तो पढ़ें। उन्होंने अपनी सहज और सरल वाणी में स्पष्ट कह दिया- “मेरे पास इस समय एक ही कविता थी। वह मैंने आपको सुना दी, दूसरी कविता के लिए क्षमा करें।” अपने कुशल व्यवहार तथा मधुर कंठ के कारण 21 जून 1955 में आकाशवाणी दिल्ली से भी सोम ठाकुर को कविताएं पढ़ने का अवसर प्राप्त होने लगा। सन 1961 से ब्रजभाषा में सोम ठाकुर ने अपनी वाणी में कविता लिखना प्रारंभ कर दिया था। सोम ठाकुर की एक अत्यधिक प्रसिद्ध रचना है-
सागर चरण पखारे, गंगा शीश चढ़ावे नीर
मेरे भारत की माटी है चन्दन और अबीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ-सौ नमन करूँ
मंगल भवन अमंगलहारी के गुण तुलसी गावे
सूरदास का श्याम रंगा मन अनत कहाँ सुख पावे
जहर का प्याला हँस कर पी गई प्रेम दीवानी मीरा
ज्यों की त्यों रख दीनी चुनरिया, कह गए दास कबीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ- सौ नमन करूँ
फूटे फरे मटर की भुटिया, भुने झरे झर बेरी
मिले कलेऊ में बजरा की रोटी मठा मठेरी
बेटा माँगे गुड की डलिया, बिटिया चना चबेना
भाभी माँगे खट्टी अमिया, भैया रस की खीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ-सौ नमन करूँ
फूटे रंग मौर के बन में, खोले बंद किवड़िया
हरी झील में छप छप तैरें मछरी सी किन्नरिया
लहर लहर में झेलम झूमे, गावे मीठी लोरी
पर्वत के पीछे नित सोहे, चंदा सा कश्मीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ- सौ नमन करूँ
चैत चाँदनी हँसे , पूस में पछुवा तन मन परसे
जेठ तपे धरती गिरजा सी, सावन अमृत बरसे
फागुन मारे रस की भर भर केसरिया पिचकारी
भीजे आंचल , तन मन भीजे, भीजे पचरंग चीर
सौ-सौ नमन करूँ मैं भैया, सौ-सौ नमन करूँ
राष्ट्र देवता
तुझ पर निछावर फूल
केसरिया शीश फूल
ओ देवता! देश के देवता!!
तेरी हथेली उठी,
किरणें उगने लगीं,
ऋतु हो गई चंपई
दिन की साँसें जगीं,
तू ने दिया रात को
गुलाबी सुबह का पता।
ओ देवता! देश के देवता!!
फलने लगा फौलाद
मेहनत की बाँह में,
उठते हुए तूफ़ान
तेरे द्वारे थमें,
संघर्ष की गोद में
सदा से सृजन खेलता।
ओ देवता! देश के देवता!!
काल का वसंती मंत्र
पढ़ती हैं पीढ़ियाँ,
सपने सयाने हुए,
चढ़ते हैं सीढ़ियाँ
संसार बढ़ते हुए
तेरे चरण देखता।
-Legend News
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