सरदार पटेल के जीवन से सीखें दृढ़ता और एकता का पाठ
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आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत। एनएस इंटर कॉलेज, अमरपुरा (आगरा) में हिंदी साहित्य भारती अंतर्राष्ट्रीय ने सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती पर एक भव्य समारोह आयोजित किया। वक्ताओं ने बार-बार कहा कि पटेल का जीवन दृढ़ निश्चय और राष्ट्रप्रेम की मिसाल है। विद्यार्थियों को उनके जीवन से प्रेरणा लेने का आह्वान किया गया।
डॉ देवी सिंह नरवार की प्रेरक सीख
हिंदी साहित्य भारतीय अंतर्राष्ट्रीय उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ देवी सिंह नरवार ने छात्र-छात्राओं को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित किया।
उन्होंने कहा कि सरदार पटेल केवल नेता नहीं थे, वे राष्ट्र की आत्मा थे।
कठिन समय में धैर्य, अनुशासन और साहस ही सफलता की कुंजी है।

डॉ नरवार ने छात्रों से प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करने की सलाह दी।
उन्होंने रामचरितमानस की चौपाइयों का उल्लेख कर यह बताया कि ईश्वर सत्यनिष्ठ कर्मियों के साथ खड़ा रहता है।
छात्रों से संवाद करते हुए उन्होंने जीवन में आत्मसंयम और निष्ठा अपनाने का आग्रह किया।
डॉ भानु प्रताप सिंह ने बताया सरदार पटेल का संघर्ष और योगदान
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार व वेलनेस कोच डॉ भानु प्रताप सिंह ने पटेल के जीवन की घटनाएँ विस्तार से बताईं।
उन्होंने कहा कि पटेल का योगदान स्वतंत्रता संग्राम तक सीमित नहीं रहा।
उन्होंने राष्ट्र निर्माण और एकता के लिए अमर कार्य किए।

डॉ सिंह ने बताया कि 1928 में बारडोली के किसानों पर लगान वृद्धि के विरुद्ध हुए आंदोलन का सफल नेतृत्व सरदार पटेल ने किया।
आंदोलन में अंग्रेजों को झुकना पड़ा। इसके बाद किसानों ने उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि दी।
डॉ सिंह ने हैदराबाद रियासत के प्रसंग से बताया कि निजाम ने भारत में शामिल होने से इनकार किया था।
पटेल ने पहले संवाद किया। जब निजाम नहीं माना, तब सेना भेजी गई।
मात्र पाँच दिनों में निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया।
इसी वजह से आज हैदराबाद भारत का अभिन्न हिस्सा है।
उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय प्रशासनिक सेवा आईएएस और भारतीय पुलिस सेवा आईपीएस ढांचे को संगठित करने में पटेल का योगदान अमूल्य रहा।
IAS और IPS जैसी सेवाओं की नींव उन्हीं के दृष्टिकोण से बनीं।
डॉ सिंह ने याद दिलाया कि 2018 में प्रधानमंत्री द्वारा गुजरात में स्थापित की गई ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ ने पटेल की स्मृति को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित किया है।

विद्यालय प्रबंधक राजकुमार शर्मा का वक्तव्य
कार्यक्रम की अध्यक्षता विद्यालय के प्रबंधक राजकुमार शर्मा ने की।
उन्होंने कहा कि आज़ादी के बाद 562 रियासतों का विलय एक जटिल कार्य था।
यह काम सरदार पटेल के अथाह परिश्रम और राजनीतिक कुशलता का परिणाम था।
राजकुमार शर्मा ने बताया कि पटेल ने लंदन से बैरिस्टर की पढ़ाई की, पर वे शान्ति और सेवा के मार्ग पर अग्रसर रहे।
उन्होंने घोषणा की कि विद्यालय में अब प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को हनुमान चालीसा का पाठ कराया जाएगा।
इससे विद्यार्थियों में अनुशासन और आत्मिक शक्ति का विकास होगा।

श्रद्धांजलि और सांस्कृतिक प्रस्तुति
कार्यक्रम की शुरुआत सरदार पटेल के चित्र पर माल्यार्पण से हुई।
डॉ देवी सिंह नरवार, राजकुमार शर्मा, डॉ भानु प्रताप सिंह और प्रधानाचार्य संदेश शर्मा ने पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।
विद्यालय के विद्यार्थियों ने एकता और देशभक्ति पर कविताएँ, नारे और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ दीं।
कार्यक्रम स्थल देशभक्ति की भावना से गुंजायमान हो उठा।

सरदार वल्लभभाई पटेल का जीवन चरित्र — 12 प्रमुख बिंदु
- जन्म: 31 अक्टूबर 1875, नडियाड (गुजरात)।
- पिता झवेरभाई पटेल कृषक थे; माता लाडबाई धार्मिक स्वभाव की थीं।
- प्रारंभिक शिक्षा करमसद और बड़ौदा में हुई।
- लंदन से बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त की।
- 1917 में महात्मा गांधी के संपर्क में आए और राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ गए।
- खेड़ा और बारडोली किसान आंदोलनों का साहसपूर्ण नेतृत्व किया।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख समान्य नेताओं में रहे।
- 1947 में स्वतंत्र भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बने।
- देश की 562 रियासतों का विलय कर भारत को एक राष्ट्र रूप दिया।
- सशक्त प्रशासन के लिए IAS और IPS जैसी संस्थाओं की नींव डालने में प्रमुख रहे।
- ‘लौहपुरुष’ और ‘भारत के बिस्मार्क’ के रूप में विख्यात हुए।
- निधन: 15 दिसंबर 1950, मुंबई।

संपादकीय: लौहपुरुष की लौ को फिर जलाना होगा
भारत का इतिहास कई विभूतियों से समृद्ध है। पर सरदार वल्लभभाई पटेल का स्थान अलग और गहरा है।
उन्होंने आज़ादी के बाद बिखरे हुए रियासतों को जोड़कर आधुनिक भारत की नींव रखी।
उनके बिना एक संगठित भारत की कल्पना कठिन है।
आज जब समाज कई चुनौतियों और विभाजनों से जूझता है, तब पटेल के आदर्श और दृष्टि और भी प्रासंगिक हो उठते हैं।
एकता, अनुशासन और कर्तव्यपरायणता—ये उनके मूल सिद्धांत थे।
युवा पीढ़ी को इन्हें आत्मसात करना चाहिए।
केवल स्मरण करना ही पर्याप्त नहीं। पटेल के आदर्शों को कर्म से अपनाना होगा।
यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
डॉ भानु प्रताप सिंह, संपादक
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