आगरा में पहली बार 3 अक्टूबर से चतुर्थ “राष्ट्रीय प्राकृत संगोष्ठी “जिसमें होगी प्राचीन ज्ञान की आधुनिक व्याख्या”

RELIGION/ CULTURE

संगोष्ठी का केंद्रीय विषय “स्थानाङ्गसूत्र” है जो जैन आगम साहित्य का है एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ

देश भर के आए प्राकृत भाषा के विद्वान जुटेंगे और तीन दर्जन से अधिक प्रस्तुत करेंगे शोध पत्र

प्राकृत भाषा में ही रचे गए हैं सभी जैनागम
सैद्धांतिक, धार्मिक, नाटक, महाकाव्य एवं कथा ग्रंथ

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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. भारत की प्राचीन भाषा प्राकृत को पुनर्जीवित करने और उसके ज्ञान को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत करने के लिए आगरा में एक तीन दिवसीय चतुर्थ राष्ट्रीय प्राकृत संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है ।इस आयोजन में देश भर के पचास से अधिक प्राकृत भाषा के विद्वान और शोधकर्ता हिस्सा लेंगे।विवेक कुमार जैन की सूचनाएँ इस संगोष्ठी का शुभारंभ तीन अक्टूबर को प्रातः राज्यसभा सांसद नवीन जैन जी द्वारा किया जाएगा ।
श्रुत रत्नाकर ट्रस्ट, अहमदाबाद द्वारा आयोजित यह संगोष्ठी आगामी 3 से 5 अक्टूबर तक महावीर भवन, जैन स्थानक, न्यू राजा की मंडी कॉलोनी आगरा में होगी। इसका मार्गदर्शन जैन मुनि आगम ज्ञान रत्नाकर, बहुश्रुत जय मुनि जी करेंगे।
इस संगोष्ठी का केंद्रीय विषय “स्थानाङ्गसूत्र” है जो जैन आगम साहित्य का एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें ज्ञान, दर्शन, मनोविज्ञान, खगोलशास्त्र और जीवनमूल्यों की गहन विवेचना की गई है। इस आयोजन का उद्देश्य प्राचीन ज्ञान को समकालीन जीवन और समाज के लिए प्रासंगिक बनाना है।

प्राकृत भाषा प्राचीन काल में भारतवर्ष की जनभाषा थी। किन्तु सदियों से प्राकृत भाषा से अपभ्रंश एवं अपभ्रंश से अन्य प्रादेशिक भाषाओं का उद्भव होने के कारण शनैः शनैः प्राकृत भाषा बोलचाल की भाषा नहीं रही। अन्योन्य प्रादेशिक भाषाओं का प्रभाव बढ़ता गया, किन्तु प्राकृत भाषा में विपुल साहित्य का निर्माण हुआ है। सभी जैनागम प्राकृत भाषा में ही रचे गए हैं। सैद्धांतिक, धार्मिक, नाटक, महाकाव्य एवं कथा ग्रंथों की रचना प्राकृत में हुई है। भारतीय संस्कृति का सम्यक् बोध प्राकृत साहित्य के अध्ययन के बिना अधूरा है। प्राकृत भाषा साहित्य का ज्ञान भारतीय संस्कृति एवं भाषा शास्त्रीय बोध के लिए आवश्यक है। विशेषतःग्रामीण संस्कृति का बोध तो प्राकृत ग्रंथों के अध्ययन से ही हो सकता है।संस्कृत नाटकों एवं साहित्य में भी प्राकृत भाषा का महत्तम प्रयोग हुआ है। किन्तु कुछ वर्षों से प्राकृत भाषा का अध्ययन-अध्यापन रूक गया था। उसको पुनर्जीवित करने का प्रयास श्रुत रत्नाकर ट्रस्ट,अहमदाबाद के संस्थापक निदेशक श्रुत रत्नाकर जितेन्द्र बी शाह द्वारा द्वारा विगत 25 वर्षों से निरन्तर किया जा रहा है ।इस कार्य में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से भी पूर्ण सहयोग मिल रहा है ।

उद्घाटन सत्र से समापन तक: तीन दिवसीय ज्ञान यात्रा

संगोष्ठी का उद्घाटन सत्र 3 अक्टूबर को प्रातः आयोजित होगा, जिसमें देशभर से आए विद्वान, संत, शोधकर्ता और प्राकृत प्रेमी भाग लेंगे। कुल 36 वक्ता अपने शोधपत्र प्रस्तुत करेंगे, जिनमें आचार्य नंदिघोषसूरि जी,पी. जयमुनि जी,अभिषेक जैन,अक्षिता संघवी,अमोघ प्रभुदेसाई,धर्म चंद जैन,दिलीप ढींग,दीनानाथ शर्मा,गणेश तिवारी,जितेंद्र बी. शाह,कल्पना शाह,कमल जैन,कुणाल कपासी,एम. चंद्रशेखर,मानसी धारीवाल,मोहन पांडे,मोहित जैन,नीरू जैन,पत्रिका जैन,पवन कुमार जैन,फूलचंद जैन प्रेमी, प्रीति रानी जैन,रजनीश शुक्ला,राका जैन,रेनू जैन,रेशमा देवेंद्र,शोभना शाह,श्वेता जैन,सुभाष कोठारी,सुमत कुमार जैन,सुनेना जैन,सुनीता जैन,सुषमा सिंघवी,तारा डागा,वैशाली शाह,विजय कुमार जैन सहित अनेक प्रतिष्ठित नाम शामिल हैं।

चतुर्थ राष्ट्रीय प्राकृत संगोष्ठी में जिन शोध पत्रों को प्रस्तुत किया जाएगा उनमें
* प्राकृत में हाल के विकास के पचास मार्ग
* समुद्घात पर विचार।
* स्थानाङ्ग सूत्र में ध्यान का वर्गीकरण।
* क्रोध के प्रकार – एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण।
* रोगोत्पत्ति के नौ कारणों का चिकित्सा विज्ञान से तुलनात्मक अध्ययन।
* 6 भावों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण।
* कर्मबंध और कर्मक्षय के कारण।
* पुराण सम्मत सात गोत्र।
* ब्रह्मचर्य – सैद्धांतिक और व्यावहारिक पृष्ठभूमि पर।
* स्थानाङ्ग सूत्र में प्रतिपादित जीवन मूल्य।
* जीव और जगत की व्याख्या: Dualism के परिप्रेक्ष्य में आदि विषय शामिल है ।
ये सभी शोधपत्र ‘स्थानाङ्गसूत्र’ के विभिन्न पहलुओं को गहराई से समझेंगे और उनकी आधुनिक प्रासंगिकता पर प्रकाश डालेंगे।

यह संगोष्ठी न केवल प्राकृत भाषा और जैन दर्शन के विद्वानों के लिए एक मंच है, बल्कि यह आत्मशुद्धि, ज्ञान और साधना का भी एक बेहतरीन अवसर है।
स्थानाङ्गसूत्र की गूढ़ता को समझने और जीवन में उतारने की इस यात्रा में,
समस्त विद्वानों, शोधकर्ताओं और साधकों को बहुत कुछ और नया सीखने का अवसर प्राप्त होगा ।

Dr. Bhanu Pratap Singh