श्वेताम्बर जैन मुनियों की गुरु भक्ति और धर्म आराधना की प्रेरणा से गूंज उठा आगरा का महावीर भवन

RELIGION/ CULTURE

श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में चल रही चातुर्मासिक कल्प आराधना में देश-विदेश से उमड़ा श्रद्धा का सैलाब

आगरा ।आगरा न्यू राजा की मंडी स्थित जैन स्थानक महावीर भवन में इन दिनों आध्यात्मिक ऊर्जा और धर्म भावना की अनुपम गंगा बह रही है। श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में चल रही चातुर्मासिक कल्प आराधना में देश के विभिन्न नगरों के साथ-साथ अमेरिका से भी पधारे सैकड़ों श्रद्धालु गुरु भक्ति और धर्म साधना में लीन होकर आत्मिक शांति का अनुभव कर रहे हैं।

गुरु जय मुनि जी का संदेश: पर्युषण पर्व की तैयारी आत्मा की शुद्धि का प्रथम चरण:

आगम ज्ञान रत्नाकर, बहुश्रुत श्री जय मुनि जी ने अपने प्रवचनों में श्रद्धालुओं को आगामी पर्युषण पर्व की महत्ता समझाते हुए बताया कि 20 अगस्त से 27 अगस्त तक यह पर्व मनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि पर्युषण केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि का अवसर है। इसे मैत्री, प्रेम और क्षमा के भाव से मनाना चाहिए। यदि मन में किसी के प्रति कटुता या द्वेष है, तो उसे पहले ही त्यागकर आत्मा को निर्मल बनाने का संकल्प लेना चाहिए।

गुरुदेव ने पर्युषण की आराधना हेतु अनेक तप क्रियाओं का उल्लेख किया:

• अधिक मौन व्रत एवं रात्रि चौविहार(अन्न जल का त्याग)
• ब्रह्मचर्य का पालन एवं व्यापार से अनुकूलता अनुसार अवकाश
• कठोर वचन न बोलने का संकल्प
• हरी सब्ज़ियों, श्रृंगार, स्नान व इलेक्ट्रिक उपकरणों का त्याग
• आत्मालोचना व धर्म क्रियाओं द्वारा आत्मशुद्धि
उन्होंने कहा कि पूर्व तैयारी से ही पर्युषण पर्व की आराधना सार्थक होगी और आत्मा को तपस्या के माध्यम से शुद्ध किया जा सकेगा।

गुरु दर्शन हेतु देश-विदेश से उमड़े श्रद्धालु: गुरु आदीश मुनि जी का प्रेरक उद्बोधन:

गुरु हनुमंत, हृदय सम्राट श्री आदीश मुनि जी के सांसारिक पक्ष के परिवारीजन भी अनेक नगरों और विदेशों से आकर गुरु दर्शन हेतु उपस्थित हुए। उनकी उपस्थिति ने धर्म सभा को भावविभोर कर दिया।महाराज श्री ने अपने उद्बोधन में कहा “गुरुचरणों की भक्ति और कृपा से ही हम धर्म, शिक्षा और आर्थिक दृष्टि से उन्नति कर सकते हैं। जीवन में तीन चीजों का साथ कभी न छोड़ें ।धर्म, क्षमा और आत्मचिंतन। यदि हम किसी से दुश्मनी छोड़कर क्षमा माँगने का प्रयास करें, तो यही सच्ची धर्म आराधना होगी।”

उन्होंने आह्वान किया कि जीवन दिखावटी न होकर अंतर की कालिमा को धोने वाला होना चाहिए। यही आध्यात्मिक यात्रा की दिशा में पहला कदम है।

विजय मुनि जी का मोक्ष मार्ग पर प्रकाश: आत्मबल और निर्जरा की साधना:

श्री विजय मुनि जी ने अपने प्रवचन में मोक्ष के अनंत आनंद को प्रधानता देते हुए कहा कि भगवान महावीर ने साधक के लिए आत्मबल बढ़ाने की अनेक साधनाएँ बताई हैं। उन्होंने कहा:

• “घाती कर्मों के आवरण के कारण आत्मा शुद्ध नहीं हो पाती। इनकी निर्जरा से ही केवल ज्ञान और दर्शन की प्राप्ति संभव है।”
• “प्राणी मात्र के प्रति आत्मीयता का भाव रखें। क्षमा भाव से नारी के प्रति अन्याय का अंत संभव है।”
• “जीवन परिवर्तनशील है, अतः अनेकांतवाद का सिद्धांत अपनाना आवश्यक है।”
उन्होंने संघ रूप में साधना करने की प्रेरणा दी जिससे साधक को उदासीनता का अनुभव न हो।

धर्म सभा का समापन: जाप, त्याग और तपस्या की प्रेरणा:

धर्म सभा के अंत में गुरुदेव जय मुनि जी ने आज का जाप “श्री कुथुनाथाय नमः” की एक माला करवाकर आत्मशुद्धि की प्रेरणा दी। साथ ही केला, करेला, कलाकंद का त्याग और कड़वा न बोलने की शपथ दिलाई।

तपस्या के क्रम में श्रद्धालुओं की साधना भी उल्लेखनीय रही:

• श्रीमती सुनीता: 21 उपवास
• श्रीमती नीतू: 8 उपवास
• प्रमोद जी: 7 उपवास
• श्रीमती सारिका: 39वाँ आयम्बिल
इन तपस्याओं ने धर्म सभा को तप, त्याग और आत्मचिंतन की ऊँचाइयों तक पहुँचा दिया।

Dr. Bhanu Pratap Singh