आगरा: जब देश के अलग-अलग कोनों से धर्मांतरण के “गुपचुप” मामलों पर पुलिस और प्रशासन की सक्रियता देखते बनती है, तब आगरा में एक अजीबोगरीब मंजर सामने आया है. यहां “योगी यूथ ब्रिगेड” के प्रदेश अध्यक्ष कुंवर अजय तोमर सरेआम मुस्लिम लड़कियों को हिंदू लड़कों से शादी करवाने और ‘घर वापसी’ करवाने का ऐलान कर रहे हैं. सिर्फ ऐलान ही नहीं, बाकायदा वीडियो बनाकर खुलेआम न्योता दिया जा रहा है कि जो मुस्लिम लड़कियां सनातन धर्म में आस्था रखती हैं, या हिंदू लड़कों से दोस्ती करती हैं, वे उनसे संपर्क करें. संगठन शादी का पूरा खर्च उठाने और हर तरह की मदद देने का वादा कर रहा है. लेकिन, हैरत की बात यह है कि इस “खुलेआम अभियान” पर आगरा पुलिस की तरफ से कोई हलचल नहीं दिख रही है. क्या भारत के कानून सिर्फ एक खास पक्ष के लिए हैं, बाकी सबके लिए नहीं?
कुंवर अजय तोमर के बयान किसी छिपी हुई साजिश का हिस्सा नहीं, बल्कि खुले मंच से दिए गए हैं. उन्होंने कहा है कि उनका संगठन उन मुस्लिम लड़कियों को तलाशेगा जो सनातन धर्म में विश्वास रखती हैं और “घर वापसी” करना चाहती हैं. यह भी कहा गया है कि ऐसी लड़कियां उनसे या उनके संगठन से संपर्क करें जिनकी दोस्ती हिंदू लड़कों से है. यानी, एक तरफ “लव जिहाद” के नाम पर हंगामा खड़ा होता है, और दूसरी तरफ, यहां खुलेआम “लव जिहाद” के एक नए संस्करण को अंजाम देने की तैयारी हो रही है – लेकिन इसका नाम “घर वापसी” दिया जा रहा है.
तोमर साहब यहीं नहीं रुके. उन्होंने तीन तलाक और हलाला जैसी कुरीतियों से मुस्लिम लड़कियों को बचाने का बीड़ा उठाया है. यह बात बिलकुल सही है कि तीन तलाक और हलाला जैसी कुरीतियां मुस्लिम समाज में मौजूद हैं और उनका विरोध होना चाहिए. लेकिन, क्या इन कुरीतियों के नाम पर किसी समुदाय विशेष की लड़कियों को टारगेट कर धर्मांतरण का खुला आह्वान करना कानूनन सही है? और अगर यह सही है, तो फिर दूसरे मामलों में जहां धर्मांतरण के आरोप लगते हैं, वहां पुलिस इतनी सक्रिय क्यों हो जाती है?
यह प्रश्न गंभीर है. एक तरफ, हमें आए दिन खबरें मिलती हैं कि किसी ने चुपके से धर्म बदल लिया तो उस पर मुकदमे दर्ज हो गए, उसे परेशान किया गया, जेल भेजा गया. “एंटी-कन्वर्जन लॉ” की तलवार लगातार लटकती रहती है, जिसका इस्तेमाल अकसर एकतरफा होता दिखाई देता है. वहीं, दूसरी तरफ, कुंवर अजय तोमर जैसे लोग खुलेआम वीडियो बनाते हैं, अपनी पहचान बताते हैं, अपने संगठन का नाम लेते हैं, और धर्मांतरण की पूरी प्रक्रिया को सार्वजनिक करते हैं. क्या पुलिस को यह वीडियो दिखाई नहीं देते? क्या उन्हें ये बातें सुनाई नहीं देतीं? या फिर, सुनने और देखने की फुर्सत सिर्फ तब मिलती है जब मामला किसी और दिशा में हो?
ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि कुंवर तोमर ने ‘द केरला स्टोरी’ फिल्म का भी हवाला दिया है और कहा है कि कोई मुस्लिम लड़की ‘फातिमा बा’ न बने, इसलिए ‘योगी यूथ ब्रिगेड’ ने यह निर्णय लिया है. यानी, एक फिल्म को आधार बनाकर पूरे समुदाय की लड़कियों को धर्मांतरण के लिए उकसाया जा रहा है. क्या यह समाज में सौहार्द बिगाड़ने का काम नहीं है? क्या यह समुदायों के बीच अविश्वास पैदा करने का प्रयास नहीं है?
भारत का संविधान सभी नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार देता है. लेकिन, क्या यह स्वतंत्रता केवल कुछ लोगों के लिए है और दूसरों के लिए नहीं? क्या कानून की व्याख्या हर व्यक्ति और हर संगठन के लिए अलग-अलग होती है? आगरा पुलिस को इन सवालों का जवाब देना होगा. यह दोहरा रवैया क्यों? यह चुप्पी क्यों? या तो भारत के कानून सभी नागरिकों के लिए समान हैं, या फिर हमें यह मान लेना चाहिए कि वे सिर्फ एक खास ‘पक्ष’ के लिए हैं, बाकी सब के लिए नहीं. और अगर ऐसा है, तो यह हमारे लोकतंत्र के लिए एक बेहद चिंताजनक स्थिति है.
-मोहम्मद शाहिद
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