मेवाड़ (राजस्थान) [भारत], 7 जुलाई: मेवाड़, राजस्थान का वह क्षेत्र जहां आदिवासी समुदाय की समृद्ध संस्कृति और परंपराएं आज भी जीवित हैं। लेकिन इनके जीवन में एक दुखद मोड़ तब आता है जब इन्हें अनपढ़, पिछड़ा, या अयोग्य कहकर हाशिए पर धकेल दिया जाता है।
यह कहानी है शंभू की — एक ऐसे व्यक्ति की जो अपने आदिवासी समाज का हिस्सा है, लेकिन समाज की मुख्यधारा में उपेक्षा और अपमान के कारण अपना असली नाम और अस्तित्व तक भूल चुका है। स्कूल में उसे आलोचना और तिरस्कार का सामना करना पड़ा। उसकी कला, संगीत और नृत्य की प्रतिभा को उसकी आदिवासी छाप के कारण नजरअंदाज कर दिया गया। निराशा और उपेक्षा ने उसे स्कूल छोड़ने पर मजबूर कर दिया। जंगल में लकड़ी बीनने और गोंद इकट्ठा करने जैसे कामों में भी उसे शोषण का सामना करना पड़ा। सैकड़ों पेड़ लगाने और उनकी रक्षा करने के बावजूद उसे न सम्मान मिला, न पहचान। लोग उसे बस “कालू” कहकर पुकारते थे।
शंभू की इस मार्मिक कहानी ने नीरज कुमार को झकझोर दिया। उन्होंने समाज को बदलने का संकल्प लिया और सदाशिव मेडिटेशन रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की। इस पहल का उद्देश्य था — शिक्षा, लोककला और किफायती प्रशिक्षण के माध्यम से आदिवासी समुदाय को सशक्त बनाना।
इसके तहत फ्यूचर थिंकर हब अस्तित्व में आया, जिसका दर्शन है — लोककला, संस्कृति और साधना को संरक्षित करते हुए इन्हें आय अर्जन का साधन बनाना। इस प्रयास में यूनिट फॉर ग्रोथ, देहरादून, आर.एन. यूनिवर्सिटी, हिमाचल प्रदेश और आर्ट ऑफ लिविंग की टीम ने सहयोग दिया। श्री श्री रविशंकर जी महाराज के आशीर्वाद से नवचेतना शिविर की शुरुआत हुई, जिसका पहला आयोजन 16 जुलाई 2025 को मेवाड़ के छोटी सादड़ी, प्रतापगढ़ में होगा।
नीरज कुमार की यह पहल अब एक आंदोलन बन चुकी है। फ्यूचर थिंकर लोककला खोज कार्यक्रम के तहत हजारों बच्चों को अपनी कला प्रदर्शित करने का मंच मिलेगा। सत्यम टॉक शो और इंपार्शियल न्यूज़ ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं को उजागर करेंगे। इसके साथ ही, सदाशिव फाउंडेशन और आर.एन. यूनिवर्सिटी मिलकर भारत सरकार के B.VOC कोर्स और अन्य स्नातक व डिप्लोमा कोर्स मेवाड़ के दुर्गम क्षेत्रों में शुरू करेंगे।
16 जुलाई 2025 को सदाशिव मेडिटेशन रिसर्च फाउंडेशन परिसर में एक भव्य रुद्राभिषेक पूजा का आयोजन होगा, जिसे शिव बाबा को समर्पित किया जाएगा।
नीरज कुमार भावुक होकर कहते हैं —
“मैंने गरीबी, शोषण, और शिक्षा के अभाव का दंश झेला है। मैं नहीं चाहता कि मेरा मेवाड़ यह दर्द सहे। श्री श्री रविशंकर जी और भोले बाबा की कृपा से मैं मेवाड़ को एक नई रोशनी देना चाहता हूँ।”
यह कहानी न केवल शंभू की है, बल्कि हर उस व्यक्ति की है जो अपनी जड़ों से जुड़कर समाज की मुख्यधारा में सम्मान के साथ शामिल होना चाहता है। यह मेवाड़ की धरती से उठी एक नई क्रांति की शुरुआत है।
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