देवनागरी लिपि खतरे में, हिंदी साहित्य भारती अंतरराष्ट्रीय ने जताई चिंता, हिंदी सेवी करने जा रहे बड़ा काम

साहित्य

हिन्दी साहित्य के बिना संस्कृति अधूरी: जनजागरण अभियान में उठा स्वर

 हिन्दी ज्ञान के बिना खण्डित हो रहा है सांस्कृतिक स्वरूप

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आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत। आधुनिकता की आंधी में हिन्दी भाषा और साहित्य का ज्ञान जिस तेजी से पीछे छूट रहा है, उससे भारत का सांस्कृतिक स्वरूप बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। बिना भाषा के संस्कृति की कल्पना अधूरी है। यही विषय रहा “अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य भारती” की एक विशेष बैठक का, जो नागरी प्रचारिणी सभा, आगरा के पुस्तकालय कक्ष में सम्पन्न हुई। इस बैठक की अध्यक्षता संस्था के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष डॉ. देवी सिंह नरवार ने की।

जनजागरण अभियान की रूपरेखा तैयार

बैठक में हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु एक ठोस जनजागरण अभियान की योजना पर चर्चा की गई। तय हुआ कि संस्था के पदाधिकारी टीम बनाकर विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और माध्यमिक विद्यालयों में जाकर अध्यापकों और छात्रों से संपर्क करेंगे। उनसे संकल्प-पत्र भरवाकर हिन्दी और भारतीय संस्कृति के समर्थन में हस्ताक्षर लिए जाएंगे।

हस्ताक्षर करने वालों की सांस्कृतिक प्रतिज्ञा

इस अभियान के अंतर्गत हस्ताक्षर करने वाले सभी हिन्दी सेवक यह संकल्प लेंगे कि वे हिन्दी भाषा को अपनाएंगे, उसका प्रचार करेंगे, और भारतीय जीवन मूल्यों की रक्षा व उत्थान में सक्रिय भूमिका निभाएंगे। बैठक में यह भी उल्लेख किया गया कि स्थिति इतनी विकट हो चुकी है कि अब देवनागरी लिपि भी खतरे में है।

 डॉ. भानु प्रताप सिंह ने जताई चिन्ता

प्रख्यात पत्रकार डॉ. भानु प्रताप सिंह ने हिन्दी भाषा की दुर्दशा पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय जीवन मूल्यों में गिरावट के कारण हमारी भावी पीढ़ी दिशाहीन और संस्कारविहीन हो रही है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि अंग्रेजी माध्यम से पढ़े हुए युवा “उनहत्तर”, “उन्यासी”, “उन्नचास” जैसे सामान्य हिन्दी अंकों तक को नहीं पहचान पाते। यह हमारी भाषाई जड़ों से कटने का जीवंत प्रमाण है।

डॉ. देवी सिंह नरवार का अध्यक्षीय उद्बोधन

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ. देवी सिंह नरवार ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हिन्दी और भारतीय संस्कृति एक-दूसरे की आत्मा हैं। उन्होंने कहा, “हम अपनी जड़ों से कट गए हैं। योग, ध्यान, जटाएं, जनेऊ, गंगा, गीता, गाय और यज्ञोपवीत — ये सब हमारी संस्कृति की पहचान हैं जिन्हें हिन्दी साहित्य के माध्यम से ही समझा जा सकता है।” उन्होंने इस अभियान को पूरे देश में चलाए जाने की आवश्यकता पर बल दिया।

अलीगढ़ में होगी कार्यकारिणी की घोषणा

बैठक में यह जानकारी भी दी गई कि आगामी 6 जुलाई को अलीगढ़ में ब्रज प्रान्त की कार्यकारिणी की घोषणा की जाएगी। इसके साथ ही, जुलाई से दिसंबर 2025 तक चलने वाले इस जनजागरण अभियान के अंतर्गत आगरा महानगर में एक लाख हस्ताक्षर जुटाने का लक्ष्य रखा गया है।

समिति का विस्तार: नये नाम शामिल

‘जन जागरण अभियान समिति’ के विस्तार में सर्वसम्मति से कई प्रमुख नामों को शामिल किया गया, जिनमें प्रमुख हैं डॉ. दुष्यंत कुमार सिंह, डॉ. भानु प्रताप सिंह, डॉ. सौरभ देवा, डॉ. चन्द्रशेखर शर्मा, डॉ. योगेन्द्र सिंह, श्याम सिंह, देवेन्द्र कुमार, उदयभान सिंह, कुंजिल सिंह चाहर एवं विजय पाल नरवार
बैठक में जिला कार्यकारिणी के गठन पर भी विस्तार से चर्चा की गई, और जल्द ही नामों की घोषणा की जाएगी।

✒️ संपादकीय टिप्पणी: भाषा है संस्कृति की आत्मा

हिन्दी भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि भारतीय आत्मा की संवाहिका है। जब कोई सभ्यता अपनी भाषा को विस्मृत करने लगती है, तो वह स्वयं अपनी पहचान से दूर हो जाती है। अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य भारती का यह अभियान न केवल भाषा की रक्षा के लिए बल्कि भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना का भी प्रयास है।

डॉ. देवी सिंह नरवार जैसे विद्वान, जो हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में समर्पित हैं, वास्तव में आज के युग में सांस्कृतिक योद्धा हैं। उनका यह कथन कि “संस्कृति को बचाना है तो हिन्दी को अपनाना ही होगा” — केवल शब्द नहीं, बल्कि एक चेतावनी है।
यह जनजागरण अभियान आने वाली पीढ़ियों के लिए हिन्दी की लौ को जलाए रखने का एक दीप स्तम्भ बने, यही शुभकामना है।

 

Dr. Bhanu Pratap Singh