जाट सरदार हो तो कुँवर शैलराज सिंह एडवोकेट जैसा, जो कभी झुके नहीं और सिद्धांतों पर अड़ जाए

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पढ़िए साइकिल से जिंदगी का सफर शुरू करने वाले वकील साहब की अखिल भारतीय जाट महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से त्यागपत्र के पीछे की कहानी

डॉ. भानु प्रताप सिंह

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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat

वह आगरा की पावन धरती पर साइकिल के पहियों पर सवार होकर आए थे, न कोई वैभव, न कोई संसाधन। केवल एक जुनून था, जो उनके हृदय में धधक रहा था—अपने समाज को उन्नति के शिखर तक ले जाने का। कुंवर शैलराज सिंह एडवोकेट, एक ऐसा नाम जो उत्तर प्रदेश के जाट समाज के गौरव का पर्याय बन चुका है। यह कहानी है उनके संघर्ष की, उनके साहस की, और उस बलिदान की, जिसने उन्हें अपने समाज का सच्चा सरदार बना दिया। उनकी यात्रा केवल व्यक्तिगत विजय की नहीं, बल्कि एक समुदाय की आकांक्षाओं को साकार करने की है।

ज़िंदगी ज़ख्मों से भरी है, वक़्त को मरहम बनाना सीख ले।”
— मिर्ज़ा ग़ालिब

साइकिल से शुरू हुआ सफर

आगरा की गलियों में एक युवा, जिसके पास न धन था, न दौलत, केवल एक अटल विश्वास था कि मेहनत और लगन से हर मंजिल पाई जा सकती है। कुंवर शैलराज सिंह ने अपने बलबूते वकालत की दुनिया में अपनी पहचान बनाई और जाट समाज के लिए एक मशाल बनकर उभरे। उन्होंने उत्तर प्रदेश में जाटों के लिए आरक्षण की लड़ाई लड़ी, जो एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी। चौधरी चरण सिंह की प्रतिमा को आगरा में स्थापित करवाकर उन्होंने अपने समाज के गौरव को अमर किया। यह उनके दृढ़ निश्चय का प्रतीक था, जो हर कदम पर उनके साथ रहा।

जिजीविषा का प्रतीक

कर्मचारियों के हक की आवाज

राज्य कर्मचारी परिषद के प्रदेश नेता के रूप में कुंवर शैलराज ने कर्मचारियों के अधिकारों के लिए अनवरत संघर्ष किया। जेल की सलाखों ने उन्हें कैद किया, सरकारी उत्पीड़न ने उन्हें तोड़ने की कोशिश की, लेकिन उनका हौसला अडिग रहा। वह झुके नहीं, डिगे नहीं। उनकी यह लड़ाई केवल कर्मचारियों के लिए नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए थी जो अन्याय के सामने घुटने टेकने को मजबूर था।

न झुके, न टूटे, न बिखरे कभी,
हौसले के पंखों से उड़ते रहे।”

— बशीर बद्र

अन्याय के विरुद्ध विद्रोह

जाट महासभा से इस्तीफा: साहस और सिद्धांतों की जीत

अखिल भारतीय जाट महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में कुंवर शैलराज ने समाज के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। लेकिन जब उन्होंने संगठन के भीतर अवैध कार्यों और अधिवेशनों में मनमानी की पोल खोली, तो उन्हें अलग-थलग करने की साजिश रची गई। उन्होंने राष्ट्रीय महासचिव और सादाबाद के पूर्व विधायक प्रताप चौधरी को निलंबित किया, जिसके बाद मथुरा में आयोजित अधिवेशन के जरिए उन्हें किनारे करने की कोशिश हुई। लेकिन कुंवर शैलराज ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देकर यह साबित कर दिया कि सिद्धांतों से समझौता उनकी फितरत में नहीं।

हुई मुद्‌दत कि ग़ालिब मर गया, पर याद आता है,
वो हर इक बात पे कहना कि यूं होता तो क्या होता।”

— मिर्ज़ा ग़ालिब

सत्य की राह पर बलिदान

आगरा की जनता का असीम प्यार

कुंवर शैलराज का कहना है कि आगरा की जनता ने उन्हें इतना प्यार और सम्मान दिया कि उनकी सात पीढ़ियां भी इस ऋण को नहीं चुका सकतीं। यह प्यार ही उनकी ताकत है, जो उन्हें हर मुश्किल में संबल प्रदान करता है। मथुरा के अधिवेशन के बाद भी उनके हौसले बुलंद हैं। वह कहते हैं, मैं अपने समाज के लिए जीता हूं, और इसके लिए मरूंगा।” यह उनके अटूट समर्पण का प्रमाण है।

जनता का प्रेम: सबसे बड़ा खजाना

त्यागपत्र के ग्यारह बिंदु: सत्य का उद्घाटन

कुंवर शैलराज सिंह ने अपने त्यागपत्र में अखिल भारतीय जाट महासभा की कार्यप्रणाली और समाज की चुनौतियों को ग्यारह बिंदुओं में उजागर किया। ये बिंदु न केवल उनकी साहसिकता को दर्शाते हैं, बल्कि समाज के सामने एक नई दिशा प्रस्तुत करते हैं।

  1. जाट समाज की एकजुटता की आवश्यकता: कुंवर शैलराज ने कहा कि जाट समाज के विभिन्न संगठनों को आपसी मतभेद भुलाकर केंद्रीय आरक्षण, सामाजिक कुरीतियों को दूर करने, युवाओं को इतिहास से जोड़ने, नशामुक्ति, प्रेम पंचायतों के आयोजन, और समाज का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए एकजुट होना होगा। जाट बाहुल्य प्रदेशों में अपना मुख्यमंत्री बनाने की भी आवश्यकता है।
  2. खाप पंचायतों पर तालिबानी आरोप: उन्होंने उच्चतम न्यायालय द्वारा खाप पंचायतों को तालिबानी करार दिए जाने की बात उठाई। इसके खिलाफ एकजुट होकर कानूनी लड़ाई लड़ने की अपील की।
  3. स्वयं को दोषी मानना: कुंवर शैलराज ने स्वीकार किया कि वह इन मुद्दों पर प्रभावी कार्रवाई न करने के लिए स्वयं को दोषी मानते हैं। यह उनकी आत्मचिंतन की गहराई को दर्शाता है।
  4. युवा नेतृत्व की आवश्यकता: उन्होंने कहा कि अब समय है कि युवा नेतृत्व आगे आए। जो लोग वर्षों से संगठनों पर कब्जा जमाए बैठे हैं, उन्हें ससम्मान सलाहकार मंडल में स्थान देना चाहिए।
  5. महासभा की अध्यक्ष नियुक्ति: कुंवर शैलराज ने बताया कि दस-बारह वर्ष पूर्व चंडीगढ़ में हुई बैठक में युद्धवीर सिंह के प्रस्ताव और उनके अनुमोदन पर कैप्टन अमरिंदर सिंह को अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।
  6. अनियमित कार्यप्रणाली: उन्होंने खुलासा किया कि संगठन में पदाधिकारियों की नियुक्ति कैसे हुई, इसका कोई रिकॉर्ड नहीं। न कार्यकारिणी की बैठक के कार्यवृत्त लिखे गए, न नियुक्ति पत्र जारी किए गए। सब कुछ तालिबानी ढंग से चल रहा है।
  7. संविधान और कोष का अभाव: महासभा का संविधान क्या है, इसका कोई पता नहीं। संगठन का खाता कहां है, कोषाध्यक्ष कौन है, यह भी किसी को नहीं मालूम।
  8. जम्मू-कश्मीर की बैठक में अनियमितता: जम्मू-कश्मीर में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नियमों का उल्लंघन हुआ। तीन उपाध्यक्षों के होते हुए राजाराम मील को अध्यक्षता दी गई। कुंवर शैलराज को मंच पर स्थान तक नहीं मिला, और समाचारपत्रों में उनका नाम तक प्रकाशित नहीं हुआ।
  9. आगरा में बैठक का प्रस्ताव: कुंवर शैलराज ने आगरा में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक आयोजित करने का प्रस्ताव दिया, जो मौखिक रूप से स्वीकार हुआ, लेकिन कभी समय नहीं दिया गया।
  10. मुद्दों को अनसुना करना: उन्होंने बार-बार संगठन की कमियों को उठाया, लेकिन उनकी बातों को कभी तवज्जो नहीं दी गई।
  11. इस्तीफे का ऐलान: उपरोक्त परिस्थितियों में कुंवर शैलराज ने युवा नेतृत्व के लिए मार्ग प्रशस्त करने हेतु राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सहित सभी पदों से सार्वजनिक रूप से त्यागपत्र दे दिया।

जो जोंक जिन्दगी भर बैल का खून चूसती है,
वह भी बैल के मरने के बाद बैल का साथ छोड़ देती है।”

अपने कार्यालय में बातचीत करते कुँवर शैलराज सिंह एडवोकेट।

संगठन की सच्चाई

जाट अधिवेशन और समाज की प्रतिक्रियाएं

मथुरा में आयोजित जाट अधिवेशन को लेकर समाज में तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कई लोगों का मानना है कि यह अधिवेशन जाट आरक्षण, दहेज प्रथा, या नशामुक्ति जैसे मुद्दों से कोई सरोकार नहीं रखता। यह केवल कुंवर शैलराज द्वारा राष्ट्रीय महासचिव और महासभा के प्रदेश अध्यक्ष सादाबाद के पूर्व विधायक प्रताप चौधरी के निलंबन के जवाब में शक्ति प्रदर्शन था।

  • आगरा के जाट समाज का रोष: आगरा के जाट समाज ने इसे कुंवर शैलराज का अपमान माना। उनका कहना है कि जिन्होंने जाट आरक्षण जैसे मुद्दों पर ऐतिहासिक कार्य किया, उन्हें अपमानित करने वालों को सम्मानित करना घृणित कार्य है। समाज ने सामूहिक इस्तीफे की मांग की।
  • संगठन पर राजनीतिक मोहरों का आरोप: कई लोगों का मानना है कि जाट महासभा राजनीतिक दलों के मोहरे बन चुके हैं, जो जाटों को केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करते हैं। इसमें सपा, रालोद, कांग्रेस, भाजपा, बसपा जैसे दलों के नेता शामिल हैं।
  • स्थानीय नेताओं की अनदेखी: मथुरा के जमीनी स्तर पर काम करने वाले जाट नेताओं को अधिवेशन में कोई स्थान नहीं दिया गया। समाज ने सवाल उठाया कि सम्मेलनों में केवल चुनिंदा लोगों को ही क्यों बुलाया जाता है?
  • कुरीतियों पर निष्क्रियता: समाज ने कहा कि अधिवेशन कुरीतियों को दूर करने में नाकाम रहे हैं। धरोहरों, रिवाजों, और परंपराओं के लिए कोई ठोस योगदान नहीं हुआ।
  • जाट नेताओं की उदासीनता: पिछले एक दशक में किसी जाट सांसद या मंत्री ने जाट आरक्षण की आवाज नहीं उठाई। जयंत चौधरी जैसे नेता भी सत्ता में शामिल होने के बाद इन मुद्दों को भूल गए।
  • पंचायत व्यवस्था की निष्क्रियता: ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत व्यवस्था पूरी तरह निष्क्रिय हो चुकी है। गरीब जाट को यह भ्रम है कि वह नवाब है, और सक्षम जाट खुद को खुदा मानता है।
  • अधिवेशन की सीमित पहुंच: मथुरा, आगरा, और हाथरस में 17 लाख से अधिक जाट हैं, लेकिन अधिवेशन में मात्र 200-300 लोग ही शामिल हुए। यह प्रांतीय स्तर का आयोजन होने के बावजूद सीमित रहा।
  • अलीगढ़ से समर्थन: अलीगढ़ के जाट समाज ने कुंवर शैलराज के कदम को उचित ठहराया। उनका कहना है कि उनके उपाध्यक्ष कार्यकाल में महासभा ने कई महत्वपूर्ण कार्य किए, जो इतिहास में दर्ज हैं।

महफिल में चल रही थी हमारे कत्ल की तैयारी,
पर हम तो हौसले से जिंदगी को जीते रहे।”

— अनाम शायर

समाज का आक्रोश

समाज की कुरीतियां और जिम्मेदारी

जाट समाज में दहेज, मृत्यु भोज, और नशे जैसी कुरीतियां आज भी गहरी जड़ें जमाए हुए हैं। कुंवर शैलराज ने इनके खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन उनका कहना है कि समाज के सक्षम लोग ही इन कुरीतियों को बढ़ावा देते हैं। गांवों में पंचायत व्यवस्था लगभग निष्क्रिय हो चुकी है, और ग्रामीण जाटों तक संगठनों की पहुंच न के बराबर है। उन्होंने समाज से अपील की कि वह अपनी मानसिकता बदले और एकजुट होकर इन कुरीतियों को खत्म करे।

आत्मचिंतन की आवश्यकता

निष्कर्ष: एक सरदार का संदेश

कुंवर शैलराज सिंह की कहानी केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक समुदाय की आकांक्षाओं और संघर्षों की गाथा है। उनका इस्तीफा केवल एक पद का त्याग नहीं, बल्कि सत्य और सिद्धांतों के लिए एक बलिदान है। वह आज भी अपने समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनका संदेश स्पष्ट है—जाट समाज को एकजुट होकर अपनी ताकत को पहचानना होगा। केवल तभी हम अपने गौरवशाली इतिहास को भविष्य की नींव बना सकते हैं।

जो तूफानों में पलते हैं, वही दुनिया बदलते हैं।”

Dr. Bhanu Pratap Singh