लखनऊ। यूपी के भारी भरकम बजट का करीब एक चौथाई हिस्सा बिना खर्च हुए खजाने में ही रह गया। ये स्थिति वर्ष 2018-19 से वर्ष 2022-23 तक अलग-अलग वर्षों में बढ़ती-घटती रही। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है।
सीएजी की वित्त विभाग से संबंधित रिपोर्ट के मुताबिक पांच बजट में बिना खर्च हुई राशि बढ़ी है। 2018-19 से 2022-23 तक बजट 4.99 लाख करोड़ से 6.85 लाख करोड़ रुपये पहुंचा, लेकिन इसी अनुपात में एक बड़ी राशि को विभाग खर्च ही नहीं कर सके।
नियोजन और क्रियान्वयन के बड़े अंतर को है दर्शाता
विवरण | वर्ष 18-19 | वर्ष 19-20 | वर्ष 20-21 | वर्ष 21-22 | वर्ष 22-23 |
मूल बजट | 456248 | 509003 | 544571 | 585910 | 651786 |
अनुपूरक बजट | 42887 | 17805 | 00 | 15781 | 33769 |
कुल बजट | 499136 | 526809 | 544571 | 601691 | 685555 |
वास्तविक खर्च | 409784 | 399426 | 396023 | 449065 | 518859 |
बची धनराशि | 89351 | 127382 | 148547 | 152626 | 165696 |
कुल बचत का प्रतिशत | 17.90% | 24.18% | 27.28% | 25.37% | 24.17% |
सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक 2022-23 में 6.85 लाख करोड़ का बजट पेश किया गया, लेकिन खर्च हुआ केवल 5.19 लाख करोड़ रुपये। यानी करीब 1.65 लाख करोड़ रुपये खर्च ही नहीं किया जा सका। सीएजी के मुताबिक ये अंतर राज्य सरकार द्वारा नियोजन और क्रियान्वयन के बड़े अंतर को दर्शाता है।
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